किसी ने सत्य कहा है-‘जहां चाह वहाँ राह।’ जब किसी व्यक्ति में अभिव्यक्ति की लौ प्रज्वलित हो जाए, तब कोई व्यवधान उसकी राह को रोक नहीं सकता। ऐसा नहीं था कि शिष्या मीरा बहन का भारत में आगमन, जिसे एक अलौकिक घटना ही कहा जाएगा। कहाँ एक एडमिरल की लाडली बेटी, सुख-सुविधाओं में पली-बढ़ी और कहाँ महात्मा गाँधी का साबरमती आश्रम, जहाँ है कष्टों एवं असुविधाओं से भरा जीवन! लेकिन वह जिद्द करती है कि वह भारत जरूर जाएगी। माता-पिता ने बहुत समझाया -‘पागल हो गई है क्या, वहाँ का कष्ट तुमसे सहन न होगा मत जाओ।’ लेकिन वह मानती नहीं।
उसके ढृढ़सकल्प के आगे किसी कि नहीं चली। पूर्व जन्म का कौन-सा संस्कार है? ईश्वर कि क्या इच्छा है कि वह खिंचती हुई भारत भूमि पर पदार्पण कर गई। साबरमती आश्रम में कदम रखते ही ऐसा लगा मानो उसके सपनों का संसार मिल गया। महात्मा गाँधी के निकट पहुँचकर उसने झुककर चरणस्पर्श किया। गाँधी जी ने दोनों हाथोें से उसे उठाया और कहा,‘आज से तुम मेरी पुत्री हुुई मीरा।’ गाँधीजी ने उसे आदेश दिया,‘तुम शौचालय की सफाई करोगी, सूत कातोगी और सोओगी इस कुश की बनी चटाई पर।’ मीरा ने ऐसा कठिन काम सहर्ष स्वीकार किया और वह गाँधीजी के निकट उनकी छाया की तरह रहने लगी।
लक्ष्मी जी की कृपा
एक सेठ के चार बहुएँ आई। वे उग्र व असहिष्णु स्वभाव कि थीं। आपस में रोज लड़तीं, घर में दिन-रात कलह मचा रहता। इससे खिन्न होकर लक्ष्मी जी ने वहाँ से जाने कि ठानी। रात को लक्ष्मी ने उस सेठ को स्वप्न दिया कि अब मैं जा रही हूँ। यह कलह मुझसे देखी नहीं जाती। जहाँ ऐसे लड़ने वाले रहते हों, वहाँ मैं नहीं रह सकती। सेठ बहुत गिड़गिड़ाया और रोने लगा, लक्ष्मी के पैरों में गिर गया और कहा, मैं आपका अनन्य भक्त हूँ, मुझे छोड़कर आप जाए नहीं। लक्ष्मी को उस पर दया आ गई। लक्ष्मी ने कहा,‘कलह के स्थान पर मेरा ठहर सकना तो संभव नहीं। ऐसी स्थिति में अब तेरे घर तो किसी भी प्रकार नहीं रहूँगी, पर तुझे माँगना हो तो एक वरदान मुझसे माँग ले।’ धनिक ने कहा,‘अच्छा माँ यही सही। आप यह वरदान दो कि मेरे घर के लोगों में प्रेम और एकता बनी रहें।’ लक्ष्मी ने तथास्तु कहकर वरदान दे दिया और वहाँ से चली गई। दूसरे दिन से सब लोग प्रेम से रहने लगे और मिल-जुलकर काम करने लगे। सेठ ने स्व्प्न देख कि लक्ष्मीजी घर मे फिर आ गई। उन्हें प्रणाम किया और पुन:पधारने के लिए धन्यावाद दिया। लक्ष्मी ने कहा,‘इसमें धन्यावाद कि कोई जरूरत नहीं है। मेरा उसमें कुछ अनुग्रह भी नहीं, जहाँ एकता होती है और प्रेम होता है, वहाँ मैं बिना बुलाए ही पहुँच जाती हूँ।’
अन्य अपडेट हासिल कने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।