देश में त्यौहारों का दौर जारी है। दशहरा पर्व भी निकल गया और दीपावली आने वाली है। भारतीय युवा पीढ़ी विशेष तौर पर मध्य वर्ग इन दिनों त्यौहारों की महत्वता से दूर होकर मोबाइल फोन पर फ्री व सस्ते मोबाइल डाटा के आॅफरों में व्यस्त है। त्यौहारों के संदेश को देखते हुए लग ही नहीं रहा कि कोई त्यौहार आ रहा है। दशहरा व दीपावली पवित्र त्यौहार हैं जो बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक हैं।
उपभोक्ता कल्चर ने दीपावली को डिस्काउंट का त्यौहार बनाकर रख दिया। भारतीय युवाओं की हालत यह है कि महत्व समझने की बजाए इंटरनेट डाटा को ही आदर्श मान लिया है। निजी कंपनियों के लिए भारतीय त्यौहार आय का स्त्रोत बन गए हैं, दूसरी तरफ शिक्षा, रोजगार, स्वास्थ्य सेवाएं, संस्कृति जैसे क्षेत्र दयनीय दौर से गुजर रहे हैं।
सरकारों की नाकामी के कारण, वैश्वीकरण व निजीकरण ने ऐसा जाल बिछाया है कि देश में मुख्य मुद्दों व समस्याओं से ध्यान हटाया जा रहा है। सस्ते इंटरनेट को ही विकास की पहचान बनाकर पेश किया जा रहा है। इसी तरह लगता है कि जैसे सरकारों ने यही सोच लिया है कि 24 घंटे मोबाइल प्रयोग करने वाले युवा ही मजबूत भारत की पहचान होंगे। बेरोजगारी के सताए युवा विदेशों में जाने के लिए मजबूर हैं।
आज का युवा चिंतन से निकल अपनी चिंता को मिटाने के लिए मोबाइल फोन में आंखों गढ़ाकर बैठा है। राजनेताओं की गतिविधियां केवल सत्ता प्राप्त करने तक सीमित हैं। राजनेता वोट बटोरने के लिए जादूगरी भाषणों से मुद्दों का प्रयोग करते हैं, मुद्दों का हल नहीं निकालते। नशा बहुत बड़ी समस्या है जिस पर राजनैतिक जुमलेबाजी तो होती है लेकिन रोकने के लिए नेता पहल नहीं करते।
यह बात बिल्कुल गरीबी की तरह है। व्यंग्य के तौर पर यही कहा जाता है कि यदि गरीबी न रही तो राजनीति के पास मुद्दा क्या रहेगा। उसी तरह नशा भी राजनीति के लिए मनोरंजन बन गया। दीपावली के अवसर पर सब मुद्दे गायब हैं, सब समस्याएं गायब हैं क्योंकि भारतीय युवाओं पर मुफ्त इंटरनेट का भूत सवार है, यही बात राजनीति चाहती है। दिशाहीन युवाओं का अपनी समस्याओं से मुंंह फेर चुप कर बैठना किसी संतुष्टि का नहीं बल्कि गिरावट का प्रमाण है। दीपावली से कोई संदेश लेने की कोशिश नहीं हो रही। दीपावली अब महज कंपनियों की कमाई का जरिया बनकर रह गई है।
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