सरसा। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि भगवान कण-कण में है, कोई जगह उससे खाली नहीं है तो उसकी बनाई नियामतें कैसे हर जगह नहीं होंगी और मनुष्य शरीर उस मालिक द्वारा बनाया गया सर्वोत्तम व सर्वश्रेष्ठ शरीर है। उस परमपिता परमात्मा ने जो ब्रह्मांड में बनाया, वो मनुष्य शरीर में भी भर दिया। यानि सब कुछ है आपके अंदर।
पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि सब कुछ है मनुष्य के अंदर, लेकिन इन्सान उसको ढूढंने के लिए जंगल, पहाड़ में घूमता रहता है। वो परवरदिगार अंदर बैठा है, वो रहमोकर्म का मालिक अंदर बैठा है और उसको पाने के लिए जिसने तड़प बनानी है, वो आत्मा भी सबके अंदर है। आत्मा भी अंदर और परमात्मा भी अंदर। जब दोनों अंदर हैं तो इन्सान बाहर किसको ढूंढता है। सच्चे दिल से, तड़प कर, पुकार कर अंत:करण की आवाज को सुनकर अगर इन्सान मालिक का नाम जपे, भक्ति, इबादत करे तो परमात्मा को पा सकता है, वैराग्य से। कोई दिखावा करने की जरूरत नहीं है। अगर आपके अंदर की भावना शुद्ध हो गई, वैराग्य में होगी, तो वो जानता है कि आप शुद्ध हृदय से उसे पुकार रहे हैं। उसके लिए तड़प रहे हैं, तो वो आप पर रहमतें, नियामतें बरसा देगा और अपने दर्श-दिदार से निहाल, मालामाल कर देगा।
आप जी फरमाते हैं कि उस मालिक तक जाने के लिए कहीं जाना नहीं पड़ता, बल्कि अपने अंदर चढ़ाई करनी पड़ती है। उस तक जाने के लिए अलग भाषा, धर्म, मजहब या वेशभूषा की जरूरत नहीं पड़ती। बल्कि उस तक जाने के लिए दिलो-दिमाग का शीशा साफ करना पड़ता है। बस शुद्ध भावना बना लीजिए, तड़प कर उसे याद कीजिए वो कदम-कदम पर आपकी रक्षा करेगा और दया-मेहर से आपको नवाजता रहेगा।
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