वचनों को मानने से मिलती हैं खुशियां

सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिहं जी इन्सां फरमाते हैं कि एक मुरीद मालिक से दुआ करके अपने अंदर की बुराइयों को छोड़ता है तो परमपिता परमात्मा, वो सतगुरु, मौला उसकी दुआ मंजूर, कबूल करता है और बदले में अंत:करण को खुशियों से भरपूर कर देता है।

आप जी फरमाते हैं कि जो जीव वचनों पर अमल किया करते हैं उन्हें सतगुरु, दाता की भरपूर खुशियां मिलती हैं। इसलिए वचनों पर चलना, उनके बताए रास्ते पर चलना अति जरूरी है। वो लोग भाग्यशाली हैं जो वचनों पर चलते हैं और उनके माता-पिता भी धन्य-धन्य होते हैं जिनकी औलाद संत, पीर-फकीर के वचनों को सुनते हैं।

 ऐसा घोर कलियुग है और जीव के कर्म इतने भारी हैं, मन ऐसा अहंकारी है कि लोग सैकड़ों किलोमीटर दूर से आकर सत्संग सुनते हैं और कई ऐसे निर्भागे होते हैं जो बिलकुल फ्री में सत्संग सुन सकते हैं, जिन्हें कोई काम-धन्धा नहीं, फिर भी मन के हाथों मजबूर होकर मालिक की खुशियां हासिल नहीं कर पाते और दुर्भाग्यशाली बनकर कर्मों की ठोकरों तले हमेशा दबे रहते हैं।

उन्हें न अंदर चैन मिलता है और न बाहर का सुकून। वचनों को मानने … आप जी फरमाते हैं कि यह काल की नगरी है और यहां तरह-तरह के लोग हैं। सभी एक तरह के नहीं होते, लेकिन यह देखकर हैरानी होती है कि क्या मन इतना शातिर है कि पीर-फकीर की बात को ही नहीं सुनता। यह घोर कलियुग का समय है।

यहां मन-इंद्रियां बड़े फैलाव में हैं लेकिन इन्सान को यह याद रखना चाहिए कि अगर वह दे सकता है तो एक पल में सब कुछ ले भी सकता है। लगता है कि जब ऐसा समय आएगा तभी लोगों को अक्ल आएगी और मालिक ऐसा जरूर करेगा। आज इन्सान को जब तक ठोकर नहीं लगती तब तक वह नहीं मानता। चाहे उसे जितना मर्जी ज्ञान सुना दो।

आप जी फरमाते हैं कि इन्सान पर जब कर्मों की मार पड़ती है तो वह बिलबिलाता है और फिर क्या किया जा सकता है। तो यह घोर कलियुग का समय है, यहां मन इन्सान की पट्टी पोंछ कर रख देता है। इसलिए कहते हैं कि जो लोग सत्संग में चलकर आते हैं उनके अच्छे भाग्य हैं और वो ही खुशियां हासिल कर जाते हैं।

 

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