(सच कहूँ न्यूज) हाल ही में भारत सरकार के पर्यावरण मंत्रालय की एक समिति जीईएसी ने देश में जीएम सरसों के व्यावसायिक उत्पादन की अनुमति देने की सिफारिश की है जिसे पर्यावरण मंत्रालय ने तुरंत ही जीएम सरसों की डीएमएच-11 की किस्म के विकासकर्ता प्रो. दीपक पेंटल को पत्र भेजकर अनुमति भी दे दी है। यह अनुमति कोई सामान्य बात नहीं है। हालांकि फिलहाल सर्वोच्च न्यायालय ने सरकार के इस फैसले पर रोक लगा दी है, लेकिन यदि जीएम सरसों को अनुमति दे दी जाती है तो यह किसी भी खाद्य जीएम को मिलने वाली पहली अनुमति होगी।
इसके स्वास्थ्य, पर्यावरण, मधुमक्खी आदि पर प्रभावों की खूब चर्चा हो ही रही है और वे सब लोग जो जीएम की वर्षों से खिलाफत कर रहे हैं, वे पर्यावरण, स्वास्थ्य, जैव विविधता, मधुमक्खी, रोजगार, पोषण आदि विषयों को लेकर खासे चिंतित हैं। दिलचस्प बात यह है कि सरकारी पक्ष एक बात पर जोर दे रहा है कि देश में बड़ी मात्रा में खाद्य तेलों का आयात हो रहा है, जिसमें अधिकांश जीएम तेल ही हैं। उनका कहना है कि डीएमएच 11 की उत्पादकता अधिक है, जिससे देश में सरसों का उत्पादन बढ़ सकता है, जिससे किसान की आमदनी बढ़ेगी और सरसों का उत्पादन भी, जिससे खाद्य तेलों में देश आत्मनिर्भर हो जाएगा, और विदेशों से आयात घट जाएंगे। सरकारी तंत्र का यह तर्क असत्य है कि डीएमएच 11 अपनाकर हम देश में सरसों का उत्पादन बढ़ाकर दुनिया पर अपनी निर्भरता कम कर सकते हैं और बहुमूल्य विदेशी मुद्रा बचा सकते हैं।
बल्कि वास्तविकता यह है कि पहले से ही देश में बेहतर किस्में उपलब्ध हैं, आवश्यकता इस बात की है कि इन किस्मों को देश भर में बढ़ावा दिया जाये और किसानों की आमदनी बढ़ाई जाये। जब वैज्ञानिकों ने सरकार के इस तर्क को चुनौती दी, तो भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद्् ने स्वयं यह स्वीकार किया कि जीएम सरसों से आयातों पर निर्भरता समाप्त करने की बात सत्य नहीं है। रही बात, जीएम अपनाकर विदेशी मुद्रा बचाने की, यह पूर्णतया स्वप्न ही है, क्योंकि इससे विदेशी मुद्रा बचना तो दूर, हमारे खाद्य निर्यातों से अर्जित की जाने वाली विदेशी मुद्रा पर भी गाज गिरेगी। ऐसा इसलिए है क्योंकि अभी तक हमारे देश में उत्पादित खाद्य पदार्थ जीएम नहीं हैं, इसलिए जिन देशों में जीएम प्रतिबंधित है वे हमसे आसानी से आयात कर लेते हैं, लेकिन जैसे ही जीएम का हमारे खाद्यों में प्रवेश हो जाएगा, वे हमसे आयात करने से परहेज करेंगे।
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