हिंदी एक बार फिर चर्चा का विषय बनी हुई है। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने कहा है कि राजभाषा को देश की एकता का एक महत्वपूर्ण अंग बनाने का समय आ गया है। जब अन्य भाषा बोलने वाले राज्यों के लोग आपस में संवाद करते हैं, तो यह भारत की भाषा में होना चाहिए, न कि अंग्रेजी में। संसदीय राजभाषा समिति की बैठक की अध्यक्षता करते हुए उन्होंने कहा कि हिंदी को अंग्रेजी के विकल्प के रूप में स्वीकार किया जाना चाहिए। अमित शाह ने हिंदीभाषियों को यह भी संदेश दिया कि जब तक हम अन्य स्थानीय भाषाओं के शब्दों को स्वीकार कर हिंदी को सर्वग्राही नहीं बनाते हैं, तब तक इसका प्रचार-प्रसार नहीं किया जा सकेगा। गृह मंत्री अमित शाह का हिंदी को लेकर दिया गया सुझाव विपक्षी नेताओं को पसंद नहीं आया। उन्होंने इसे भारत के बहुलवाद पर हमला बताया और कहा कि वे हिंदी साम्राज्यवाद को लागू करने के कदम को विफल कर देंगे।
कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने ट्वीट किया कि हिंदी राजभाषा है, न कि राष्ट्रभाषा, जैसा कि राजनाथ सिंह ने संसद में गृह मंत्री रहते हुए कहा था। कर्नाटक के पूर्व मुख्यमंत्री और कांग्रेस के नेता सिद्धारमैया ने ट्वीट किया कि एक कन्नड़ के रूप में वे आधिकारिक भाषा को लेकर गृह मंत्री की टिप्पणी का कड़ा विरोध करते हैं। हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा नहीं है और हम इसे कभी नहीं होने देंगे। उन्होंने भाजपा पर गैर-हिंदी भाषी राज्यों के खिलाफ ‘सांस्कृतिक आतंकवाद’ के अपने एजेंडे को शुरू करने की कोशिश करने का आरोप लगाया। तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने कहा कि हिंदी पर अमित शाह का जोर भारत की अखंडता और बहुलवाद के खिलाफ है। यह देश की अखंडता को बर्बाद कर देगा। तृणमूल कांग्रेस ने कहा कि हम हिंदी का सम्मान करते हैं, लेकिन हम हिंदी थोपने का विरोध करते हैं। गृह मंत्री अमित शाह जिस तरह हिंदी के पक्ष में खड़े हुए हैं, हिंदी भाषियों को राजनीति से ऊपर उठ कर उनका समर्थन करना चाहिए।
यह सही है कि भारत अनेक भाषाओं का देश है और हर भाषा का अपना महत्व है तथा हमें उनका आदर करना चाहिए। लेकिन पूरे देश में एक ऐसी भाषा का होना बेहद जरूरी है, जो दुनिया में उसकी पहचान बने। हिंदी लगभग 40 फीसदी भारतीयों की मातृभाषा है। अंग्रेजी और मंदारिन के बाद हिंदी तीसरी सबसे बड़ी भाषा है। लेकिन यह राष्ट्रभाषा नहीं है। इसे राजभाषा का दर्जा मिला हुआ है। हम सब जानते हैं कि नौकरशाहों की भाषा अंग्रेजी है। राजकाज की भाषा हिंदी होते हुए भी हिंदी भाषी राज्यों में भी ज्यादातर सरकारी कामकाज अंग्रेजी में ही होता है। यदि हिंदी को जन-जन की भाषा बनाना है, तो उस पर सार्थक विमर्श करना होगा। सबसे पहले तो हिंदी पट्टी के लोगों को अपनी भाषा पर गर्व का भाव होना चाहिए। यह जान लीजिए कि सरकारी प्रयासों से हिंदी का भला होने वाला नहीं है। यह तर्क समझ से परे है कि हिंदी सीखने से क्षेत्रीय भाषा समाप्त हो जायेगी। हिंदी देश की भाषा बन सकती है इस पर गर्व करिए और सर्वग्राही बनिए।
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