भारत में बढ़ते मॉब लिंंिचग का मुद्दा अब संयुक्त राष्ट्र संघ तक पहुंच गया है। इसी माह दक्षिण अफ्रीका के एक एनजीओ सेंटर फॉर अफ्रीका डेवलपमेंट एंड प्रोग्रेस ने भारत में हुए मॉब लिंचिंग के मामले को यूएन में उठाया। सीएडीपी के पॉल न्यूम्मन कुमार स्टेनिसक्लेव्स ने संयुक्त राष्ट्र संघ के मानवाधिकार काउंसिल के 41वें नियमित सत्र के 17वीं बैठक में इस मुद्दे को उठाया जिसमें मुख्य रूप से झारखंड के सरायकेला में बीते दिनों मॉब लिंचिंग में मारे गये तबरेज अंसारी का जिक्र करते हुए मुस्लिमों के प्रति भारत में बढ़ती हिंसा का मुद्दा उठाया। गौरतलब है कि अफ्रीका यूएनज् के सुरक्षा परिषद का फिलहाल अस्थाई सदस्य है।
बहरहाल यूएन में मॉब लिंचिंग का मामला उठने के साथ ही एक सवाल खड़ा हो गया कि क्या मॉब लिंचिंग की घटनाएं इतनी बड़ी व भयावह स्थिति में पहुंच गई हैं जिसे अंतर्राष्ट्रीय मंच पर उठाया जाना जरूरी था? या फिर मॉब ंिलंचिंग के बहाने यह भारत को अंतर्राष्ट्रीय मंच पर बदनाम करने की साजिश भर है? मोहम्मद अख्लाक से लेकर तबरेज अंसारी तक के पिछले पांच साल के आंकड़ों पर गौर करें तो भारत में मॉब लिंचिंग के शिकार केवल मुस्लिम ही नहीं हुए हैं तो चर्चा के केन्द्र विन्दु में केवल मुस्लिम का जिक्र क्यों?
गौरतलब है कि साल दर साल मॉब लिंचिंग की हो रही घटनाओं को देखें तो साल 2014 में ऐसे 3 मामले सामने आए और उनमें 11 लोग जख्मी हुए। जबकि 2015 में अचानक ये बढ़कर 12 हो गया जिनमें 10 लोगों को पीट-पीट कर मार डाला गया जबकि 48 लोग जख्मी हुए। 2016 में गोरक्षा के नाम पर गुंडागर्डी की वारदातें दोगुनी हो गई हैं। 24 ऐसे मामलों में 8 लोगों को अपनी जानें गंवानी पड़ीं जबकि 58 लोगों को पीट-पीट कर बदहाल कर दिया गया। 2017 में तो गोरक्षा के नाम पर गुंडई करने वाले बेकाबू ही हो गए। 37 ऐसे मामले हुए जिनमें 11 लोगों की मौत हुई जबकि 152 लोग जख्मी हुए। साल 2018 से अब तक ऐसे ऐसे लगभग 21 मामले सामने आ चुके हैं जिनमें 8 लोग मारे गए और 16 लोग जख्मी हुए। आश्चर्य नहीं कि 109 घटनाओं में से 82 घटनाएं महाराष्ट्र, झारखंड व उत्तर प्रदेश सरीखे भाजपा शासित प्रदेशों में हुईं जबकि 9 समाजवादी पार्टी के शासनकाल में यूपी में, 5 कांग्रेस सरकारों वाले राज्यों में और 4 तृणमूल कांग्रेस शासित प्रदेश पश्चिम बंगाल में हुई। इनमें से बच्चा चोरी और गौरक्षा से जुड़े 39-39 मामले थे जबकि 14 घटनाएं अलग-अलग धर्मों की महिलाओं और पुरुषों के बीच मित्रता के चलते भड़कीं।
आंकड़े बताते हैं कि पिछले पांच सालों में मॉब लिंचिंग के लगभग 150 मामले हुए हैं। गृह मंत्रालय द्वारा जारी किये गये आंकड़ों के अनुसार वर्ष 2014 से मार्च 2018 तक भारत में मॉब लिंचिंग में मारे गये लोगों की संख्या 45 है जबकि एक वेबसाइट के अनुसार 2015 से अब तक मॉब लिंचिंग में 78 लोगों की जानें गई हैं। आंकड़ों की पड़ताल से एक बात स्पष्ट है कि मॉब लिंचिंग में 50 फीसदी शिकार मुसलमान हुए जबकि लगभग 30 फीसदी मामलों में हिन्दुओं को ऐसी हिंसा का सामना करना पड़ा जिनमें दलित के 11 फीसदी, आदिवासी व सिक्ख के 1-1 फीसदी सहित अन्य जाति के 9 फीसदी लोग भी शामिल हैं। गौरतलब है कि 20 प्रतिशत मामलों में शिकार हुए लोगों की धर्म जाति मालूम नहीं चल पाई।
मॉब लिंचिंग की घटनाओं में से सबसे अधिक घटनाएं भाजपा शासित तीन राज्यों में हुई, जिनमें अकेले महाराष्ट्र 22, यूपी में 19 और झारखंड में 10 हुई हैं। इन घटनाओं में 78 लोग मारे गए और 174 लोग घायल हुए। मृतकों में 32 मुसलमान, 29 हिन्दू थे जिनमें दलित व आदिवासी भी शामिल हैं। 17 मामलों की खबरों में यह स्पष्ट नहीं था कि लिंचिंग का शिकार व्यक्ति किस धर्म या समुदाय का था? लिंचिंग की इन घटनाओं में 174 लोग घायल हुए उनमें से 38 फीसदी से ज्यादा यानि कुल 67 हिन्दू थे जिनमें दलित, आदिवासी व अन्य जातियां शामिल हैं, वहीं घायल होने वाले में से 36 फीसदी यानि 64 मुसलमान थे।
जबकि 41 मामलों में संबंधित व्यक्ति की सामाजिक व धार्मिक पृष्ठभूमि स्पष्ट नहीं थी। मतलब साफ है कि मॉब लिंचिंग का शिकार केवल और केवल मुसलमान नहीं बल्कि हिन्दू और दूसरे तबके के लोग भी हुए हैं।
अगर दक्षिण अफ्रीकी एनजीओ को मानवाधिकार की इतनी ही चिन्ता थी तो वह अमेरिका, लैटिन अमेरिका व दक्षिण अफ्रीका में आये दिन होने वाले नस्ल आधारित हिंसा का मामला भी उठाता। हां, इसे स्वीकार करने में कोई गुरेज नहीं होना चाहिए कि लिंचिंग की घटनाएं भयावह और परेशान करने वाली है और 1984 के सिक्ख दंगे से इसकी तुलना कर इसकी भयावहता व दुष्प्रभाव को कम करके नहीं आंका जाना चाहिए। लेकिन यह विशुद्ध रूप से भारत का आंतरिक कानून व्यवस्था का मामला है और अंतर्राष्ट्रीय मंचों पर उठने लायक यह मुद्दा कतई नहीं है। जरूरत है कि सरकार अविलंब कड़ा कानून बनाकर मॉब लिंचिंग सरीखी घटनाओं को रोके तभी अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भारत को बदनाम करने की साजिश में शामिल मानवाधिकार के छहृ हितैषियों को मुंहतोड़ जवाब मिलेगा।
-विश्वजीत राहा
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