बहुत पहले एक गांव में एक दंपति रहते थे। जब बहुत वर्ष तक उनके यहां संतान न हुई तो उन्होंने देवी की पूजा की।पूजा-पाठ के प्रभाव से ही उनके घर एक कन्या हुई। कन्या सुशील व सुंदर थी। उसके चेहरे से ज्योति निकलती रहती थी। जब वह जरा बड़ी हो कर चलने-फिरने लगी तो सबने देखा तेज-तेज चलते-चलते उसके पैर धरती से ऊपर रहते थे।
सबको बड़ा आश्चर्य होता था। उस गांव के लोग माता पार्वती की विशेष पूजा करते थे। उनके नामों से उस इलाके में जगह-जगह देवी के मंदिर थे। उस कन्या को लोग देवी का ही अंश मानने लगे और उसका नाम देवी रखा गया। देवी साफ-सुथरी रहती। गंदगी से उसे घृणा थी। वह अधिकतर घर से बाहर चली जाती। बाहर जा कर खेतों के किनारे, हरी घास के बीच और पानी के झरनों के किनारे वह बैठ जाती। हरी घास के बीच, खिले पहाड़ी जंगली फूलों के बीच, वह फूल-सी ही लगती। माता-पिता कई बार उसे घर में न पा कर परेशान हो जाते और फिर खोज कर लाते। कुछ बड़ी होने पर वह घर से काफी दूर चली जाती और घने हरे जंगलों के बीच बैठ जाती। माता-पिता व गांव के लोग उसे घंटों ढूंढ़ते तब खोज पाते। कई बार उसे ढूंढ़ते रात हो जाती और तब वह मिल पाती। बार-बार ऐसा होता देख माता-पिता बहुत चिंचित हो गए।
एक दिन देवी की मां ने खीर बनाई और बड़े प्रेम से बैठाकर बेटी को खिलाई। प्यार से मां ने पूछा, ‘बेटी, तू बार-बार घर से बाहर घने जंगलों में चली जाती है, हम कितना परेशान हो जाते हैं। तुझे ढूंढ़ने में कितनी परेशानी होती है। कभी तुझे कोई जानवर उठा ले गया तो हमारा क्या होगा। जंगलों में बाघ भालू रहते हैं। हमने तुम्हें बड़े पूजा-पाठ से पाया है। क्या तुम हमें प्यार नहीं करती? हमने तुम्हारे लिए कोई कमी की है क्या? तुम जो कहोगी, हम वही करेंगे। वही ला देंगे, जो तुम चाहोगी पर तुम घर से बाहर न जाया करो।’
देवी बोली, ‘मां, मैं समझती हूं कि तुम मुझे खूब प्यार करती हो, तभी तो इतने प्रेम से मुझे खिलाती-पिलाती हो पर मैं भी लाचार हूं। पहले तो आप इस घर और आंगन में बिखरी खीर को साफ करवा दो नहीं तो इसे साफ करने को मुझे बारिश बुलानी होगी।’ मां आश्चर्यचकित हो गईं। बोली, ‘तू वर्षा को बुलाएगी। तू वर्षा को बुला सकती है क्या?’
‘हां, मैं बुला सकती हूं, देखो।’ कह कर बच्ची ने दोनों हाथ आकाश की तरफ उठा दिए और आंखें बंद कर कुछ कहने लगी। थोड़ा सा ही समय बीता था कि आकाश में बादल छा गए और थोड़ी देर में छप-छप पानी बरसने लगा। सारा आंगन तेज बारिश में धुल कर साफ हो गया। मां बड़े आश्चर्य में थी, पर कुछ पूछ न पाई। फिर पुरानी बात पर आ गईं, ‘बेटी, तू बार-बार जा कर खेतों में, जंगलों में क्यों बैठ जाती है?’
देवी बोली, ‘मां, मैंने तो निर्मल हिमालय के हरे-भरे गांव में जन्म मांगा था। बंद घर में सूखे खेतों के बीच मेरा दम घुटता है। यहां घर के पास खेतों में पेड़ भी तो नहीं लगाए हैं। धूप चमकती है तो खेतों में दूर तक कहीं छाया ही नहीं दिखती। मेरा मन हरी पहाड़ियों पर घने पेड़ों की छाया में बैठने को करता है। ऊंची चोटियों से मुझे प्रेम है। सफाई में मेरा मन रमता है। मेरे पैर अपने आप हरियाली और पेड़ों की छाया की तरफ उठ जाते हैं।’
शाम को पिता ने भी बच्ची का वर्षा को बुलाना व जंगलों के प्रेम के बारे में पत्नी से सुना। अब वे बच्ची की अधिक निगरानी करने लगे। उसकी इच्छा पूरी करने के लिए वे घर-आंगन साफ रखने लगे। आंगन के किनारे खेतों की मेढ़ पर और जगह-जगह वे पेड़ लगाने लगे। कई जगह उन्होंने फूलों के पौधे लगाए।
फिर भी बच्ची एक दिन गांव की स्त्रियों के साथ जंगल चली गई। सभी स्त्रियां घास व लकड़ी काटने में व्यस्त हो गईं। वह दूर जा कर छिप गई फिर एक पेड़ के नीचे बैठ कर रोने लगी। शायद उसे अपने पिछले जीवन की याद आ रही थी। तभी वन देवी ने उसका हरण कर लिया। माता-पिता ने फिर उसे ढूंढ़ा पर वह कहीं न मिली। वे रो-रो कर परेशान हो गए।
एक दिन गांव के एक बूढ़े आदमी ने स्वप्न में देवी को देखा। उसने देवी से कहा, ‘तुम्हारे माता-पिता बहुत दुखी हैं।’ देवी ने कहा, ‘मेरा हरण हो गया है। बींज बरांश के घने जंगलों में एक चमकीला पत्थर है। वहीं मेरी पूजा होगी।’ बूढ़े ने अपना स्वप्न लोगों को सुनाया। देवी के माता-पिता के साथ लोग ढूंढने निकले और अंत में घने जंगल में पत्थर, हरी घास व जंगली फूलों के बीच दिख गया। देवी के माता-पिता ने वहां पर मंदिर बनाया पर उसे चारों तरफ से खुला रखा, क्योंकि देवी को खुली जगह प्रिय थी। त्यौहारों पर लोग वहां पूजा करने जाते।
जब कभी पानी न बरसता और खेत सूखने लगते तो लोग गाजे-बाजे के साथ खूब पूजा का सामान ले कर उस मंदिर की तरफ चल पड़ते। पूजा होती, बाजे बजते, लोग नाच-गाना करते खूब खीर बनाते। देवी को भोग चढ़ाते और सब प्रसाद की खीर खाते। कुछ खीर खुद ही इधर-उधर बिखर जाती। कुछ लोग बिखेर देते। लोग घर आ जाते। उसी रात बादल उमड़ पड़ते और खूब पानी बरसता। लोग जानते थे देवी अपने आंगन की सफाई-धुलाई के लिए वर्षा को बुलाएगी, तभी तो यह आयोजन होता और सचमुच झमाझम पानी बरसता। देवी का आंगन धुल जाता। लोग प्रसन्न हो जाते। खेती लहलहाने लगती। लोग इस देवी को ‘वर्षा की देवी’ पुकारने लगे थे।
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