सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि परमपिता परमात्मा कण-कण, जर्रे-जर्रे में रहने वाला व सारी सृष्टि को बनाने वाला है। सारी सृष्टि में सैकड़ों त्रिलोकियां अर्थात् जहां तीन तरह के जीव रहते हंै। दिखने वाले को स्थूलकाय, न दिखने वाले को सूक्ष्मकाय व देवी-देवताओं को कारणकाय कहते हैं। ऐसी सैकड़ों त्रिलोकियां हैं जहां भक्ति व सेवा-सुमिरन के अनुसार सैकड़ों आत्माओं का बास होता है और सबके साथ वो परमपिता परमात्मा होता है। पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि जो परमात्मा कण-कण में मौजूद है वो दिखने में कैसा होगा? वो परमपिता परमात्मा हर जगह मौजूद है, लेकिन हैरानी की बात तो यह है कि हर जगह पर होते हुए भी वह अजन्मा है, वो जन्म नहीं लेता और वो अजाप है तथा वह अवर्णननीय है। उसके बराबर किसी की तुलना नहीं हो सकती। उस तक जाने के लिए इन्सान को जाप करना पड़ता है, जो जीव उसकी धुन को पकड़ लेते हंै तो उसे जाप की जरूरत नहीं पड़ती। इन्सान के अंदर कई प्रकार के रोग पैदा होते हैं, उनमें एक तो कर्म रोग व दूसरे उसे शरीर के खरीदे गए रोग होते हैं। अगर वो सच्चे दिल से परमपिता परमात्मा को याद करे तो जिस मालिक ने यह शरीर बनाया है वह उन रोगों को शरीर में से ऐसे निकाल देता है जैसे कि मक्खन में से बाल निकाल देते हैं, यानि मालूम ही नहीं पड़ता। इस प्रकार बात केवल संतों के वचनों को मानने की होती है। अगर कोई जीव उन वचनों कोे मान ले व जैसा फकीर, संत कहते हंै अगर उनके कहे अनुसार चले तो उसी समय उसका बेड़ा पार हो जाता है व असंभव शब्द भी संभव में बदल जाता है।
इस कलियुग में केवल वचनों की ही भक्ति है। अगर इन्सान संतों के वचनों के अनुसार चला तो ठीक है, वरना उसे भुगतना तो पड़ता ही है। इससे संत नाराज नहीं होते, लेकिन वो दु:खी जरूर होते हंै, कि हम तो इसके पहाड़ के समान कर्म काट रहे थे, लेकिन यह तो मानने को तैयार ही नहीं है। आप जी फरमाते हैं कि वो अल्लाह, वाहेगुरु, राम इतना शक्तिशाली है कि उसे सच्चे दिल से याद करने मात्र से वो इन्सान की जायज इच्छाओं को पूरी जरूर कर देता है। आप जरा सोचिए अगर कोई जीव लगातार उस मालिक की भक्ति-इबादत करेगा तो मालिक उसके सामने क्या कोई कमी आने देगा, कभी भी नहीं आने देगा। इसलिए उसको सच्चे दिल से याद करो, फरियाद करो वो परमपिता परमात्मा दया का सागर है वो अपने भक्तों को कोई कमी नहीं आने देगा।