देश में आए दिन सीवरेज की सफाई करते कर्मचारियों की मौतें हो रही हैं। केंद्र सरकार ने भी लोक सभा में कहा है कि पिछले कुछ सालों में 620 कर्मियों की मौत हुई है। सीवरेज कर्मियों की इस हालत के लिए स्थानीय प्रशासन से लेकर राज्य व केंद्र सरकार तक जिम्मेदारी बनती है। वास्तव में कानून के अनुसार कोई कर्मचारी हाथों से गंदगी को साफ नहीं कर सकता लेकिन यहां तो किसी की जान की भी परवाह नहीं की जा रही। प्रशासनिक लापरवाही से मर रहे सीवरेज कर्मियों का प्रशासन और सरकारें कोई गंभीर नोटिस नहीं लेती, संसद में ऐसे मुद्दे तो दशकों बाद ही उठाए जाते हैं।
हैरानी की बात तो यह है कि इस साल के पहले छह महीनों में विभिन्न राज्यों में 50 सफाई कर्मियों की मौत गैस चढ़ने से हो चुकी है। दरअसल सफाई कर्मियों को कंपनी द्वारा या तो अपेक्षित साजो-समान ही मुहैया नहीं करवाया जाता, या फिर उसका प्रयोग करने के लिए प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। ऐसा भी देखने में आ रहा है कि कई शहरों में प्रशिक्षण की इतनी ज्यादा कमी है कि सफाई कर्मियों को किट बांधने की भी जानकारी नहीं होती। सेनीटेशन से सबंधित विभाग के अधिकारी भी मौके पर जाकर जांच नहीं करते कि सीवरेज की सफाई संंबंधी दिशा-निर्देशों की भी पालना हो रही है या नहीं
सीवरेज में उतरने से पहले जहरीली गैस होने संबंधी जानकारी जुटाना आवश्यक है लेकिन अधिकारी भी काम करवाने की जल्दबाजी में कोई निगरानी नहीं करते। मल्टी डिटेक्टर द्वारा बिना गैस चैक किए ही कर्मी सीवरेज में उतार दिये जाते हैं। दरअसल जब तक लापरवाही के लिए जिम्मेवार अधिकारियों के खिलाफ कार्यवाही नहीं होगी तब तक यह दुखद घटनाएं नहीं रुकेंगी। अधिकतर मामलों में ठेकेदार व अधिकारी दोनों किसी न किसी प्रकार बच निकलते हैं। मुआवजे के तौर पर देखें तो राज्य सरकारें कानून की पालना नहीं कर रही।
सफाई आयोग ने इस बात पर सख्त नाराजगी प्रकट की है कि मारे गए सफाई कर्मचारियों को 10-10 लाख रुपए मुआवजा देने के साथ-साथ मृतक के परिवार के एक सदस्य को नौकरी देने का आदेश है, लेकिन राज्य सरकारें नौकरी देने से कन्नी काट रही हैं। नि:संदेह सफाई कर्मी समाज व प्रशासनिक प्रणाली का हिस्सा हैं जिनके प्रति संवेदनहीन रवैया अपनाया जा रहा है। कर्मचारियों की संख्या कम होने के कारण इस वर्ग की आवाज को जोर-शोर से उठाया जाना चाहिए। केंद्र व राज्य सरकारें इस समस्या का पहल के आधार पर समाधान करें।