सच कहूँ/संदीप सिंहमार। हिसार। अपनी शिक्षा के बल पर पूरी दुनिया में विश्व गुरु बनने वाले भारत देश के निजी शिक्षण संस्थानों के गुरुजन वर्तमान में आजीविका के लिए तरस रहे हैं। यह बात पढ़ने में सुनने में छोटी सी जरूर लगती है लेकिन सच्चाई यह है की वैश्विक महामारी कोविड-19 के दौर में इस शिक्षकों के रोजगार में अनिश्चितता आई है। कोविड-19 की पहली लहर से लेकर वर्तमान तक इन संस्थानों के लाखों की संख्या में शिक्षक यह समझ नहीं पा रहे हैं कि उन्हें उनका वेतन मिलेगा या नहीं।
मार्च 2020 में जब देश में सबसे पहले संपूर्ण लॉकडाउन लगा था तो तब सभी सरकारी वह गैर सरकारी शिक्षण संस्थानों को अनिश्चित समय के लिए बंद कर दिया गया था। दुर्भाग्य से ऐसे समय पर इन शिक्षा के मंदिरों को बंद किया गया जब इनमें पढ़ाई अपने चरम पर होती है और इसी दौरान विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में फीस का भुगतान भी किया जाता है।
राहत पैकेज में भी शामिल नहीं:-
खास बात यह है कि कोविड-19 की पहली व दूसरी लहर के दौरान देशभर में शिक्षण संस्थान सरकार ने बंद कर दिए। लेकिन केंद्र व राज्य सरकारों ने इन निजी शिक्षण संस्थाओं में कार्य करने वाले गुरुजनों के रोजगार के बारे में किसी ने नहीं सोचा। वर्तमान में भी निजी शिक्षण संस्थान व उनके सभी कर्मचारी इसी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। लेकिन ध्यान किसी भी राज्य व केंद्र सरकार का नहीं है। यदि ऐसा ही चलता रहा तो अपनी आजीविका की चिंता में डूबा रहने वाला शिक्षक कैसे तनाव मुक्त होकर शिक्षा दे पाएगा? यह सबसे बड़ा सोचने का सवाल है।
किसी भी प्रकार की योजना बनाएं बिना स्कूलों को बंद करने का काम सरकार ने किया है तो ऐसी स्थिति में सरकार को निजी स्कूलों के शिक्षकों की सैलरी का भी प्रबंध करना चाहिए या फिर स्कूल खोल देना चाहिए ताकि पहले की तरह शिक्षा कार्य सुचारू रूप से चल सके। सरकार की गलत नीति का ही नतीजा है कि स्कूल आज आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहे हैं। –सत्यवान कुंडू, प्रदेशाध्यक्ष हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ
स्कूल बंद होने के कारण फीस की रिकवरी 10 फीसदी भी नहीं हो पाई है। जिसकी वजह से शिक्षकों के रोजगार पर प्रभाव पड़ा है। इतना ही नहीं शिक्षण संस्थान कर्ज में डूब गए है। सरकार को जल्द ही राहत पैकेज देकर शिक्षण संस्थानों को बचाना चाहिए।
-नरेंद्र सेठी, प्रदेशाध्यक्ष, सर्व हरियाणा प्राइवेट स्कूल संघ
मानसिक स्वास्थ्य पर पड़ा प्रभाव
स्कूल बंद होने से वेतन में अनिश्चितता आने के कारण शिक्षकों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ा है। सबसे ज्यादा मानसिक प्रभाव महिला शिक्षकों को उठाना पड़ रहा है। नई शिक्षा नीति में शिक्षा व्यवस्था को सुदृढ़ करने की बात कही गई है,लेकिन लॉकडाउन के दौरान सरकारों ने इस तरफ कोई ध्यान नहीं दिया।
-डॉ. संदीप सिहाग नैदानिक मनोवैज्ञानिक(शिक्षा)
90 फीसदी शिक्षकों के रोजगार पर हुआ असर:
यदि 10 फीसदी बड़े शिक्षण संस्थानों को छोड़ दिया जाए तो देशभर में 90 फीसदी निजी शिक्षण संस्थानों के शिक्षकों के रोजगार पर संकट के बादल छा गए। हालांकि स्कूल बंद रहने के दौरान भी इन शिक्षकों ने आॅनलाइन तरीके से पढ़ाई करवा कर अपना कर्तव्य का पालन भी किया,लेकिन शिक्षण संस्थानों में फीस की अदायगी न होने के वजह से वेतन में अनिश्चितता आ गई। या यह कहे आधे से ज्यादा शिक्षकों का रोजगार छिन गया तो भी किसी प्रकार की कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी। क्योंकि ग्रामीण क्षेत्रों में ऐसे छोटे-छोटे स्कूल भी हैं जिनका अपना किसी प्रकार का कोई बजट नहीं होता। ऐसी स्थिति में वे अपने शिक्षकों का वेतन कैसे दें? यह भी सबसे बड़ा सवाल है?
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