अलविदा 2019: सफलताओं भरे वर्ष में चंद्रयान मिशन से थोड़ी निराशा

इस वर्ष चंद्रयान-2 समेत कुल छह लॉन्च मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया| Goodbye 2019

नई दिल्ली (एजेंसी)। अंतरिक्ष के क्षेत्र में देश के लिए वर्ष 2019 सफलताओं भरा रहा, ( Goodbye 2019: A little disappointment from Chandrayaan mission in a year of success) हालांकि चंद्रयान-2 मिशन के अंतिम हिस्से में लैंडर विक्रम को चंद्रमा की सतह पर उतारने में मिली विफलता से थोड़ी निराशा भी हुई। इस वर्ष चंद्रयान-2 समेत कुल छह लॉन्च मिशन को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया।

इनके अलावा संचार उपग्रह जीसैट-31 का प्रक्षेपण निजी अंतरिक्ष एजेंसी एरियन के जरिये किया गया।  अप्रैल में पीएसएलवी-सी 45 मिशन में पहली बार इस प्रक्षेपण यान के अद्यतन क्यूएल संस्करण का इस्तेमाल किया गया। दो मिशन में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने पीएस-4 का आॅर्बिटल प्लेटफॉर्म के रूप में इस्तेमाल करने का प्रयोग भी किया।

  • इस साल का सबसे बड़ा मिशन चंद्रयान-2 रहा जिस पर पूरी दुनिया की निगाह थी।
  • चंद्रमा के दक्षिणी ध्रुव के पास लैंडर उतारने का पहली बार किसी देश ने प्रयास किया था।
  • आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से जीएसएलवी एमके3-एम1 प्रक्षेपण यान के जरिये 22 जुलाई को चंद्रयान का प्रक्षेपण किया गया।
  • चंद्रयान को 14 अगस्त तक पृथ्वी की कक्षा में ही रखा गया। इसके बाद इसने चंद्रमा की यात्रा शुरू की।
  • अगले छह दिन में 20 अगस्त को यह चंद्रमा की कक्षा पर पहुँचा।
  • धीरे-धीरे इसकी कक्षा का अवनयन करते हुये 02 सितंबर तक इसे चांद की सतह से 100 किलोमीटर की ऊंचाई वाली कक्षा में पहुंचाया गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं बेंगलुरु स्थित इसरो के नियंत्रण कक्ष में मौजूद थे

योजना के अनुसार, लैंडर विक्रम को चंद्रयान से अलग कर चंद्रमा की 100 किलोमीटर गुणा 35 किलोमीटर की कक्षा में पहुंचाया गया। मिशन के सबसे जटिल हिस्से को 07 सितंबर के तड़के अंजाम दिया जाना था। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी स्वयं बेंगलुरु स्थित इसरो के नियंत्रण कक्ष में वैज्ञानिकों के साथ उस ऐतिहासिक घड़ी का साक्षी बनने के लिए मौजूद थे।

चंद्रमा की सतह से 2.1 किलोमीटर की ऊंचाई तक लैंडर विक्रम तय कार्यक्रम के अनुसार पहुंचा , लेकिन इसके बाद नियंत्रण कक्ष से उसका संपर्क टूट गया और वह धीरे-धीरे उतरने की बजाय तेजी से चंद्रमा की सतह से टकरा गया। इसके बाद विक्रम से संपर्क के सभी प्रयास विफल रहे।

मिशन 95 प्रतिशत से ज्यादा सफल

  • इसरो अध्यक्ष डॉ. के. शिवन ने बताया कि प्रयोग विफल रहने के बावजूद मिशन 95 प्रतिशत से ज्यादा सफल रहा।
  • चंद्रयान-2 का आॅर्बिटर अब भी चंद्रमा के चक्कर लगा रहा है और उस पर भेजे गये पेलोड लगातार प्रयोगों को अंजाम दे रहे हैं।
  • आॅर्बिटर एक साल तक चंद्रमा का चक्कर लगायेगा।
  •  इसरो के वैज्ञानिकों ने चंद्रयान-3 की तैयारी शुरू कर दी है।
  • साल की शुरूआत 24 जनवरी को पीएसएलवी-सी44 मिशन के साथ हुई।
  • इसमें इमेजिनिंग उपग्रह माइक्रोसैट-आर का प्रक्षेपण किया गया।

फरवरी में 2,536 किलोग्राम वजन वाले जीसैट-31 संचार उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया। यह प्रक्षेपण इसरो ने नहीं किया। इसके लिए अंतर्राष्ट्रीय निजी अंतरिक्ष प्रक्षेपण एजेंसी एरियन की सेवा ली गयी और 06 फरवरी को फ्रेंच गुआना के कोरू लॉन्च बेस से उपग्रह का प्रक्षेपण किया गया।

  • अगले मिशन में 01 अप्रैल को इसरो ने एक और मुकाम हासिल करते हुये पीएसएलवी-सी45 मिशन को अंजाम दिया। यह पीएसएलवी के क्यूएल संस्करण की पहली उड़ान थी।
  • चंद्रयान मिशन से ठीक पहले इसरो ने 22 मई को पीएसएलवी-सी46 मिशन के जरिये रडार इमेजिनिंग अर्थ आॅब्जर्वेशन उपग्रह आरआईसैट-2बी का प्रक्षेपण किया।
  • पीएसएलवी-सी47 मिशन के जरिये काटोर्सैट-3 के साथ ही अमेरिकी कंपनियों के 13 अति सूक्ष्म उपग्रहों का प्रक्षेपण 27 नवंबर को किया गया। काटोर्सैट-3 तीसरी पीढ़ी का अत्याधुनिक उपग्रह है जो हाई रिजॉल्यूशन की तस्वीर लेने में सक्षम है।

साल के अंत में 11 दिसंबर को पीएसएलवी-सी48 मिशन में स्वदेशी उपग्रह आरआईसैट-2बीआर1 का प्रक्षेपण किया गया। क्यूएल संस्करण में प्रक्षेपण यान की यह दूसरी उड़ान थी। इसमें इजरायल, इटली, जापान और अमेरिका के नौ उपग्रहों को भी उनकी कक्षाओं में सफलतापूर्वक स्थापित कर इसरो ने वर्ष को अलविदा कहा।

 

 

Hindi News से जुडे अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।