विश्व स्वास्थ्य संगठन का भविष्य

Future of the World Health Organization
राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने यह कहते हुए विश्व स्वास्थ्य संगठन को अमरीका द्वारा दी जाने वाली धन राशि का भुगतान निलंबित कर दिया है कि संगठन ने कोरोना वायरस के बारे में चीन की गलत जानकारी को छुपाया। उन्होंने कहा कि कोरोना वायरस के प्रसार पर लीपापोती करने में विश्व स्वास्थ्य संगठन की भूमिका की जांच की जा रही है। इस संगठन को यह एक बडा झटका था क्योंकि ऐसा माना जाता रहा है कि यह संगठन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से प्रभावित हुए बिना कार्य करता है।
विश्व स्वास्थ्य संगठन अपने वित्त पोषण का सबसे बडा हिस्सा अमरीका से प्राप्त करता है और अमरीका द्वारा उस पर इस कोरोना वायरस संकट के कुप्रबंधन का आरोप लगाया जा रहा है कि उसने सूचना को छुपाया है और उसे समय पर पारदर्शी ढंग से विश्व समुदाय तक नहीं पहुंचाया है। अमरीका द्वारा यह कदम तब उठाया गया जब चीन ने कोरोना वायरस की उत्पति के संबंध में अनुसंधान पत्र के प्रकाशन पर रोक लगा दी। अमरीकी राष्ट्रपति के अनुसार विश्व स्वास्थ्य संगठन लगता है चीन केन्द्रित बन गया है और वह समय रहते हुए इस महामारी के प्रसार की घोषणा नहीं कर पाया। अमरीका में रिपब्लिकन पार्टी के सांसदों ने विश्व स्वास्थ्य संगठन से कहा है कि वह 19 अगस्त 2019 से लोक स्वास्थ्य के बारे में चीन सरकार और चीन की कम्यूनिस्ट पार्टी के साथ हुए पत्र व्यवहार को सार्वजनिक करे साथ ही यह भी बताए कि चीन में इस महामारी से कितने लोग संक्रमित हुए और कितने लोगों की मौत हुई। वे चाहते हैं कि अमरीका द्वारा उन संगठनों को धन दिया जाए जो विश्व के सभी देशों के हितों का समान रूप से ध्यान रखते हैं।
यह टिप्पणी इस अंतर्राष्ट्रीय संगठन की तटस्थता के बारे में संदेह पैदा करता है। अमरीका विश्व स्वास्थ्य संगठन को सर्वाधिक धन देता है और इसका वार्षिक अंशदान 450 मिलियन डॉलर है जो संगठन के बजट का लगभग चौथाई है। यह खबर मिली है कि संगठन अमरीका द्वारा उसे दिए जाने वाले धन पर रोक के प्रभाव की समीक्षा कर रहा है और उसे संगठन के कामकाज को बेरोकटोक करने के लिए इस अंतर को पूरा करना होगा। अमरीका द्वारा विश्व स्वास्थ्य संगठन के वित्त पोषण को निलंबित करने पर गंभीर चिंता व्यक्त करते हुए चीन ने अपने अंशदान में लगभग 45 मिलियन डॉलर की वृद्धि का संकेत दिया है। किंतु इससे भरपाई नहीं हो पाएगी। अमरीका में और अन्य देशों में लोगों की राय है कि विश्व स्वास्थ्य संगठन या मानवीय कार्यों में कार्यरत किसी संगठन का वित्त पोषण निलंबित करने का यह सही समय नहीं है।
कोरोना वायरस का मुकाबला करने के अलावा विश्व स्वास्थ्य संगठन पोलियो, चेचक, इबोेला, एचआईवी, क्षय रोग, कैंसर, मधुमेह, मानसिक बीमारियां आदि के उन्मूलन में भी कार्यरत है। जिन बीमारियों का उन्मूलन भी किया गया है उनकी वापसी को रोकने के लिए यह संगठन निरंतर प्रयासरत रहता है। संगठन विभिन्न देशों की स्वास्थ्य प्रणाली के साथ मिलकर कार्य करता है और जीवन रक्षक स्वास्थ्य सेवाओं तक लोगों की पहुंच में सुधार के लिए प्रयास रत रहता है। कोरोना वायरस का मुकाबला करने के लिए सभी देशों को एकजुट होने की आवश्यकता है। उसके बिना गरीब, अमीर सभी देश संकट में आ जाएंगे। अभी यह स्पष्ट नहीं है कि कोरोना वायरस के प्रसार को मानवीय प्रयासों से रोका जा सकता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना वायरस के उपचार के लिए प्रभावी दवा की खोज के लिए वैश्विक प्रयास शुरू किए हैं। आज विश्व में कोरोना वायरस संक्रमण के 25 लाख से अधिक मामले हैं और सबसे अधिक 7 लाख से अधिक अमरीका में हैं। स्पेन और इटली में ये मामले 2 लाख तक पहुंचने वाले हैं। फ्रांस और जर्मनी में लगभग डेढ लाख हैं तो ब्रिटेन में एक लाख 20 हजार के करीब हैं। भारत में अभी ऐसे मामलों की संख्या 20 हजार से कम है और अन्य देशों की स्थिति में उसकी स्थिति अच्छी है। इस महामारी से 185 देश प्रभावित हैं और अब तक 1 लाख 60 हजार से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है।
चीन ने 23 जनवरी को वुहान में लॉकडाउन की घोषणा कर दी थी और विश्व स्वास्थ्य संगठन के महानिदेशक ने चेतावनी दी थी कि आपात स्थिति चीन के लिए है विश्व के लिए नहीं। तथापि इस वायरस के संपूर्ण विश्व में प्रसार की संभावना है। इस वायरस के खतरे के बारे में विशेषज्ञों की राय अलग अलग रही है। किंतु जनवरी के अंत तक वैश्विक आपदा की घोषणा कर दी गयी। अमरीका इस खतरे को पहले नहीं भांप पाया और उसने कोरोना महामारी को लेकर 13 जनवरी को राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा की। ऐसे समय में जब विश्व स्वास्थ्य संगठन की सेवाओं और विशेषज्ञता की सर्वाधिक आवश्यकता है उसे वित्तीय संकट में डालने की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। संगठन ने पोलियो, चेचक के उन्मूलन, पीत ज्वर के टीकाकरण तथा मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में अनेक उपलब्धियां प्राप्त की हैं। संगठन ने अपने कार्यों से विश्व स्वास्थ्य और रोग का प्रशासन संभाला है और वह विभिन्न देशों और संगठनों के बीच निगरानी मानदंडों और मानकों के प्रवर्तन और समन्वय का कार्य कर रहा है। संयुक्त राष्ट्र संघ के सभी संगठन अंतर्राष्ट्रीय राजनीति से अलग रहने चाहिए और विश्व स्वास्थ्य संगठन को राजनीति से बिल्कुल मुक्त रखा जाना चाहिए क्योंकि स्वास्थ्य और रोग अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं से अलग नहीं किए जा सकते किंतु अब यह धारणा गलत सिद्ध होती जा रही है।
वैश्वीकरण ने स्वास्थ्य के संर्वधन और रोग नियंत्रण के लिए अवसर और चुनौतियां दोनो ही पैदा की हैं। इससे संक्रामक रोगों के प्रसार में तेजी आयी है तो चिकित्सा, ज्ञान, स्वास्थ्य प्रणालियों, उपचार विधियों आदि के आदान प्रदान से चिकित्सा क्षेत्र मे अच्छी प्रगति भी हुई है। आज विश्व में यात्रा, व्यापार, संचार और संपर्क के बढ़ने से वैश्विक टीम वर्क की आवश्यकता है क्योंकि इसके चलते बीमारियों, सूचनाओं, विचारों, अधिकारों और दायित्वों का वैश्वीकरण हुआ है और इससे मानवता और यहां तक जीव और पादप जीवन भी प्रभावित हुआ है। लोक स्वास्थ्य आज स्थानीय विषय नहीं है अपितु यह एक वैश्विक विषय बन गया है। एक नया वैश्विक स्वास्थ्य युग स्वरूप ले रहा है जिसमें प्रयासों में सहयोग और समन्वय, सामग्री और मानव संसाधनों का संयुक्त प्रयोग, ज्ञान और सूचनाओं का प्रसार देखने को मिल रहा है। स्वास्थ्य और रोगों का अंतर्राष्ट्रीय प्रबंधन तभी संभव है जब हम वैश्विक मानदंड और मानक स्थापित करें।
कोरोना वायरस एक विनाशकारी महामारी है और इसने अंतर्राष्ट्रीय संगठनों की सीमाओं और शक्तिशाली देशों पर उनकी निर्भरता को उजागर कर दिया है। ये संगठन सूचनाओं के प्रसार के लिए सदस्य राष्ट्रों पर निर्भर रहते हैं और यही उनकी कमजोरी और शक्ति भी है। 73वां विश्व स्वास्थ्य सम्मेलन अगले माह आयोजित किया जाना है और उससे पूर्व विश्व स्वास्थ्य संगठन को और सुदृढ बनाने के लिए ठोस प्रस्ताव सामने लाए जाने चाहिए। साथ ही संगठन को अमरीका के आरोपों से मुक्त किया जाना चाहिए क्योंकि विश्व समुदाय को कोरोना महामारी के प्रसार की सच्चाई जानने का हक है और विश्व समुदाय को इसके विरुद्ध एकजुट होना होगा। संक्रामक कीटाणुओं को उत्पन्न करने और उनके प्रसार के बारे में विचारों और अटकलों के समक्ष विश्व नहीं टिक सकता है।
डॉ. एस सरस्वती
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