डॉक्टर और इंजीनियर जैसे पेशेवर लोग प्रति माह लाखों रूपए कमाते हैं किंतु उन पर कर नहीं लगाया जाता। इसी तरह शेयर बाजार में बड़े-बड़े खिलाडी मोटी रकम कमाते हैं किंतु वे इस आय को आयकर विभाग की नजरों से बचा देते हैं। करोड़पतियों की संख्या में वृद्धि गरीब लोगों को प्रभावित करती है क्योंकि उनकी संपत्ति में वृद्धि शेयर बाजार और भूसंपदा में वृद्धि से जुडी होती है जिससे रोजगार के अवसर नहीं बढ़ते और न ही यह विकास कार्यों में सहायक होती है।
धुर्जति मुखर्जी
भारत सहित तीसरी दुनिया के अधिकतर देशों में असमानता बढ़ती जा रही है। विभिन्न देशों की सरकारों और अंतर्राष्ट्रीय एजेंसियों द्वारा विभिन्न विकास कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं इसके बावजूद असमानता बढ़ती जा रही है। साथ ही राजनेता हमेशा ऐसी योजनाएं लाने का दावा करते हैं जिससे समाज के गरीब वर्गों को लाभ पहुंचता है किंतु विभिन रिपोर्टों से पता चलता है कि इसका लाभ गरीब और सीमान्त वर्गों तक नहीं पहुंच रहा है और इस परिदृश्य में फिलहाल बदलाव आने की संभावना भी नहीं है क्योंकि भारत जैसे अधिकतर लोकतत्रों में राजनेताओं और उद्योगपतियों के बीच सांठगांठ मजबूत है इसलिए स्वाभाविक है कि आगामी वर्षों में भी विकास का अधिकतर लाभ समृद्ध वर्गों तक ही पहुंचेगा। इसके साथ ही भारत और अन्य देशों में निजीकरण की मांग रखी जा रही है जिसके चलते स्वास्थ्य, शिक्षा आदि क्षेत्रों में निजी क्षेत्र की मुनाफा कमाने की प्रवृति से गरीब लोगों को नुकसान पहुंचेगा और भारत में ऐसा पहले ही देखने को मिल रहा है।
टाइम टू केयर नामक ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार देश में 1 प्रतिशत जनसंख्या के पास 95.3 करोड लोगों की संपत्ति से चौगुनी संपत्ति है। देश के 106 अरबपतियों के पास 28.9 लाख करोड रूपए की संपत्ति है जो 2018-19 के 24.4 लाख करोड के बजट से अधिक है। देश में शीर्ष 1 प्रतिशत जनसंख्या की संपत्ति में 46 प्रतिशत की वृद्धि हुई जबकि निचले तबके के 50 प्रतिशत लोगों की संपत्ति में केवल 3 प्रतिशत की वृद्धि हुई। भारत सहित लगभग सभी देशों में सामाजिक और आर्थिक असंतोष आम बात हो गयी है और भ्रष्टाचार, संवैधानिक मूल्यों के उल्लंघन, बुनियादी वस्तुओं और सेवाओं के मूल्यों में वृद्धि आदि के मुद्दों पर भी असंतोष और बढ़ जाता है। इसलिए ऐसी अर्थव्यवस्थाओं में अरबपतियों और बडे व्यावसायिक घरानों को अघिक लाभ पहुंच रहा है और आम आदमी को अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड रहा है।
ग्लोबल वेल्थ रिपोर्ट 2018 के अनुसार इस सहस्राब्दि की शुरूआत से देश में संपत्ति में प्रति वर्ष 9.2 प्रतिशत की वृद्धि हुई जो विश्व औसत 6 प्रतिशत से अधिक है। किंतु ऑक्सफेम की रिपोर्ट के अनुसार इस संपत्ति का लाभ धनी वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग ने अधिक उठाया है। इस रिपोर्ट मे यह भी कहा गया है कि विभिन्न देशों की सरकारें सबसे धनी लोगों और कंपनियों पर कम टैक्स लगा रही है। इसलिए इतना राजस्व अर्जित नहीं हो रहा है जिससे गरीब वर्ग को बुनियादी सुविधाएं, स्वास्थ्य और शिक्षा उपलब्ध करायी जा सके। किंतु इस बात को ध्यान में रखे बिना कि हमारी जनसंख्या का एक बडा भाग गरीबी में जीवन व्यतीत कर रहा है पत्रकारों सहित विभिन दबाव डालने वाले संगठन कल्याण कार्यों पर व्यय में कटौती और निजीकरण् की वकालत कर रहे हैं। जबकि वे जानते हैं कि देश में निजी क्षेत्र पूरी तरह बेईमान है और उसका उद्देश्य गलत तरीकों से पैसा बनाना होता है।
हैरानी की बात है कि 15 अगस्त 2019 तक देश में केवल 5.87 करोड आय कर विवरणी भरी गयी। राजस्व विभाग द्वारा जारी कर विवरणियों के अनुसार मूल्यांकन वर्ष 2018-19 में करोडपति करदाताओं की संख्या 97689 थी। हमारी अर्थव्यवस्था अमरीका, चीन, जापान और जर्मनी के बाद पांचवीं सबसे बडी अर्थव्यवस्था है किंतु यहां राजस्व संग्रहण की स्थिति अच्छी नहीं है। प्रश्न उठता है कि क्या कर संग्रहण विवेकपूर्ण ढंग से किया जा रहा है या केवल वेतनभोगी वर्ग से कर लिया जा रहा है।
डॉक्टर और इंजीनियर जैसे पेशेवर लोग प्रति माह लाखों रूपए कमाते हैं किंतु उन पर कर नहीं लगाया जाता। इसी तरह शेयर बाजार में बडेÞ-बड़े खिलाडी मोटी रकम कमाते हैं किंतु वे इस आय को आयकर विभाग की नजरों से बचा देते हैं। करोड़पतियों की संख्या में वृद्धि गरीब लोगों को प्रभावित करती है क्योंकि उनकी संपत्ति में वृद्धि शेयर बाजार और भूसंपदा में वृद्धि से जुडी होती है जिससे रोजगार के अवसर नहीं बढ़ते और न ही यह विकास कार्यों में सहायक होती है। भारत सहित विभिन देशों की सरकारें उन लोगों की अधिक चिंता करती है जो राजनीतिक दलों को और चुनाव प्रचार के लिए पैसे देते हैं और गरीबों के बजाय उनके हितों को प्राथमिकता दी जाती है।
खपत व्यय में कमी तथा बढ़ती बेरोजगारी बताती है कि हालांकि गरीबी रेखा से नीचे रह रहे लोगों की संख्या में कमी आयी हो किंतु समाज के गरीब लोगों की स्थिति को ध्यान में रखते हुए यह स्पष्ट है कि उनकी आजीविका के साधन समाप्त होते जा रहे हैं। स्थिति का आकलन सामान्यतया समृद्ध ग्रामीण क्षेत्रों को ध्यान में रखकर किया जाता है किंतु देश के पिछडे क्षेत्रों में स्थिति वास्तव में काफी निराशाजनक है। सरकार विशेषकर आदिवासियों और दलितों की स्थिति और उनकी आजीविका पर ध्यान नहीं देती है। फिलहाल अमीर और गरीब, शहरी और ग्रामीण जनता, औद्योगिक कामगार और किसान के बीच असमानता कम होने की संभावना नहीं है और इसका कारण यह है कि पूंजीवादी सरकार ग्रामीण क्षेत्र और सीमान्त वर्ग के लोगों की आजीविका में सुधार लाने की इच्छुक नहीं है। राजनेताओं और नौकरशाहों में विकेन्द्रीकरण की प्रवृति नहीं है। इसलिए निर्देश शीर्ष स्तर से आते हैं जिसके चलते जनता की वास्तविक समस्याओं को नहीं सुना जाता है और उनकी उपेक्षा होती है।
दूसरी ओर गरीबी हटाने में एक अन्य बडी अड़चन सरकार के पास संसाधनों की कमी है। बजट से पूर्व उद्योगपतियों, व्यापारिक संगठनों के साथ अनेक बैठकें होती हैं किंतु कृषक संगठनों या पंचायत प्रतिनिधियों के साथ ऐसी बैठकें कम ही होती हैं और इसीलिए व्यावसायिक वर्ग की मांगों पर ध्यान दिया जाता है और उन्हें रियायत दी जाती है और कृषक समुदाय की उपेक्षा की जाती है। जब तक रणनीति में बदलाव नहीं किया जाता और विकास रणनीति में ग्रामीण क्षेत्र कृषि और कृषि उद्योगों पर बल नही दिया जाता आय और जीवन शैली में असमानता बनी रहेगी। भारत और भारत जैसे देशों में जहां पर सच्चा लोकतंत्र नहीं है, वहां पर वर्तमान पीढ़ी के राजनेताओं से ऐसी आशा नहीं की जा सकती।
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