अभिनंदन करने खुदा का रवि ने सिहांसन छोड़ा,
पावन धरा पर दर्शनों हेतु देवों का गण दोड़ा ।
देवों के बरसते पुष्पों ने समा बांध लिया ,
पूज्य माता-पिता के घर जब , खुदा ने अवतार लिया ।।
हर्षित मन सबका नृत्य करते भाव विभोर ,
स्वागत में गुरु के बरस उठी घटा घनघोर ।
शीतल हुई पवन ने भी सबका मन मोह लिया ,
खोए – खोए चांद ने भी हर्ष का बिंदु टोह लिया ।।
तारों के गढ़ में समूह नृत्य का भूचाल था ,
ऊंचे – ऊंचे उछाल कर सागर का भी यही हाल था ।
व्याकुल हुई लहरों ने भी खुशी के आंसू बरसाए ,
महकती गंध ने नदियों के दिल भी हर्षाए ।।
कांटों के बागों में फूलों की गंध महकी थी ,
पाकर नूर खुदा का हर कली – टहनी चहकी थी ।
हर तरफ बहारें छाने लगी ,
बुराई नतमस्तक हो शर्माने लगी ।।
पाप नाश हेतु खुदा ने यह दिन चुना था ,
स्वयं अवतरित हुए खुदा ये पहली बार हुआ था ।
मानुष के चोले में रूहानी ताकत ने उद्धार किया ,
पाप की भट्टी में सड़ रहे जीवों को भव पार किया ।।
एक ही नूर खुदा का एक ही स्वरूप हुए ,
झलका नूर महका संसार , भ्रम सब दूर हुए ।
मिटाकर दुख-दर्द भक्ति का ऐसा दीप जलाया ,
रहमत कर सब जग को रूहानियत से महकाया ।।
मैं मांगू दुआ ये तुमसे ,
एक पल भी ना हो दूर मुझसे ।
संभाल कर सब की रहमत बरसाते रहना ,
गम में डूबे हुओ को भी हंसाते रहना ।।
लेखक – कुलदीप स्वतंत्र
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