पंडित जवाहरलाल नेहरू हिमाचल प्रदेश के सुदूर इलाके के दौरे पर निकलने वाले थे। उनके जनसंपर्क अधिकारी मेजर शर्मा उनकी यात्रा की तैयारियां देख रहे थे। वे पंडित जी का स्वभाव जानते थे। भारत में कहीं भी पं. नेहरू जाते, तो जनता को उपहार देना नहीं भूलते थे। मेजर शर्मा ने अपने वरिष्ठ अधिकारी के सामने प्रस्ताव रखा कि सेब व टॉफियों की कुछ पेटियां साथ में रख ली जाएं, पर अधिकारी को यह प्रस्ताव बेकार लगा। उसने कहा- इसकी क्या जरूरत है? उन्हें वहां कौन से ग्रामीण लोग मिलेंगे, जो उपहार की आवश्यता पड़ेगी?
मेजर शर्मा निराश हुए। पर वे क्या कर सकते थे! लेकिन उनका मन नहीं माना और उन्होंने सेब व टॉफियों की दो पेटियां हवाई जहाज में बिना अपने अधिकारी को बताए चुपके से चढ़ा दी। सुबह चार बजे हवाई जहाज रवाना हुआ और सूर्योदय होते-होते पूरी टीम हिमाचल पहुंच गई। वहां के सुंदर प्राकृतिक दृश्यों ने पंडित जी का मन मोह लिया। पंडित जी के उतरते ही स्थानीय लोगों की भीड़ ने उन्हें घेर लिया, जिसमें कुछ नन्हे बच्चे भी थे। बच्चे तो नेहरू जी की कमजोरी थे। उन्हें देखते ही वे कह उठे- क्या इन बच्चों को देने के लिए हमारे पास कुछ है? तमाम अधिकारी एक-दूसरे का मुंह देखने लगे। तभी मेजर शर्मा ने सेब और टॉफियों की पेटियां नेहरू जी के सामने रख दी। नेहरू जी की प्रसन्नता की सीमा न रही। वे दोनों हाथों से बच्चों को टॉफियां और सेब लुटाने लगे। बच्चे भी नेहरू के हाथों यह उपहार पाकर अत्यंत प्रसन्न हुए। पंडित जी ने मेजर शर्मा की सूझबूझ की सराहना की। दूसरे अधिकारियों ने भी मेजर शर्मा से सीख ली।
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