देश में कोविड-19 महाबिमारी की तीसरी लहर चल रही है। महाराष्ट्र के बाद पंजाब के हालात भी चिंताजनक हैं और यहां पाबंदी 10 अप्रैल तक बढ़ा दी गई हैं। दूसरी ओर हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने भी स्थिति चिंताजनक बताई है तथा ठोस कदम उठाने की बात कही है। वास्तव में पिछले वर्ष के मुकाबले इस वर्ष हालात अलग हैं। सरकारें जो दिशा-निर्देश व सूचनाएं जारी कर रही हैं, जनता उसे गंभीरता के साथ नहीं ले रही। लोग मास्क लगाने के लिए तैयार नहीं, खासकर सार्वजनिक स्थानों पर भी लापरवाही बरती जा रही है। सरकारी, गैर सरकारी, कार्यालयों, पार्कों व अन्य सार्वजनिक स्थानों पर कर्मचारी व आमजन भी लापरवाही बरत रहे हैं। अगर अधिकारी नियमों की पालना के लिए पहले करें और आमजन को लापरवाही करने से रोके, तभी सावधानी बरतने वाला माहौल पैदा होगा।
पंजाब में एक और नई स्थिति यह बन गई है सरकारी व निजी स्कूलों को खोलने के लिए संघर्ष शुरू हो गया है। निजी स्कूलों के मालिकों के साथ-साथ विद्यार्थियों के परिजन भी स्कूल खोलने की मांग कर रहे हैं। यह लोग सरकार पर दबाव बनाने के लिए प्रदर्शन कर रहे हैं। सरकार के लिए यह मुश्किल घड़ी है क्योंकि आमजन के सहयोग के बिना नियमों को केवल डंडे के साथ लागू करना काफी कठिन होगा। ऐसे ही हालात अन्य राज्यों में भी हैं। यहां सरकार को केवल सख्ती बरतने की बजाय लोगों को विश्वास में लेने की जरुरत हैं। सरकार और जनता के बीच तालमेल जरुरी है। आमजन का यह तर्क जायज है कि रात्रि कर्फ्यू का कोई फायदा नहीं है। वास्तव में लोगों के कामकाज और अन्य गतिविधियां दिन में होती हैं। इसलिए नाममात्र पाबंदियां लगाने की बजाय तर्कसंगत पाबंदियां ही स्थिति में सुधार ला सकती हैं।
आमतौर पर देखा जा रहा है कि बाजारों में भीड़ होती है और लोग बिना मास्क लगाए व बिना आपसी दूरी के ही घूम-फिर रहे हैं। दूसरी तरफ पुलिस कर्मी कार में एक परिवार के सदस्यों के मास्क न पहनने के बारे में पूछताछ करते देखे जाते हैं। पाबंदी वही कामयाब हो सकती है जिस पर आमजन भी विश्वास करे। यह भी जरुरी है कि टेस्टिंग बढ़ाई जाए। टेस्टिंग के लिए जिस तरह का उत्साह पिछले वर्ष नजर आ रहा था वह इस वर्ष नहीं है। टीकाकरण अभियान को भी मजबूत बनाने की जरुरत है। आमजन को यह समझना चाहिए कि राजनीति नेता खासकर रैलियों में भाग लेने वालों या अधिक गतिविधियां करने वालों को ही कोरोना हो रहा है। यह भ्रम है कि कोरोना केवल आमजन या गरीबों को ही शिकार बनाता है। बीमारी के प्रति लापरवाह होने की बजाय सावधान होने की जरुरत है। बिमारी है ही नहीं व टीका खतरनाक वाली धारणा को छोड़ना पड़ेगा।
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