हाड कंपाती ठंड में भी अलवर में उमड़ा आस्था का जनसैलाब
अलवर (सच कहूँ न्यूज)। हाड कंपाती ठंड के बीच रविवार को अलवर के विजय नगर ग्राउंड, जेल चौहारा में अतुलनीय, अटूट श्रद्धा का सैलाब उमड़ा। आश्रम में जिधर भी नजर दौड़ाओ संगत ही संगत नजर आ रही थी और तिल रखने तक जगह नहीं थी। मुख्य पंडाल भरने के बाद कई अन्य पंडाल भी बनाए गए, जो खचाखच भर गए। साध-संगत के भारी उत्साह के समक्ष सभी प्रबंध छोटे पड़ते नजर आए।
अवसर रहा डेरा सच्चा सौदा की दूसरी पातशाही पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के पावन अवतार माह के भंडारे की नामचर्चा का। नामचर्चा में राजस्थान से बड़ी तादाद में साध-संगत ने पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां के पावन वचनों को श्रद्धापूर्वक श्रवण किया। वहीं 250 जरूरतमंदों को कंबल,स्वेटर एवं 35 राशन किट वितरित की।
नशा हमारे देश को खत्म कर रहा है
पूर्व विधायक जयराम जाटव ने कहा कि गुरु महाराज की कृपा से आप सब मिल करके नशा मुक्ति अभियान का जो संकल्प दिलाने के लिए आप मेहनत कर रहे हो ये देश के लिए समाज के लिए एक आने वाले समय में मिसाल कायम होगी। नशा हमारे देश को खत्म कर रहा है। हरियाण, पंजाब समेत अनेक राज्यों में नशा फैल चुका है। पूज्य गुरु जी द्वारा चलाई जा रही डेप्थ मुहिम सराहनीय है। गांवों में हालात बहुत खराब हो रहे हैं। मैं गांव-गांव में जाकर खुद नशे को बंद कराऊंगा और लोगों को जागरूक करूंगा।
-जयराम जाटव, पूर्व विधायक भाजपा
कोविड नियमों का पालन किया गया
इस पावन अवसर पर आश्रम को लड़ियों और रंग-बिरंगी झालरों से सजाया गया था, जो अद्भुत नजारा पेश कर रहा था। नामचर्चा के सरकार द्वारा निर्धारित कोविड नियमों मास्क लगाना, सोशल डिस्टेसिंग, सेनेटाइजेशन सहित पूरी पालना की गई। पंडाल को भव्य रूप से सजाया गया था।
हरियाणा, पंजाब और राजस्थान में भी मनाया पावन अवतार माह
रविवार को हरियाणा, यूपी में भी पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के पावन अवतार माह के रंग में रंगे नजर आए। नामचर्चाओं का आयोजन किया गया, जिनमें बहुत भारी तादात में साध-संगत ने शिरकत करके सतगुरु की महिमा का गुणगान करके खुशियों से अपनी झोलियां भरी।
हमारी संस्कृति महान
आपजी ने फरमाया कि भारतीय सभ्यता बहुत ही आगे थी। लेकिन आपने उसे मामूली बना दिया आपको लगता है कि विदेशी लोगों की सभ्यता, संस्कृति हमसे ज्यादा है। ये आपको भ्रम है, गलत सोच है। आप तो इतना ही जानते हैं कि भारत ने पूरी दुनिया को शून्य, दशमलव दिया, पर आप ये नहीं जानते कि प्यार की परिभाषा सिखाई भारत ने पूरी दुनिया को। लोग पशुओं की तरह रहते थे। हजारों साल पहले पवित्र वेदों में प्यार की परिभाषा सिखाई गई। और यहीं से ये भाषा पूरी दुनिया में फैली। इसलिए आप ये मत सोचो कि आप पिछड़े वर्ग से हो।
संस्कृति, सभ्यता का उदय कहीं से हुआ है तो वो है भारत। हमारी नालंदा विश्वविद्यालय में यूएसए, कनाडा, यूके बाहर जितनी भी कंट्री हैं वहां के लोग पढ़ना पसंद करते थे। और पूरी दुनिया को बताया करते थे कि हम नालंदा यूनिवर्सिटी में पढ़कर आए हैं। और आज कोई अमेरिका या कनाडा पढ़ने गया होता है तो और कुछ हो न हो, टूटा सा सेंट लगाकर 15-20 लोगों को बात सुना प्रभावित कर लेते हैं कि तुझे पता नहीं मैं कनाडा गया हूं। दो-चार शब्द बोलना सीख लेते हैं। इंग्लिश को नाक में बोल लेते हैं विदेश की हो गई। और अगर हम मुंह से इंग्लिश बोलेंगे तो तो इंण्डियन इंग्लिश हो जाती है।
लोग अब तो फूफा को भी अंकल और मामा को भी अंकल कहने लगे हैं। पहले चाचा नहीं कहलवाने देते थे। आज वालों को तो पता ही नहीं है हर एक को अंकल चाहे जो भी हो। क्या आपको अपनी भाषा बोलने में सहज नहीं लगती। हमारी भाषा में हर चीज का अलग नाम है। हमारी भाषा बड़ी ही मीठी है, वो अलग बात है कि आपने बिल्कुल बुरा हाल कर रखा है। जब किसी को घर बुलाते थे तो कहा करते थे- आइए, आप घर, आईएगा न। तो आजकल की बात होती है- आएंगा? बस यहीं पर बात खत्म। सारी मिठास को खूह-खाते में डाल दी जाती है। आपने भाषा का कचरा करके रख दिया है वरना इतनी मीठी भाषाएं हैं पर आप जीभ पर जोर नहीं लगाना चाहते इसलिए भाषा का कचरा किया हुआ है। हमारी संस्कृति, सभ्यता बहुत ही अच्छी है।
हमारी संस्कृति बहुत महान है
आपजी ने फरमाया कि हमारी संस्कृति बहुत महान है। आपको लगता है कि हमारी संस्कृति में कमी है ये आपका भ्रम है। हम महान सभ्यता का हिस्सा हैं जिसने पूरी दुनिया को सभ्यता सिखाई है। हमारे देश में ये सिखाया गया है कि 25 साल तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए। खासकर 23 सालों तक ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए था। आप कहते हो कि पहले ताकत ज्यादा थी दिमाग कम था तो ये आपकी गलतफहमी है। पहले साऊंडलेस जहाज होते थे, आज तक नहीं बने। पहले परमाणु कंधे पर रखकर चलते थे आज तक नहीं हुआ। पहले परमाणु चल जाता था तो उसे रोका जा सकता था जो आज तक संभव नहीं हुआ। पहले जब चाहे वर्षा करवा लेते थे , जो आज तक संभव नहीं हुआ।
ब्रह्मचर्य का पालन करना
पहले शरीर ही नहीं दिमाग भी आज के दौर से कई गुना ज्यादा पावरफुल और स्वस्थ होते थे। क्योंकि पच्चीस साल तक बच्चों को पता ही नहीं होता था कि गृहस्थ जिंदगी होती क्या है? गुुरुकुल में पढ़ाया जाता था, सख्त निर्देश होते थे। 23 साल तक ब्रह्मचर्य के अकॉर्डिंग युद्ध कला, विज्ञान कला, धर्म कला, समाज कला बहुत सारी अन्य कलाएं यानि शिक्षाएं दी जाती थी। और 24-25 साल में गृहस्थ जीवन के बारे में बताकर 25 साल के बाद शादी की जाती थी तब जाकर पता चलता था कि ये नर और मादा होते हैं, अदॅरवाईज ब्रह्मचर्य पर ही जोर दिया जाता था और लोग सच्चे दिल से पालना करते थे। तब जो हाईट होती थी वो इंचों, सेंटीमीटरों और फुटों में नहीं हाथों में नापी जाती थी कि ये सात हाथ का है। सात हाथ का मतलब 10 फुट का कम से कम माना जाता था। और आजकल साढ़े सात फुट ही हो जाए तो जाने क्या हो जाए? यूं लगेगा जैसे आदमियों में कोई ऊंट घूम रहा है।
पहले हमारी ही प्रजाति थी। हमारे ही पूर्वज थे जिनकी हाईट इतनी होती थी और पावर कितनी थी, दिमाग कितना तेज था वो भी कहने-सुनने से परे है। इंसान पुनर्विकसित हुआ तो इंसान को लगता है कि पहले पिछड़े वाले थे आज वाले ज्यादा तेज हैं। कोई तेज नहीं है ये सिर्फ आपका भ्रम है। आज के युवा को ज्यादा अहंकार हो गया हो तो साऊंडलेस जहाज बना कर दिखाओ। परमाणु को कंधे पर टांगकर दिखाओ। जब चाहे बरसात करवा के दिखाओ। चन्द्रमा की रोशनी से खाना बनाया जाता था। पहले के लोग सफल क्लोन ज्ञाता थे, लेकिन ये सब तब कहीं देखने को नहीं मिलता।
गुरुकुल में पढ़ाया जाता है हर पाठ
पूज्य गुरु जी ने आगे फरमाया कि हिंदु धर्म में ब्रह्मचर्य के लिए 25 साल रखे गए थे। उनमें सिर्फ पढ़ाई, शरीर का बनाना, दिमाग को बढ़ाना, ये चीजे वहां सिखाई जाती थी। इसके अलावा बड़ो का सत्कार करना, इन्सानियत का पाढ़ पढ़ाना, इज्जत सत्कार के साथ जीना और ससम्मान जीने की शिक्षा देना तथा दूसरों का भी सम्मान करना, ये चीजे गुरुकुल में सिखाई जाती थी। अगले 25 साल घर-गृहस्थी के लिए होते थे। गृहस्थ जीवन के बारे में भी पुराने समय में ट्रेनिंग दी जाती थी। क्योंकि इनसे अनजान होने के कारण बहुत से लोग बीमारियों से घिर जाते हंै। यह सब समय का चक्कर है और समय को संभालना मां-बाप का फर्ज है।
जो पल गुजर गया वो दोबारा नहीं आता, समय की अहमियत समझो
पूज्य गुरु जी ने समय की अहमियत बताते हुए फरमाया कि समय हमेशा से कीमती रहा है। किसी को बचपन में अहसास हो जाता है, वह बहुत ही भाग्यशाली है। कोई जवानी में अहसास कर लेता है, वो भी भाग्यशाली है। कोई अधेड़ अवस्था में एहसास कर लेता है, वो भी अच्छा है। कोई बुर्जुग अवस्था में जाकर एहसास करता है, ना से तो वो भी अ बिच्छा है। समय एक ऐसी अनमोल वस्तु है, जो निकल गया वो वापिस आने से रहा। पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि आप कहते है कि ये तारीख फिर नहीं आती, आप तारीख की बात करते हंै।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter, Instagram, LinkedIn , YouTube पर फॉलो करें।