किस बात का पद्मश्री?

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हमेशा ही विवादों में रहने वाली फिल्म अभिनेत्री कंगना रणौत ने अब तो हद कर दी है। उसने अपनी ताजा टिप्पणी में राष्ट्र पिता महात्मा गांधी को ‘राजनीति का भूखा’ करार दिया है। इससे पहले वह देश की आजादी का वर्ष 2014 बता रही है। समय उन राजनेताओं के लिए नींद से जागने का है जो 2 अक्तूबर को महात्मा गांधी की जयंति पर उनको नम्न कर रहे थे। कंगना की टिप्पणियां शहीदों का अपमान है, फिर भी विचारों की आजादी का सरोकार है कि किसी को भी आजादी पर नेताओं के बारे में अलग विचार पेश करने का अधिकार हो सकता है लेकिन ऐसे व्यक्ति को पद्म श्री पुरुस्कार से सम्मानित किए जाने पीछे कोई तर्क नहीं बनता। जो महिला देश के इतिहास का मान-सम्मान ही नहीं करती उसके पास पद्म श्री पुरुस्कार बरकरार रहना किसी भी तरह से जायज नहीं।

पुरुस्कार किसी भी व्यक्ति की न सिर्फ उपलब्धियां हैं, बल्कि उसके विचारों की उच्चता का परिचायक होता है। देश की महान संस्कृृति और इतिहास ही राष्टÑ के लिए मार्गदर्शक और भविष्य का निर्माता बनते हैं। इतिहास शुद्ध रूप में आने वाली पीढ़ियों तक जाना चाहिए ताकि नयी पीढ़ी देश के इतिहास पर गर्व कर अपने जीवन को इतिहास अनुसार ढाल ले। अगर इतिहास के साथ खिलवाड़ किया गया तो नयी पीढ़ी इतिहास के अच्छे आदर्शों से वंचित रह जाएगी। नयी पीढ़ी के लिए यह बात भी चुनौती बन जाएगी कि असली इतिहास किताबों वाला है या जो कंगना रणौत कह रही है वह है। यूं भी हमारे देश का इतिहास इतना गौरवशाली व प्रभावपूर्ण है, जिसे कंगना रणौत जैसे लोगों की बेहुदा टिप्पणियों से कोई प्रभाव नहीं पड़ता लेकिन मामला तो यह है कि इतिहास का अपमान करने वाला व्यक्ति पद्म श्री कैसे रख सकता है?

बड़ी हैरानी की बात है कि हमारे देश में धर्मोंे, जातियों और क्षेत्रों की कोई नुक्ताचीनी करे तो धड़ाधड़ बयान आ जाते हैं लेकिन पूरे देश के इतिहास को खराब कर देने वाले व्यक्ति पर कोई एक व्यक्ति भी टिप्पणी नहीं करता। बहुत हैरानी है कि देश के लिए मर-मिटने और जानें कुर्बान करने वालों का अपमान किया जा रहा है। कुर्बानियों को बेगाना बताया जा रहा है। जिस महात्मा गांधी की प्रतिमा को अफ्रीका, यूरोपीय देशों के लोगों ने स्थापित कर लिया उस गांधी के देश के लोग उसकी निंदा व अपमान करने से भी नहीं झिझकते। यह कहना गलत नहीं होगा कि देश में बड़बोलों का बोलबाला है और महान् देश भक्तों की बजाए पार्टियों के भ्रष्ट नेता कहीं बड़े हो गए हैं। यहां किसी भी पार्टी के खास नेता पर सवाल उठे तब बड़ी उथल-पुथल मच जाती है। यहां बेहुदा बोलने वालों का मान-सम्मान है, जो कि दुर्र्भाग्यपूर्ण है।

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