निराशा से गरिमापूर्ण जीवन की ओर

From despair to dignified life
कोरोना महामारी के कारण प्रवासी मजदूरों के संकट ने देश में श्रमिकों की स्थिति के बारे मे अनेक समस्याओं को उजागर किया है। ये समस्याएं नियोक्ताओं, श्रमिकों, श्रमिकों के गृह राज्य और जहां ये श्रमिक नियोजित हैं उनसे संबंधित हैं। इस संबंध में उत्तर प्रदेश सरकार ने अंतर-राज्य प्रवासी कामगार, रोजगार का विनियमन और सेवा दशाएं-1979 के अंतर्गत प्रवासी आयोग के गठन की घोषणा की है ताकि प्रवासी मजदूरों को राज्य की अर्थव्यवस्था के साथ जोड़ा जाए और उन्हें राज्य में ही रोजगार उपलब्ध कराया जाए।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ प्रवासी श्रमिकों के संकट से चिंतित हैं और उन्होंने यह भी कहा कि यदि कोई राज्य उत्तर प्रदेश से प्रवासी श्रमिक नियोजित करना चाहता है तो उसे राज्य सरकार की अनुमति लेनी होगी और उसे कामगारों को आय की गारंटी और सामाजिक सुरक्षा देनी होगी। कानूनी और व्यावहारिक दृष्टि से ये शर्तें कठिन हैं किंतु इनका उद्देश्य प्रवासी श्रमिकों के हितों की रक्षा करना है और यह भी स्पष्ट करता है कि राज्य सरकार इन श्रमिकों के हितों की रक्षा के लिए सक्रिय है। उत्तर प्रदेश सरकार ने कामगार श्रमिक ;सेवा आयोजन और रोजगारद्ध कल्याण आयोग का गठन किया है जिसे कामगारों को राज्य के भीतर समुचित रोजगार ढूंढने का कार्य दिया गया है। राज्य में 25 लाख से अधिक प्रवासी श्रमिक लौटे हैं। इस घोषणा के पीछे यह भावना है कि उत्तर प्रदेश के प्रवासी श्रमिकों की कुछ राज्यों ने इस संकट की घड़ी में देखभाल नहीं की है। इस आयोग के माध्यम से उत्तर प्रदेश सरकार इन मजदूरों को बुनियादी अधिकार, बीमा, राशन कार्ड आदि जैसी सुरक्षा उपलब्ध कराएगी और इन श्रमिकों के कौशल के बारे में आंकडे जुटाए जा रहे हैं।
प्रेस रिपोर्ट और राजनेता प्रवासी श्रमिकों की दुर्दशा के बारे में अनेक खबरें बता रहे हैं। राज्य और सामाजिक कार्यकर्ता मानव अधिकार के मुद्दों को उठा रहे हैं। किंतु श्रमिकों को सुरक्षा और रोजगार की मूल समस्या को नजरंदाज किया जा रहा है। प्रवासी श्रमिकों को भी अन्य श्रमिकों की तरह अधिकार और सुरक्षा दी जानी चाहिए। प्रत्येक भारतीय को किसी भी राज्य में रहने और काम करने का अधिकार है। प्रवासी श्रमिकों के संकट के कारण राज्य सरकारें इन श्रमिकों को अपने अपने राज्यों में रोजगार देने की योजनाएं बना रही हैं। कोरोना महामारी की वजह से यह सबसे बड़ी और गंभीर सामाजिक समस्या पैदा हुई है।
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान इस संबंध में दीर्घकालीन और अल्पकालीन योजनाओं के पक्ष में हैं। उन्होंने प्रवासी श्रमिकों में कुशल श्रमिकों के लिए रोजगार सेतु नामक योजना शुरू की है जिसके अंतर्गत इन श्रमिकों को कारखानों, वर्क शॉप, अवसंरचना परियोजनाओं आदि में रोजगार दिया जाएगा तथा राज्य सरकार प्रवासी श्रमिक और नियोक्ता के बीच में सेतु का काम करेगी तथा अकुशल श्रमिकों के लिए श्रम शक्ति अभियान शुरू किया गया है। बिहार में कामगारों के कौशल के बारे में आंकडे जुटाए जा रहे हैं।
हरियाणा सरकार प्रवासी मजदूरों की वापसी के लिए आर्थिक कार्यकलापों को शुरू कर रही है। उत्तराखंड ने मुख्यमंत्री स्वरोजगार योजना शुरू की है। राजस्थान ने कौशल प्रशिक्षण कार्यक्रम शुरू किए हैं। गुजरात सरकार ऐसे श्रमिक जो वापस आएंगे उन्हें वेतन बढ़ाकर देगी। पंजाब रोजगार के नए अवसरों के बारे में सर्वेक्षण कर रहा है। झारखंड सरकार ने लेह में फंसे राज्य के 60 प्रवासी श्रमिकों के लिए उड़ान की व्यवस्था की है। राज्य सरकार अंडमान और पूर्वोत्तर राज्यों में फंसे अपने श्रमिकों को वापस लाने के लिए विमान सेवा की व्यवस्था कर रही है। नागालैंड प्रवासी श्रमिकों के लिए नई रणनीति बना रहा है। सभी राज्य सरकारें प्रवासी श्रमिकों को वापस लेने के लिए उत्साहित नहीं हैं ।
कुछ राज्य सरकारों ने प्रवासी श्रमिकों को लाने वाली रेलगाडियों की अनुमति नहीं दी। दक्षिण और पश्चिमी राज्यों में उत्तरी और पूर्वोत्तर राज्यों से सर्वाधिक प्रवासी श्रमिक जुडे हुए हैं और प्रवासी श्रमिक संकट से दोनों राज्यों को नुक्सान हुआ है। उत्तर प्रदेश में प्रवासी श्रमिकों के लिए रोजगार ढूंढने की योजना पर कार्य किया जा रहा है। गांवों में सस्ती दुकानें और मकान उपलब्ध कराने की योजना चलायी जा रही है। प्रवासी श्रमिकों का स्किल मैप तैयार किया जा रहा है। योगी आदित्यनाथ ने स्वयं प्रवासी श्रमिकों से बात कर उन्हें भरोसा दिलाने का प्रयास किया है। हाल ही में सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों के लिए घोषित पैकेज के बाद आशा जगी है कि इन कामगारों को उनमें रोजगार मिलेगा।
अंतर-राज्य प्रवासी कामगार अधिनियम 1979 भारतीय श्रम कानूनों के अंतर्गत अंतर राज्य श्रमिकों की सेवा दशाओं को विनियमित करता है और इसका उद्देश्य उन श्रमिकों की सेवाओं की सुरक्षा करना है जो अपने राज्य से बाहर कार्य कर रहे हैं। यह ऐसे प्रतिष्ठानों पर लागू होता है जो पांच या उससे अधिक अंतर राज्य श्रमिकों को नियोजित करते हैं। ओडिशा में इस अधिनियम को लागू किया गया है। प्रवासी श्रमिकों को असंगठित कामगार पहचान संख्या दी गयी है जिसका प्रावधान 2008 में किया गया था। फिर भी प्रवासी मजदूरों के बारे में विश्वसनीय आंकडा उपलब्ध नहीं है।
इस कानून के अंतर्गत प्रवासी श्रमकिों को स्थानीय श्रमिकों के समान मजदूरी विस्थापन भत्ता, अन्य भत्ते, आवास, चिकित्सा भत्ता आदि सुविधाएं दी गयी हैं। इसमें नियोक्ता, ठेकेदार और राज्य सरकार की भूमिका और जिम्मेदारी भी तय की गयी है। अब इस अधिनियम के अंतर्गत पंजीकरण को आर्कषक बनाने की योजना बनायी जा रही है और इसमें पेंशन और स्वास्थ्य सुविधाएं जैसे सामाजिक लाभ भी जोड़े जा रहे हैं। आज सबसे बडी समस्या यह सुनिश्चित करने की है कि श्रमिकों के पलायन से बेरोजगारी न बढे और महामारी के समाप्त होने के बाद कामगारों का कार्य स्थल पर पुन: पलायन न हो।
लॉकडाउन के दौरान प्रवासी श्रमिकों की दशा में श्रमिकों की स्थिति के बारे में अनेक कमियां उजगर की हैं जिनके चलते उन्हें पलायन करना पड़ा है। प्रवासी श्रमिक को पुर्न परिभाषित करने की आवश्यकता है और उन्हें श्रम और अन्य कल्याण कानूनों के अंतर्गत लाए जाने की आवश्यकता है। इसके लिए एक नया कानूनी ढांचा बनाए जाने की आवश्यकता है। शहरीकरण, आधुनिकीकरण और विकास से जुड़ी आर्थिक वृद्धि प्रवासी श्रमिकों पर निर्भर करती है। इन श्रमिकों की दुर्दशा हमारे श्रम कानून की खामियों को उजागर करती है। हमें प्रवासी श्रमिकों की वर्तमान निराशाजनक स्थिति को एक गरिमापूर्ण जीवन में बदलना होगा और समेकित विकास के रूप में उन्हें अवसर उपलब्ध कराने होंगे। अन्यथा श्रमिकों की दुर्दशा जारी रहेगी।

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