जब मैं ब्याह कर नई-नई ससुराल पहुंची तो तब मेरे ससुर जी रिटायर हुए ही थे। बड़ी बहू होने के नाते मैंने उनसे कहा कि आप और माता जी अब हमारे साथ रहें। तब उन्होंने मुझे कहा कि अभी नहीं बेटी, अभी हमारी माता जी हैं, जब तक वे हैं, उनकी सही देखभाल करना हमारा परम कर्तव्य है।
अगर आज हम अपना ये कर्तव्य नहीं निभाएंगे तो कल जब हम बुजुर्ग अवस्था में पहुंचेंगे तो तुम लोगों से कैसे आस रखेंगे कि तुम हमारी सेवा करो। बहुत बड़ी बात उन्होंने मुझे बड़ी ही आसानी से समझा दी थी कि हम स्वयं उदाहरण बनकर ही अपनी आने वाली पीढ़ी को संस्कारों का खजाना कैसे दे सकते हैं।
परिवार की परंपरा पर हमें गर्व
सच तो यह है कि यही हमारे परिवार की परंपरा है, जिस पर हमें गर्व है। बावजूद इसके हम इस बात से इंकार नहीं कर सकते कि कुछ सालों में हमारे देश के सामाजिक और पारिवारिक ढांचे में बड़ा बदलाव देखा जा रहा है। इससे बुजुर्गों को लेकर लोगों की सोच भी बदली है। अच्छी स्वास्थ्य सुविधाओं के चलते लोगों की आयु अब बढ़ी है, वहीं संयुक्त जगह एकल परिवारों और कामकाजी जोड़ों के चलते बुजुर्गों की देखभाल के लिए घरवाले उपलब्ध नहीं हो रहे हैं।
साल 2017 में यूएन पॉपुलेशन एंड इंडिया की एक रिपोर्ट के अनुसार 60 वर्ष से अधिक उम्र वाले लोगों की जनसंख्या वर्ष 2015 तक 8 प्रतिशत की दर से बढ़ रही थी, जो साल 2050 के आते-आते 19 प्रतिशत तक पहुंचने की आशंका है। यानि फिलहाल 10 करोड़ बुजुर्गों की यह आबादी साल 2050 तक 30 करोड़ तक पहुंच जाएगी।
अब ये देखना ही दिलचस्प है कि यदि हम अपने बुढ़ापे को अच्छी तरह जीना चाहते हैं तो आज अपने पारिवारिक स्तर पर हमें बुजुर्गों के लिए जगह बनानी होगी, उन्हें अपने परिवार में सम्मान सहित शामिल करना होगा।
हमारी परंपरा की पैरोकारी करते हैं शोध
ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक शोध में यह साबित हुआ है कि जो बच्चे दादा-दादी के साथ रहते हुए बड़े होते हैं, उन्हें भावनात्मक उतार-चढ़ाव से जुड़ी समस्याएं कम होती हैं। वे विपरित परिस्थितियों से बेहतर ढंग से उबरते हैं। उनमें सुरक्षित होने की भावना प्रबल होती है।
2014 में बॉस्टन कॉलेज के एक रिसर्च में सामने आया कि दादा-दादी व बच्चों के बीच स्नेह भरे रिश्ते की वजह से जहां नाती-पोतों को बड़े होने पर डिप्रेशन जैसी समस्याओं की संभावना बेहद कम होती है, यह रिश्ता बुजुर्गों में जीवित रहने की ललक बनाए रखता है।
वहीं बैल्जियम में 7 से 16 वर्ष के 1151 बच्चों पर किए गए शोध में सामने आया कि जो बच्चे अपने बुजुर्गों के साथ रहते हुए बड़े होते हैं, वे बुजुर्गों के प्रति सहानुभूति रखते हैं और उनके साथ किसी तरह का भेदभाव नहीं करते।
-शिल्पा शर्मा
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