औद्योगिक भारत की नींव जमशेदपुर से ही पड़ी थी, लेकिन इससे भी बड़ी बात यह है कि इसके प्रेरणास्रोत स्वामी विवेकानंद रहे। इसे संयोग ही कहा जाएगा कि जेएन टाटा और विवेकानंद की मुलाकात ऐसे समय में हुई, जब दोनों एक इतिहास रचने अमेरिका जा रहे थे। जेएन टाटा भारत में इस्पात संयंत्र की स्थापना के उद्देश्य से जा रहे थे, जबकि विवेकानंद को शिकागो की संसद में आध्यात्मिक प्रवचन देना था। बात सितंबर 1893 की बात है। वे एक ही जहाज पर आमने-सामने बैठे थे, लेकिन एक-दूसरे को नहीं जानते थे।
बातचीत के क्रम में स्वामी जी की बातों और विचारों से जमशेदजी टाटा बहुत प्रभावित हुए। जब जेएन टाटा ने स्वामी विवेकानंद को बताया कि वे भारत में इस्पात संयंत्र स्थापित करना चाहते हैं, तो उन्होंने मयूरभंज राज में कार्यरत भूगर्भशास्त्री पीएन (प्रमथनाथ) बोस से मिलने की सलाह दी। यह भी बताया कि उसी क्षेत्र के आसपास लौह अयस्क, कोयला समेत अन्य खनिज का प्रचुर भंडार भी है। जेएन टाटा के मन में एक इस्पात कारखाना के साथ ही एक ऐसा शहर बसाने की कल्पना भी थी, जहां सारी सुविधाएं उपलब्ध हों।
अपने पुत्र दोराबजी को अपनी मृत्यु के पूर्व पत्र लिखा था- पुत्र, इस्पात नगर ऐसा हो जहां पार्क हों, सड़क के दोनों ओर हरे-भरे लहराते पेड़ पौधे हों, शिक्षा की उचित व्यवस्था हो, खेलकूद के लिये लम्बे-चौड़े मैदान हों, सभी जातियों, हिंदू, मुसलमान, ईसाई सहित सभी धर्मावलंबियों के लिए प्रार्थना स्थल हों, रहने के लिए सुविधा संपन्न घर हों, ताकि यहां कार्य करने वाले सभी जन इस कारखाने और शहर को अपना मानें-जानें। लगन, निष्ठा, परिश्रम से कार्य होता रहा और आखिर वह पुनीत दिन 27 अगस्त, 1907 को आया जब इस्पात कारखाने का रजिस्ट्रेशन हुआ। दो करोड़ की लागत से कार्य को मूर्त रुप दिया गया।