खेल के मैदान में दो टीमें खेलती हैं और जीत व हार खेल के दो पहलू होते हैं। खेल का मैदान युद्ध का मैदान नहीं होता। चैपियंस ट्राफी के फाईनल में टीम इंडिया की हार निराशाजनक है और इसकी समीक्षा करने के साथ-साथ भविष्य की तैयारी पर भी विचार करना चाहिए, किन्तु खेल में जीत हार को दो देशों में युद्ध जैसे माहौल में तबदील कर देना खेल भावना को ठेस पहुंचाना है।
इस मामले में भारतीय टीम तारीफ के काबिल है, जिसने खेल की भावना को कायम रखते हुए हार के बाद विजयी टीम को बधाई दी और उनके साथ खिलाड़ियों वाला सलूक किया, किन्तु सोशल मीडिया पर मैच से पहले ही कुछ हुलड़बाज लोगों ने ऐसी शब्दावली का प्रयोग किया, जैसे क्रिकेट का मैच नहीं, बल्कि भारत-पाकिस्तान के बीच परमाणु युद्ध होने जा रहा हो।
इस मामले में पाकिस्तान के लोग भी कम नहीं थे, जो दर्शक कम व युद्ध के सिपाही ज्यादा प्रतीत हो रहे थे। स्टेडियम में मैच की समाप्ती के बाद पाकिस्तान के कुछ बड़बोले दर्शकों ने भारतीय खिलाड़ियों पर भद्दी टिपणियां की। इसके बावजूद भारतीय खिलाड़ी शान्त रहे। इसी तरह पाकिस्तान के एक टीवी एंकर ने भारत के सियासी नेताओं व खिलाड़ियों पर शर्मनाक टिपणी कर दी।
उस एंकर से कोई पूछने वाला हो कि क्रिकेट के मैच में सियासत कहां से आ गई? क्रिकेट के मैच में जीत व हार से ना तो मकबूजा कशमीर भारत को मिल गया है और ना ही पाकिस्तान जम्मू-कशमीर पर कब्जा कर सकता है। भारतीय मीडिया को भी चाहिए था कि ऐसी बेहूदा हरकत करने वाले पाकिस्तानी एंकर की खबर को तवज्जों देने से किनारा ही किया जाता।
हुलड़बाज दर्शकों व प्रशंसकों को पाकिस्तान के क्रिकेट प्रेमी बशीर मोहम्मद से सबक लेने की जरूरत है, जो भारतीय क्रिकेटरों का दीवाना है। भारतीय खिलाड़ी बशीर मोहम्मद के लिए मैच की टिकट का प्रबंध करते रहे हैं।
इस बीच मीरवाईज जैसे अलगावबादी नेता की तंग भी सोच खुल कर जग जाहिर हुई है। मीरवाईज पाकिस्तान को जीत की बधाई देते तो कोई एतराज वाली बात नहीं थी, लेकिन वह पाकिस्तान की जीत पर जम्मू कश्मीर में ईद का माहौल कह कर कश्मीर व पाकिस्तान के बीच अंतर को भूल गए। मीरवाईज में अगर जरा सी भी नैतिकता होती, तो वह पाकिस्तान के साथ-साथ भारत की हाकी टीम को भी जरूर बधाई देते।
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