चीन के विरूद्ध पनपती मैत्री

Friendship Against China

हिन्द महासगर में चीन के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए भारत और ऑस्ट्रेलिया ने एक-दूसरे के सैनिक अड्डों का इस्तेमाल करने का समझौता किया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और ऑस्ट्रेलिया के प्रधानमंत्री स्कॉट मॉरिसन के बीच वर्चुअल शिखर बैठक के दौरान हुए इस समझौते के बाद दोनों देशों के जंगी जहाज और फाइटर जेट एक दूसरे के सैन्य अड्डों का इस्तेमाल कर सकेंगे और साथ ही जरूरत पड़ने पर ईंधन ले सकेंगे। ऑस्ट्रेलिया से पहले भारत अमेरिका के साथ इस तरह का समझौता का चुका है।

इस समय न केवल भारत के साथ बल्कि ऑस्ट्रेलिया के साथ भी चीन के संबंध तनाव की स्थिति में है। यही कारण है कि भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच हुए समझौते को रणनीतिक दृष्टि से काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है। पिछले कुछ समय से ऑस्ट्रेलिया ने चीन के विरूद्ध मोर्चा खोल रखा है। कोरोना संक्रमण के मामले में वह चीन की भूमिका की जांच किए जाने के यूरोपिय संघ के प्रस्ताव का समर्थन भी कर रहा है। दक्षिण चीन सागर मामले में भी ऑस्ट्रेलिया ने चीन की आलोचना की थी। हांगकांग मसले पर भी ऑस्ट्रेलिया ने अमेरिका, ब्रिटेन और कनाडा के साथ मिलकर चीन के नए सुरक्षा कानून की ंिनंदा की है। ऑस्ट्रेलिया के रूख से बौखलाए चीन ने उसकी अमेरिकी कुत्ता कहकर आलोचना की है।

भारत और ऑस्ट्रेलिया दुनिया के दो बडे लोकतात्रिक देश है। साल 2009 में दोनों रणनीतिक साझेदार के रूप में एक-दूसरे के नजदीक आए । उसके बाद 2014 में प्रधानमंत्रियों के दौरे से दोनों देशों का रिश्ता और मजबूत हुआ। साल 2018-19 में भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच 20.92 अरब डॉलर का द्विपक्षीय व्यापार हुआ था। भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 5.17 अरब डॉलर का निर्यात किया था जबकि वहां से 15.75 अरब डॉलर की वस्तुओं का आयात किया था।

स्कॉट मॉरिसन जनवरी में भारत आने वाले थे, लेकिन ऑस्ट्रेलिया के जंगलों में लगी भीषण आग के कारण उस वक्त उनका दौरा टल गया था। मई में उनका कार्यक्रम फिर बना। लेकिन कोरोना महामारी के चलते वह इस दफा भी नहीं आ सके। ऐसे में मोदी और मॉरिसन ने वर्चुअल बैठक के माध्यम से मिलने का फैसला किया। अब ऑस्ट्रेलिया पहला ऐसा देश हो गया है, जिसके साथ भारत ने द्विपक्षीय वर्चुुअल बैठक की हैं।

भारत और ऑस्ट्रेलिया के बीच गहराती दोस्ती व्यापार और वाणिज्य की लिहाज से तो महत्वपूर्ण है ही, इंडो-पेसेफिक क्षेत्र के लिए भी अहम मानी जा रही है। लेकिन सवाल यह है कि अमेरिका जैसे बड़े और शक्ति संपन्न देश के साथ सुरक्षा समझौता करने के बाद भारत को ऑस्ट्रेलिया जैसे छोटे देश के साथ इस तरह के समझौते में बंधने की जरूररत क्यों पड़ी। दरअसल, हिंद प्रशांत क्षेत्र को लेकर भारत और ऑस्ट्रेलिया का समान दृष्टिकोण है। दोनों देश संप्रभुता व अंतरराष्ट्रीय कानूनों का सम्मान करते हुए नियम आधारित समुद्री व्यवस्था का समर्थन करते है। दोनों का मानना है कि महासागरों के शांत जल को कूटनीतिक दायरे से बाहर रखा जाना चाहिए।

इस समझौते के बाद जहां एक ओर भारत को इंडोनेशिया (कोकोज द्वीप समूह) के पास बने ऑस्ट्रेलिया के नौ सैनिक अड्डे के इस्तेमाल का अधिकार प्राप्त होगा वहीं दूसरी ओर ऑस्ट्रेलिया को भारत के अंडमाननिकोबार द्वीप समूह पर स्थित नौ सैनिक अड्डे के उपयोग की सुविधा प्राप्त हो सकेगी। इससे दोनों देशों की सेना हिंद महासागर में स्थित मलक्का स्टेट और आसपास के इलाके पर कड़ी नजर रख सकेगी। मलक्का स्टेट चीन का एक प्रमुख व्यापारिक जल मार्ग है। इस जल मार्ग के जरिये ही वह अपना सामान अफ्रीका और एशिया के देशों में पहुंच पाता है। चीन साउथ चाईना सी की तहर इस पूरे इलाके पर अपना दबदबा बनाए रखना चाहता है, ताकि उसकी व्यापारिक गतिविधियां बिना किसी बाधा के जारी रह सके।

दूसरी ओर चीन, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया की रणनीतिक गतिविधियों पर नजर रखने के लिए हिंद महासागर में ऑस्ट्रेलिया के पास एक सैन्य बेस का निर्माण करना चाहता है। इसके लिए चीन ने ऑस्ट्रेलिया के पडौसी देश सोलोमन आईलैंड और पापुआ न्यू गिनी पर डोरे डालने शुरू कर दिये है। कोरोना महामारी के कारण अर्थिक संकट से जूझ रहे है, इन देशों को चीन श्रीलंका, पाकिस्तान और नेपाल की तरह आर्थिक मदद देने के नाम पर कर्ज के जाल में फंसाना चाहता है।

अगर चीन अपने इरादों में कामयाब हो जाता है, तो फिर उसे आॅस्ट्रलिया के द्वार तक पहुंचने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। भारत के साथ भी चीन इस समय लद्दाख क्षेत्र में सीमा विवाद में उलझा हुआ है। ऐसे में ‘दुश्मन का दुश्मन दोस्त’ वाली रणनीति पर चलते हुए भारत ने ऑस्ट्रेलिया के साथ समझौता करके एक तरह से चीन के खिलाफ मोर्चा बंदी का काम किया है। कोरोना के बाद दुनिया के दूसरे देश जहां चीन का विकल्प ढूंढ रहे हैं, वहीं भारत भी चीन पर अपनी निर्भरता कम करना चाहता है, ऐसे में ऑस्ट्रेलिया भारत के लिए एक विकल्प हो सकता है।

चीन और आॅस्ट्रेलिया के बीच साल 2018 से ही संबंधों में तनातनी का दौर उस वक्त शुरू हो चुका था जब ऑस्ट्रेलिया ने सुरक्षा कारणों का हवाला देकर चीनी कंपनी हुवेई को 5 जी नेटवर्क टावर लगाने से रोक दिया था। पिछले साल भी ऑस्ट्रेलिया ने चीन के एक बड़े कारोबारी का वीजा रद्व कर दिया था। ऑस्ट्रेलिया की कार्रवाई से गुस्साए चीन ने भी ऑस्ट्रेलिया से आने वाले कोयले को रोक दिया। अब, कोरोना संक्रमण की जांच का समर्थन करने के बाद चीन-ऑस्ट्रेलिया संबंध और खराब हो गए। व्यापार प्रतिबंधों को हमेशा हथियार की तरह इस्तेमानल करने वाले चीन ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आक्रामक कदम उठाते हुए उस पर विश्व व्यापार संगठन के नियमों के उल्लंघन का आरोप लगाते हुए ऑस्ट्रेलिया से आने वाली जौ पर 80 फीसदी से ज्यादा का शुल्क लगा दिया।

चीन यहीं नहीं रूका। हाल ही में उसने एशियाई लोगों के साथ नस्लीय भेदभाव और हिंसा का हवाला देते हुए अपने नागरिकों को ऑस्ट्रेलिया की यात्रा पर न जाने की सलाह दी है। चीन की आक्रामकता को देखते हुए प्रश्न यह भी उठ रहा है कि क्या वह ऑस्ट्रेलिया के साथ कारोबारी रिश्ता पुरी तरह से खत्म कर देगा। ऑस्ट्रेलिया में चीन का जो निवेश है, उसे देखते हुए फिलहाल इसकी संभावना कम ही है। वर्चुअल मिटिंग के दौरान ऑस्ट्रेलिया ने सुरक्षा परिषद् के विस्तार और इसमें भारत की स्थाई सदस्यता के लिए समर्थन का विश्वास दिलाया है। इसके अलावा दोनों देशों ने नागरिक उदेश्यों के लिए परमाणु कार्यक्रम के मुद्दे पर भी द्विपक्षीय सहयोग की बात दोहराई है। कुल मिलाकर कहा जाए तो ऑस्ट्रेलिया के साथ हुए सुरक्षा समझौते को एक तरह से चीन के लिए चेतावनी के तौर पर ही देखा जाना चाहिए।

                                                                                                                एन.के.सोमानी 

 

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