बरनावा। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि लोग परमपिता-परमात्मा को, उस ओउम, हरि, अल्लाह, गॉड, ख़ुदा, राम को पाने के लिए, उसे ढूंढने के लिए जंगलों, पहाड़ों, उजाड़ों में जाते हैं, शायद अज्ञानवश या कोई रिद्धि-सिद्धि के लिए, शायद वैराग्य में, त्याग में भगवान के लिए जाते हों तो कितनी हैरानीजनक बात है कि आप उसे बाहर ढूंढ रहे हो और वो आपके अन्दर बैठा राम आवाज दे रहा है कि अरे मैं तो कण-कण में रहता हूँ तो तेरा शरीर भी उसी कण में आ गया, मैं तेरे अन्दर हूँ, अन्दर से ढूंढ तुझे जरूर मिल जाऊंगा। पर अन्दर उस परमपिता परमात्मा को पाने के लिए अपने विचारों का शुद्धिकरण करना होगा। अपने ख्यालों का शुद्धिकरण करना होगा।
पाखंडवाद, ढोंगे, ढकोसले कभी भी इन्सान को परमात्मा से नहीं मिलाते। बहुत सारे पाखंड हैं, बहुत सारे ढोंग हैं, जिसमें समाज उलझकर रह गया है। दिनों का चक्कर पड़ गया। कोई कहता है फलां दिन अच्छा है, कोई कहता है कि नहीं, फलां दिन अच्छा है। अरे भगवान ने, परमात्मा ने दिन-रात बनाए हैं, ताकि इन्सान कहीं लोभ-लालच में आराम ही ना करे और इसका दिमाग रूपी पुर्जा हिल जाए, इसलिए दिन-रात बना दिए, समय बना दिया और हमारे ही पूर्वजों से समय की गणना करवाकर ये बता दिया कि 24 घंटे हैं, आठ पहर हैं, जो भी उन्होंने बताया। ताकि सही समय पर आदमी सो जाए और सही समय पर उठकर काम-धंधे पर लग जाए।
तो परमपिता परमात्मा ने कोई दिन, कोई तारीख बुरी नहीं बनाई है। जैसे कर्म करोगे फल लाजमीं भोगेगे। संत, दया-कृपा की बात करते हैं, क्योंकि भगवान कृपा निधान है, दया का सागर है, रहमत का मालिक है। इसलिए जो संत, पीर-फकीर होते हैं, वो परमपिता परमात्मा से जुड़े होते हैं, वो भी यही बात कहते हैं। कोई भी उनसे कहेगा कि जी, मैं गलत कर्म कर बैठा, उनका काम होता है माफ कहना, क्योंकि जब तक वो वचन करते हैं कि ये एक हद है, कि आज के बाद मत करना, आप फिर भी वो ही चीज दोहराते हैं, तो संत तो माफ कर देंगे, लेकिन वो राम हो सकता है कर्मों का लेखा-जोखा लेगा। क्योंकि संत कभी किसी को बुरा कहते ही नहीं, ये तो इन्सान की मनघडंत बातें होती हैं, कितने भी संत, पीर-फकीर, गुरु साहिबान, महापुरुष आए हैं उन्होंने सच लिखा था, आज भी सच है और आने वाले समय में भी वो सच रहेगा।
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