भागलपुर के इशाकचक इलाके में रहने वाली दसवीं की छात्रा ने जबरन विवाह कराए जाने का विरोध कर दिया। शादी से पहले वह अपनी मां के साथ इशाकचक थाने पहुंच गई। पुलिस से मदद की गुहार लगाई। छात्रा की शिकायत को सुन पुलिस सक्रिय हो गई। जब मौके पर पहुंची तो वहां मौजूद लोगों ने कह दिया कि पारिवारिक समारोह है। पुलिस के पहुंचते ही कुछ ही देर में वहां मौजूद लोग भाग निकले। लोगों के चले जाने के बाद छात्रा घर जाने को तैयार नहीं थी। इस पर छात्रा के पिता को सख्त चेतावनी देकर छात्रा को घर भेज दिया गया। झुंझुनू कलक्ट्रेट परिसर में बीते सप्ताह एक रोचक घटना हुई। शादी करने पहुंची महिला ने अपनी उम्र से ज्यादा उम्र का दूल्हा देखा तो वह वहां से भाग गई। दौड़कर कलक्ट्रेट परिसर में जा घुसी। महिला के शोर-शराबा करने पर भीड़ इकठ्ठा हो गई। सूचना पर पुलिस मौके पर पहुंची। जानकारी के मुताबिक आसाम निवासी महिला ने अपनी उम्र से अधिक के व्यक्ति को दूल्हे के रूप में देखा तो भाग गई। पुलिस को देख कथित दूल्हा भी भाग गया।
तमाम प्रयासों के बाबजूद हमारे देश में बाल विवाह जैसी कुप्रथा का अन्त नहीं हो पा रहा है। भारत में बेटी-बचाओ-बेटी पढ़ाओ जैसे अभियान के शुरू होने के बावजूद हर सात सेकेंड में एक नाबालिग बेटी की अपने से दोगुने उम्र के व्यक्ति के साथ जबर्दस्ती शादी करा दी जा रही है। बाल विवाह मनुष्य जाति के लिए एक अभिशाप है जो आज भी दुनिया के कई कोनों में फल-फूल रहा है। यह जीवन का एक कड़वा सच है कि आज भी छोटे-छोटे बच्चे इस प्रथा की भेंट चढ़े जा रहे हैं। भारत में ही नहीं बल्कि दुनिया के कई हिस्सों में बच्चे बाल-विवाह के बंधन में बांध दिए जाते हैं। भारत में यह प्रथा लम्बे समय से चली आ रही है जिसके तहत छोटे बच्चों का विवाह कर दिया जाता है। आश्चर्य की बात तो यह है कि आज के पढ़े लिखे समाज में भी यह प्रथा अपना स्थान बनाए हुए है। जो बच्चे अभी खुद को भी अच्छे से नहीं समझते, जिन्हें जिन्दगी की कड़वी सच्चाईयों का कोई ज्ञान नहीं, जिनकी उम्र अभी पढ़ने लिखने की होती है उन्हें बाल विवाह के बंधन में बांधकर क्यों उनका जीवन बर्बाद कर दिया जाता है।
हाल ही में संयुक्त राष्ट्र बाल निधि (यूनिसेफ) ने एक रिपोर्ट फैक्टशीट चाइल्ड मैरिजेज 2019 जारी की है जिसके अंतर्गत कहा गया है कि भारत के कई क्षेत्रों में अब भी बाल विवाह हो रहा है। इसमें कहा गया है कि पिछले कुछ दशकों के दौरान भारत में बाल विवाह की दर में कमी आई है लेकिन बिहार, बंगाल और राजस्थान में यह प्रथा अब भी जारी है। यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार, बिहार, बंगाल और राजस्थान में बाल विवाह की यह कुप्रथा आदिवासी समुदायों और अनुसूचित जातियों सहित कुछ विशेष जातियों के बीच प्रचलित है। रिपोर्ट में कहा गया है कि बालिका शिक्षा की दर में सुधार, किशोरियों के कल्याण के लिये सरकार द्वारा किये गए निवेश व कल्याणकारी कार्यक्रम और इस कुप्रथा के खिलाफ सार्वजनिक रूप से प्रभावी संदेश देने जैसे कदमों के चलते बाल विवाह की दर में कमी देखने को मिली है।
रिपोर्ट के अनुसार 2005-2006 में जहां 47 फीसदी लड़कियों की शादी 18 साल की उम्र से पहले हो गई थी वहीं 2015-2016 में यह आंकड़ा 27 फीसदी था। यूनिसेफ के अनुसार अन्य सभी राज्यों में बाल विवाह की दर में गिरावट लाए जाने की प्रवृत्ति दिखाई दे रही है किंतु कुछ जिलों में बाल विवाह का प्रचलन अब भी उच्च स्तर पर बना हुआ है।
यूनिसेफ की एक रिपोर्ट के अनुसार हमारे देश में 47 फीसदी बालिकाओं की शादी 18 वर्ष से कम उम्र में कर दी जाती है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 22 फीसदी बालिकाएं 18 वर्ष से पहले ही मां बन जाती हैं। यह रिपोर्ट हमारे सामाजिक जीवन के उस स्याह पहलू कि ओर इशारा करती है ,जिसे अक्सर हम रीति-रिवाज व परम्परा के नाम पर अनदेखा करते हैं। तीव्र आर्थिक विकास ,बढती जागरूकता और शिक्षा का अधिकार कानून लागू होने के बाद भी अगर यह हाल है, तो जाहिर है कि बालिकाओं के अधिकारों और कल्याण की दिशा में अभी काफी कुछ किया जाना शेष है। भारत में बाल विवाह जैसी सामाजिक बुराई को खत्म करने में खास समस्याएं रही हैं। मसलन 14 साल से कम उम्र की बच्चियों में बाल विवाह की दर कम है, लेकिन 15-18 साल तक की किशोरियों को शादी के बंधन में जबरन जोड़ दिया जाता है। कम उम्र में शादी के बाद जल्दी गर्भवती होने से महिला और बच्चे की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
यूनिसेफ की रिपोर्ट के अनुसार गरीबी, लड़कियों की शिक्षा का निम्न स्तर, लड़कियों को आर्थिक बोझ समझना, सामाजिक प्रथाएँ एवं परंपराएँ बाल विवाह के प्रमुख कारण हैं। भारत में बाल विवाह पर रोक संबंधी कानून सर्वप्रथम सन् 1929 में पारित किया गया था। बाद में सन् 1949, 1978 और 2006 में इसमें संशोधन किये गए। बाल विवाह निषेध अधिनियम 2006 के नए कानून के तहत बाल विवाह कराने पर 2 साल की जेल एक लाख रुपए का दंड निर्धारित किया है।
अगर इस कुप्रथा को जड़ से खत्म करना है तो इसके लिए समाज को ही आगे आना होगा तथा बालिकाओं के पोषण, स्वास्थ्य, सुरक्षा और शिक्षा के अधिकार को सुनिश्चित करना होगा। समाज में शिक्षा को बढ़ावा देना होगा। अभिभावकों को बाल विवाह के दुष्परिणामों के प्रति जागरुक करना होगा। सरकार को भी बाल विवाह की रोकथाम के लिये बने कानून का जोरदार ढंग से प्रचार-प्रसार तथा कानून का कड़ाई से पालन करना होगा। बाल विवाह प्रथा के खिलाफ समाज में जोरदार अभियान चलाना होगा। साथ ही साथ सरकार को विभिन्न रोजगार के कार्यक्रम भी चलाना होगा ताकि गरीब परिवार गरीबी की जकड़ से मुक्त हो सकें और इन परिवारों की बच्चियां बाल विवाह का निशाना न बन पाएं। बाल विवाह एक सामाजिक समस्या है। सिर्फ कानून के भरोसे बालविवाह जैसी कुप्रथा को नहीं रोका जा सकता है। रमेश सर्राफ धमोरा
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