कपास उत्पादक जिलों में एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर लगाकर कपास की खेती को बढ़ावा देने और आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से किसानों को किया जा रहा प्रेरित
सरसा(सच कहूँ/सुनील वर्मा)। पिछले सीजन में जिन किसानों ने हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई सिफारिशों के अनुसार कपास की फसल की बिजाई की थी। उनकी फसल में बीमारियों का असर अन्य फसलों की तुलना में बहुत कम रहा था। इसलिए विश्वविद्यालय एवं कृषि विभाग हरियाणा सरकार के संयुक्त तत्वाधान में कपास संबंधित सभी जिलों में एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का आयोजन कर कपास की खेती को बढ़ावा देने और आमदनी बढ़ाने के उद्देश्य से किसानों को प्रेरित किया जा रहा है। जिले में कपास की 2 लाख 9 हजार हेक्टेयर क्षेत्र में बिजाई होती है। बता दें कि पिछले वर्ष कपास बिजाई क्षेत्रों में फसल में बीमारी एवं अन्य समस्याओं का प्रकोप काफी अधिक था। इस कारण इस वर्ष विश्वविद्यालय एवं कृषि विभाग द्वारा सभी जिलों मे प्रशिक्षण शिविर का आयोजन किया जा रहा है।
28 अप्रैल तक चलेगा पहला चरण
आनलाइन आयोजित शिविर में कृषि विश्वविद्यालय के कपास विभाग के विशेषज्ञ, कृषि विभाग के अधिकारियों के साथ कृषि सुपरवाइजर हिस्सा ले रहे हैं। प्रशिक्षण शिविर का पहला चरण 28 अप्रैल तक चलेगा। इसका उद्देश्य समय अनुसार किसानों को कपास की खेती में आने वाली समस्याओं से अवगत कराने और उनका निदान कराना है। इस दौरान कृषि विभाग से जुड़े सभी अधिकारी, एटीएम, बीटीएम एवं कृषि सुपरवाइजर को प्रशिक्षित किया जा रहा है। विशेषज्ञों ने कहा कि अप्रैल व मई में कपास की बिजाई करना बेहतर है।
हकृवि द्वारा कपास की खेती के लिए यह दिए जा रहे सुझाव
- किसान बीटी कपास का सिफारिश किया हुआ बीज ही लें। इसकी जानकारी जिले के कृषि विभाग या कृषि विज्ञान केन्द्र से लें।
- बीटी कपास के दो पैकेट प्रति एकड़ के हिसाब से बिजाई करें। कतार से कतार व पौधे से पौधे की दूरी 100 गुणा 45 सेंटीमीटर रखें।
- कपास की बिजाई 15 मई तक अवश्य पूरा कर लें।
- पूर्व से पश्चिम की दिशा में बीटी कपास की बिजाई लाभकारी होती है।
- बीटी कपास की बिजाई के समय एक एकड़ में एक बैग यूरिया, एक बैग डीएपी, 30 से 40 किलोगाम पोटाश व 10 किलो जिंक सल्फेट (21 प्रतिशत) खेती की तैयारी के समय अवश्य डालें।
- बीटी कपास में जहां खुला पानी लगता है। वहां पहला पानी बिजाई के 45-50 दिन या इसके बाद ही लगाएं।
- रतीले इलाके में जहां फव्वारा विधि से पानी लगता है। वहां भी कपास उगने के चार-पाँच दिन बाद ही पानी लगाएं।
- पिछले साल जिन खेतों में या गाँव में गुलाबी सुंडी की समस्या थी, उन खेतों की लकडिय़ां, टिंडे व पत्तों को झाड़ कर नष्ट कर दें।
- कपास की शुरूआती अवस्था में ज्यादा जहरीले कीटनाशकों का प्रयोग ना करें। ऐसा करने से मित्र कीटों की संख्या भी कम हो जाती है।
हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार के कुलपति प्रोफेसर बलदेव राज कंबोज ने कहा कि पिछले साल बीमारियों से नष्ट हुई फसलों की जाँच पड़ताल करने से पता चला है कि जिन किसानों ने विश्चविद्यालय के वैज्ञानिकों द्वारा बताई गई सिफारिशों के अनुसार फसल की बिजाई की थी। उनकी फसल में बीमारियों का असर अन्य फसलों की तुलना में बहुत कम रहा था। इस वर्ष कपास की बिजाई किसान विश्वविद्यालय द्वारा बताई गई सिफारिशों के अनुसार करें। ताकि कपास का उत्पादन अधिक से अधिक हो सकें। साथ में किसान समय-समय पर विश्वविद्यालय व कृषि विभाग से संपर्क बनाए रखें।
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