सच कहूँ डेस्क | आज आप पुरानी ऐतिहासिक इमारतों और किलों की खूबसूरती देख खुश हो जाते हैं। प्राचीन समय में हमारे यहाँ के लोग ऐसे विशालकाय और वैज्ञानिक निर्माण बिना किसी आधुनिक टेक्नोलॉजी और मशीन से बनाते थे। यह आज भी पूरे विश्व के लिए चर्चा का विषय हैं। भारत के यह निर्माण हिन्दू वास्तुशास्त्र और वास्तुकला का अनोखा संगम हैं। भारत का प्राचीन विज्ञान हमारे आज के आधुनिक विज्ञान से भी ज्यादा उन्नत था।
आइये जानते हैं भारत के एक महत्वपूर्ण गोलकोंडा किले के बारे में। यह किला भारत के दक्षिण में हैदराबाद में स्थित है। सातवीं शताब्दी में यह किला मिट्टी के रूप में था। जिसे बाद में 16 शताब्दी में सुल्तान कुलिकुतुब शाह के शासनकाल में एक विस्तृत और मजबूत रूप दिया गया। 62 सालों तक कुतुब शाही सुल्तानों ने वहा राज किया। लेकिन फिर 1590 में कुतुब शाही सल्तनत ने अपनी राजधानी को हैदराबाद में स्थानांतरित कर लिया था।
1687 ई. में इसे औरंगजेब ने जीत लिया था। यह गोलकोंडा उस समय सत्ता और प्रशासन का केंद्र था। यह किला ग्रेनाइट की एक पहाड़ी पर बना है।
किले में आठ दरवाजे और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से घिरा गोलकोंडा किला को 17वीं शताब्दी तक हीरो का प्रसिद्ध बाजार माना जाता था। दुनिया में आज के समय के महतवपूर्ण हीरे उस समय इसी किले में सुरक्षित रखे गए थे। इस किले को अपनी अद्भुत संरचना के कारण आर्कियोलॉजिकल ट्रेजर के ‘स्मारकों की सूची’ में भी शामिल किया गया है। गोलकोंडा का किला अलग-अलग चार किलो का मिश्रण हैं।
जिसमे कुल आठ दरवाजे हैं और पत्थर की तीन मील लंबी मजबूत दीवार से चारों ओर से घिरा है। इस किले में आठ प्रवेश द्वार हैं। किले के प्रवेश द्वार के सामने ही बड़ी दीवार बनी हुई है। यह दीवार राज्य को सैनिकों और हाथियों के आक्रमण से बचाती है। इसके साथ ही इस किले में मंदिर, मस्जिद, पत्रिका, अस्तबल और कई हॉल भी हैं। इस किले के निचले भाग में एक दरवाजा भी हैं जिसे विजय द्वार भी कहते हैं। इस विजय दरवाजे में ध्वनि अलार्म का भी अनुभव होता हैं। यह ध्वनि अलार्म पूरे विश्व में प्राचीन भारत के विज्ञान की अनूठी मिसाल हैं। इस ध्वनि अलार्म की आवाज 3 किमी तक सुनाई देती हैं।
आपातकालीन परिस्थितियों को बताने के लिए इस ध्वनि अलार्म का उपयोग किया जाता था।
कुछ रोचक जानकारी
- इस किले में एक 425 साल पुराना अफ्रीकन पेड़ हैं। जिसे स्थानीय लोग हतिया का झाड़ भी कहते हैं। यह पेड़ अरबियन व्यापारियों ने सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह को उपहार के रूप में दिया था।
- दर्या-ए-नूर, नूर-उल-ऐन हीरा, कोहिनूर, आशा का हीरा और रीजेंट डायमंड भारत के बाहर जाने से पहले गोलकोंडा के सुल्तान के पास ही इस किले में थे।
- हिन्दू लोग सुल्तान कुतुब शाह को मल्काभिराम के नाम से भी पुकारते थे।
- इस किले में साउंड एंड लाइट शो एक मुख्य आकर्षण का बिंदु है। इस शो के जरिये इस किले के इतिहास की कहानी बताई जाती है। ऐसा कहा जाता है कि इस किले में एक रहस्यमयी सुरंग है जो दरबार हॉल से शुरू होती है और किले के सबसे निचले भाग से होकर बाहर की तरफ ले जाती है। असल में इस सुरंग को
आपातकालीन समय में शाही परिवार के लोग बाहर जाने के लिये उपयोग करते थे।
गोलकोंडा शासक राजवंश - कई राजवंशों ने गोलकुंडा पर वर्र्षों तक शासन किया
- काकतीय राजा
- काममा नायक
- बहमनी सुल्तान
- कुतुब शाही वंश
- मुगल साम्राज्य
अनूठी वास्तुकला अब खो चुकी अपना आकर्षण
बदलते समय के साथ आज किले की अनूठी वास्तुकला अब अपना आकर्षण खो रही है। किले का वेंटिलेशन बिल्कुल शानदार है जिसमें विदेशी डिजाइन हैं। वे इतनी जटिल रूप से डिजाइन किए गए थे कि ठंडी हवा किले के अंदरूनी हिस्सों तक पहुंच सकती थी, जिससे गर्मी से राहत मिलती थी। किले के विशाल द्वार लोहे के बड़े नुकीले पत्थरों से सजाए गए हैं। इन पत्थरों ने हाथियों को किले को नुकसान पहुंचाने से रोका। गोलकोंडा का किला 11 किमी (6.8 मील) बाहरी दीवार से घिरा है। यह किले को मजबूत करने के लिए बनाया गया था।
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