असहयोग आंदोलन से स्वतंत्रता संग्राम को मिली थी नई ऊर्जा….

Non-cooperation movement gave new energy to freedom struggle
आज से ठीक सौ साल पहले महात्मा गांधी के नेतृत्व में ब्रितानी हुकूमत के खिलाफ देश में पहले जनांदोलन की शुरूआत हुई थी। 1 अगस्त,1920 वह ऐतिहासिक तिथि थी,जब महात्मा गांधी ने स्वराज की प्राप्ति के लिए देश को ‘असहयोग’ के रूप में एक नई ताकत और हथियार से परिचय कराया था।
असहयोग आन्दोलन का लक्ष्य निर्धारित करते हुए गांधीजी ने ‘एक साल के भीतर स्वराज की प्राप्ति’ का नारा दिया था। उन्होंने देशवासियों से अंग्रेजी सरकार से ऐच्छिक संबंधों के परित्याग करने की अपील की। उन्होंने देशवासियों को भरोसा दिलाते हुए कहा कि यदि असहयोग का ठीक ढंग से पालन किया गया तो भारत एक वर्ष के भीतर ही स्वराज प्राप्त कर लेगा। हालांकि यह आंदोलन अपने मकसद में पूरी तरह सफल तो नहीं हो सका,लेकिन इस आंदोलन ने भारतीय स्वतंत्रता संघर्ष को एक नई ऊर्जा व दिशा प्रदान की। इस आंदोलन ने गांधीजी को राष्ट्रीय स्तर पर स्थापित करने का काम किया। महात्मा गांधी को दक्षिण अफ्रीका से लौ टे हुए अभी महज पांच वर्ष का समय ही बीता था। वे भारत की राष्ट्रीय राजनीति के लिए बिल्कुल नये चेहरे थे। लेकिन इस आंदोलन को जनांदोलन का स्वरूप देकर वे न सिर्फ केंद्रीय भूमिका में आए,बल्कि आजादी की लड़ाई का राष्ट्रीय चेहरा भी बन गये।
असहयोग आंदोलन सही मायनों में ‘आत्मनिर्भर भारत’ की अवधारणा पर केंद्रित था। गांधीजी विदेशों खासकर ब्रिटेन तथा ब्रिटिश सरकार पर किसी तरह की निर्भरता नहीं चाहते थे। उस आंदोलन के दौ रान पहली बार लोगों ने गांधीजी के आह्वान पर ब्रिटिश सरकार को सहयोग न देने का मन बना लिया था। कहीं न कहीं इससे अंग्रेजों को भी अहसास हो गया था कि भारतीयों के सहयोग के बिना उनपर शासन कर पाना नामुमकिन है। भारतीयों ने हर स्तर पर अंग्रेजी सरकार के साथ असहयोग किया,उनका विरोध किया। संभ्रांत वर्ग के अलावे किसान, मजदूर, आदिवासी, महिला सभी वर्गों ने स्वराज की खातिर ब्रिटिश सत्ता की जंजीरों से आजाद होने का प्रयास किया।
1920 भारतीयों के लिए आशा का वर्ष साबित हुआ। असहयोग आंदोलन के दौ रान भारतीयों ने एकजुटता का परिचय देते हुए ब्रिटिश सत्ता का खुलेआम विरोध भी किया,क्योंकि वे उनके अत्याचारों से तंग आ चुके थे। असहयोग आंदोलन को देशवासियों का भारी समर्थन मिला। भारतीयों ने भी इस मौ के पर त्याग का परिचय दिया। स्वराज की खातिर कई लोगों ने अपनी नौ करी छोड़ दी। दिहाड़ी मजदूरों ने काम पर जाना बंद कर दिया। लोग नि:स्वार्थ भाव से स्वराज की खातिर एक मंच पर एकत्रित हुए। लोगों के मस्तिष्क से अंग्रेजों का भय निकल गया। असहयोग आन्दोलन की अवधारणा देश के लिए बिल्कुल नूतन थी। देश अब तक ऐसे विशाल जनांदोलन का गवाह नहीं बना था। 1857 के बाद पहला मौ का था,जब अंग्रेजों को भारत से खदेड़े जाने का डर सताने लगा था।
दरअसल प्रथम विश्वयुद्ध (1914-18) के दौ रान देश की बिगड़ी आर्थिक दशा,रॉलेट एक्ट (1919) के रूप में ‘अत्याचारी कानून’ लागू करने तथा जलियांवाला बाग में निर्दोष लोगों पर अंधाधुंध फायरिंग की घटना से पूरा देश आहत था। गांधी जी के आह्वान पर बुलाए गए ‘रॉलेट सत्याग्रह’ पर भी लोगों का अच्छा समर्थन मिला। लेकिन 13 अप्रैल,1919 को वैशाखी के दिन जलियांवाला बाग में एकत्रित भीड़ पर निर्मम गोलीबारी ब्रिटिश सरकार के खिलाफ एक सशक्त आंदोलन की मांग कर रही थी। गांधी जी ने जनभावना का सम्मान किया और असहयोग आंदोलन के जरिए अंग्रेजों को सबक सीखाने की कसम खाई। असहयोग आंदोलन की शुरूआत पूर्व निर्धारित तिथि 1 अगस्त से ही की गई। हालांकि उसी दिन स्वराज की सबसे अधिक वकालत करने वाले क्रांतिकारी नेता बाल गंगाधर तिलक की मृत्यु हो गई।
गांधीजी चाहते तो आंदोलन को स्थगित कर सकते थे,लेकिन तिलक द्वारा देखे गए ‘स्वराज’ के सपने को पूरा करने के लिए उन्होंने उसी दिन असहयोग आन्दोलन की शुरूआत की। आंदोलन की शुरूआत के एक महीने बाद सितंबर,1920 में लाला लाजपत राय की अध्यक्षता में आयोजित भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक विशेष अधिवेशन में गांधीजी ने अंग्रेजी सरकार के साथ असहयोग का प्रस्ताव रखा,जिसे कुछेक विरोधों के बावजूद बहुमत से पारित कर दिया गया। दूसरी तरफ अली बंधुओं (मुहम्मद अली और शौ कत अली) के नेतृत्व में देश में खिलाफत आन्दोलन की शुरूआत भी हो चुकी थी। गांधी जी ने दोनों आंदोलनों को एक कर दिया,ताकि दो बड़े धार्मिक समुदाय एक मंच पर आकर स्वराज प्राप्ति के लिए तत्परता दिखाए।
रॉलेट कानूनों के विरोध तथा खिलाफत और सहयोग आंदोलन के दौ रान राष्ट्रवादी धारा और मजबूत हुई तथा हिंदू-मुस्लिम एकता के नारे लगने लगे। यह एकता अंग्रेजी शासन के खिलाफ एक सशक्त आवाज के रूप में उभरती नजर आई। यह कहीं न कहीं महात्मा गांधी की जीत थी। वे एक ऐसे लोकप्रिय जननेता के रूप में उभरे,जो विरोधियों को भी अपनी सादगी से अपने पक्ष में कर लेते थे। महात्मा गांधी के अमेरिकी-जीवनी लेखक लुई फिशर ने लिखा है कि ‘असहयोग भारत और गांधीजी के जीवन के एक युग का ही नाम हो गया। असहयोग शांति की दृष्टि से नकारात्मक किंतु प्रभाव की दृष्टि से बहुत सकारात्मक था। इसके लिए प्रतिवाद,परित्याग और स्व-अनुशासन आवश्यक थे। यह स्वशासन के लिए प्रशिक्षण था। ‘
भले ही असहयोग आंदोलन ने अपने घोषित उद्देश्यों को हासिल नहीं किया,लेकिन महात्मा गांधी की रणनीतिक और नेतृत्वकारी भूमिका ने भारत के स्वतंत्रता संघर्ष को नए आयाम दिए। आंदोलन का सबसे बड़ा लाभ यह था कि इसने आम लोगों को एक नया विश्वास दिया और उन्हें अपनी राजनीतिक खोज में निडर रहने की शिक्षा दी। महात्मा गांधी ने स्वराज्य के लिए विचार और आवश्यकता को अधिक लोकप्रिय धारणा बनाया,जो बदले में देशभक्ति के उत्साह की एक नई लहर पैदा की। असहयोग आंदोलन के दौ रान और उसके बाद भी कई तरह के रचनात्मक और सकारात्मक काम किए गए। राष्ट्रीय स्कूलों और कॉलेजों को स्थापना की गई,स्थानीय मुकदमों की सुनवाई के लिए निजी पंचायतों का गठन किया गया।
स्वदेशी का प्रचार-प्रसार जोर-शोर के साथ किया गया। इसके अलावे चरखा व हथकरघा को प्रोत्साहन दिया गया। चरखा आत्मनिर्भरता का प्रतीक बन गया। गौ रतलब है कि उसी काल में कई राष्ट्रीय कॉलेज भी अस्तित्व में आईं। जामिया मिलिया इस्लामिया, काशी विद्यापीठ, गुजरात विद्यापीठ और बिहार विद्यापीठ जैसे कई प्रसिद्ध संस्थान उसी अवधि में स्थापित किए गए थे। ये संस्थान आज भी देश में गुणवत्तापूर्ण शिक्षा देने के लिए जानी जाती है। गांधीजी का पूरा जीवन सत्य,अहिंसा और स्वदेशी के प्रचार में बीता। अहिंसा पर वे कितना जोर देते थे,यह तब मालूम हुआ जब उन्होंने हिंसा की सिर्फ एक घटना को देखकर असहयोग आंदोलन को वापस करने का कठिन निर्णय ले लिया था।
गांधीजी ने हमें सिखाया कि मांगें मनवाने के लिए रेलों, बसों की आवाजाही रोकना, बंद का आह्वान करना तथा सार्वजनिक संपत्ति को हानि पहुंचाने की आवश्यकता नहीं होती,बल्कि स्वच्छ उद्देश्यों वाले मांगों की पूर्ति बिना किसी हिंसक प्रदर्शन के भी हो सकती है। असहयोग आंदोलन धैर्य रखने की सीख देता है। बहरहाल हमारे स्वतंत्रता सेनानियों से जितना हो पाया, उन्होंने स्वाधीनता के लिए उतना प्रयास किया। आज आवश्यकता इस बात की है कि हम भी काबिल बनें और देश की सामाजिक-आर्थिक ढांचे को मजबूत बनाने में अपनी सहभागिता ईमानदारीपूर्वक स्थापित करें।

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