वैज्ञानिकों ने बुढ़ापे की उस जीन को खोज निकाला है, जो उम्र बढ़ाने के साथ बुढ़ापा लाती है। इस जीन का जीएटीए-4, एएचएच, एफओएक्स-1 नाम से नामाकरण किया गया है। इस जीन के विपरीत वैज्ञानिकों ने उस जीन का भी पहचाना है, जो दांत, दिल, आंत और फेफड़ों को विकसित करने में अहम् भूमिका निभाती है। इस जीन को जीएटीए-6 नाम दिया गया है। बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा करने की दिशा में इजरायली वैज्ञानिकों ने दूसरी प्रक्रिया को आधार बनाया है। इन्होंने मानव गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) के सिरों पर मौजूद टेलोमेयर की लंबाई को कम कर दिया है।
ढ़ापे से मुक्ति और अमरता की लालसा मनुष्य की चिर महत्वाकांक्षा रही है। अमरता का दूसरा पहलू युवा-अवस्था को बनाए रखना भी है, जिससे सत्ता और स्त्री-सुख अनंतकाल तक भोगे जा सकें। यह अमरता शारीरिक अर्थात भौतिक है। परंतु एक अमरता वह भी है, जिसे हम कर्मशील महापुरूषों में देखते हैं और उन्हें युग-युगांतरों से जानते हैं। अलबत्ता अब वैज्ञानिक शरीरिक अमरता की ओर बढ़ रहे हैं। यानी बुढ़ापे से दुखी हो रहे लोगों के लिए यह अच्छी खबर है कि भविष्य में न तो आपकी आंतरिक कोशिकाओं का क्षरण होगा और न ही चेहरे पर झुर्रियां उभरेंगी। जी हां, वैज्ञानिकों ने उस जीन की खोज कर ली है, जो शरीर में बुढ़ापा लाती है। विस्कॉन्सिन विश्व-विद्यालय के वैज्ञानिक डॉ. वॉन जूली ने बुढ़ापा लेने वाली स्तंभ कोशिका मैनसेक्यमाल को खोज लिया है। शरीर में इसी की कमी से बुढ़ापा आता है। इन कोशिकाओं को दवाओं के जरिए पुनजीर्वित किया जाएगा।
हालांकि कनाडा के अरबपति पीटर निगार्ड स्टेम सेल के एक वर्ष में चार बार इंजेक्षन लगवाकर अपना बुढ़ापा रोकने का दावा कर रहे हैं। अमेरिकी वैज्ञानिक रे कर्जबील ने भी 2009 में ऐसा ही दावा किया था। उन्होंने बुढ़ापा रोकने के प्रयोग को ‘लॉ आॅफ एक्सीलरेटिंग रिटर्न्स’ नाम दिया हुआ है। इस प्रयोग में नैनो तकनीक के जरिए क्षरित कोशिकाओं को पुनजीर्वित किया जाएगा। लेकिन ये दावे कितने व्यावहारिक हैं, यह अभी भविष्य के गर्भ में ही है।
दरअसल, जिन प्रसंगों को हम मिथक कहकर नकारते हैं, वे विज्ञान के ऐसे प्रेरक सूत्र हैं, जो मौलिक अनुसंधान का माध्यम बन सकते हैं। ग्वालियर के डॉ बालकृष्ण गणपतराव मातापुरकर ने गांधारी के भ्रूण-पिंड से सौ कौरवों के जन्म की कथा से प्रेरणा लेकर अंगों के उत्सर्जन में सफलता प्राप्त की है। अमेरिका में रहते हुए उन्होंने अंगों के उत्सर्जन से जुड़े कई पेंटेट भी कराए हैं। दरअसल जीन वैज्ञानिकों का मानना है कि मानव शरीर में जो सॉफ्टवेयर क्रियाशील है, वह पाषाणयुगीन है। उसे वर्तमान युग के अनुरूप बदलने की जरूरत है। उसमें सक्रिय रक्तकणों की जगह नैनोबोट्स को प्रत्यारोपित किया जाएगा, जो रक्तकणों की तुलना में कई हजार गुना ज्यादा गति से सक्रिय रहेंगे। कैलिफोर्निया लाइफ कंपनी के वैज्ञानिक सिंथिया कैन्यून ने ऐसा गोलकृमि उत्सर्जित किया है, जो अपनी प्राकृतिक उम्र से 10 गुना ज्यादा जी सकेगा। यह चमत्कार बुढ़ापे के कारक डैफ-2 जीन को निष्क्रिय करके किया है।
यदि वाकई जवानी स्थिर हो जाती है तो इंसान सांस लिए बिना 15 मिनट तक दौड़ सकेगा। चार घंटे तक बिना आॅक्सीजन के जल में स्कूबा डाइविंग कर सकेगा। लेकिन बुढ़ापा रोकने की तकनीक आसान होने तक प्रतीक्षा करिए और 25-30 करोड़ का प्रबंध भी कर लिजिए, तब कहीं जाकर बुढ़ापे से बचने का उपाय की उम्मीद पालिए। दरअसल वैज्ञानिकों ने बुढ़ापे की उस जीन को खोज निकाला है, जो उम्र बढ़ाने के साथ बुढ़ापा लाती है।
इस जीन का जीएटीए-4, एएचएच, एफओएक्स-1 नाम से नामाकरण किया गया है। इस जीन के विपरीत वैज्ञानिकों ने उस जीन का भी पहचाना है, जो दांत, दिल, आंत और फेफड़ों को विकसित करने में अहम भूमिका निभाती है। इस जीन को जीएटीए-6 नाम दिया गया है। बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा करने की दिशा में इज्ररायली वैज्ञानिकों ने दूसरी प्रक्रिया को आधार बनाया है। इन्होंने मानव गुणसूत्रों (क्रोमोसोम्स) के सिरों पर मौजूद टेलोमेयर की लंबाई को कम कर दिया है। इन वैज्ञानिकों का दावा है कि गुण-सूत्रों के मुहानों में विकसित करने वाले जीन होते हैं। बहरहाल अभी यह कहना मुश्किल ही है कि प्रकृति के विरुद्ध वैज्ञानिकों के ये दावे भविश्य में कितने कारगर सिद्ध होते हैं।
लेकिन एक अमरता वह भी है, जो व्यक्ति के कुछ अनूठा कर जाने के गुण से जुड़ी है। दूसरी अमरता वह है, जिन्हें हम ईश्वर के रूप में जानते हैं, उनको अमर बनाए रखने की पृष्ठभूमि में अंतत: कठोर जीवन संघर्श और कर्म की प्रधानता रही है। इस रूप में हम भगवान राम, श्रीकृष्ण, महावीर और बुद्ध को स्मृति में बनाए रखे हुए हैं। उन नेताओं, पराक्रमियों, लेखकों और वैज्ञानिकों को भी हम युगों से जानते हैं, जिन्होंने राष्ट्र की सुरक्षा के लिए बलिदान दिए, व्यक्ति के अनुशासित बने रहने के लिए मूल्य दिए और जीवन व समाज को सुविधाजनक बनाने के लिए उपकरणों का आविश्कार किया। अमर रावण और कंस भी हैं, लेकिन उन्हें हम खलनायक के रूप में देखते हैं।
घर का भेदी लंका ढ़हाये के उदाहरण के रूप में हम विभीषण और जयचंदों को भी देखते हैं। भारतीय वांगमय में राजा बलि, परशुराम, हनुमान, ऋशि मार्कण्डेय, विभीषण, वेदव्यास और कृपाचार्य जैसे आठ चिरंजीवी भी बताए गए हैं। इनमें अश्वत्थामा की अमरता अत्यंत कष्टदायी है। उन्होंने पाण्डवों पुत्रों के सोते में हत्या और अभिमन्यु के पुत्र को गर्भ में ही मारने के लिए ब्रह्मास्त्र छोड़ा था। इन पापों के लिए कृष्ण ने अश्वत्थामा के मस्तक में विद्यमान अमरमणि को निकाल लिया था। तभी से अमरता के वरदान को अश्वत्थामा एक अभिशाप की तरह झेल रहा है। मान्यता है कि कृष्ण के दिए श्राप के चलते आज भी अश्वत्थामा का घाव भरा नहीं है और उससे रक्त रिसता रहता है। यानी अमरता घातक भी हो सकती है?
-डॉ. प्रमोद भार्गव
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