सतलोक को उड़ान
एक बार गांव चूनावढ़(राजस्थान) में सुबह का सत्संग था। पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज स्टेज पर आकर विराजमान हो गए। पूजनीय परम पिता जी की आज्ञा से भाई हाथी राम को शब्द बोलने का समय दिया गया। जैसे ही हाथी राम ने नारा बोला तो पूजनीय परम पिता जी फरमाने लगे, ‘‘हाथी राम, आज तू अपनी आप बीती सुना।’’ वह अपनी आप बीती सुनाने लगा। उसने कहा, ‘‘पिता जी, शुरू में हम बहुत ही गरीब थे। शाह मस्ताना जी महाराज से नाम-दान लेने के बाद हमारे घर में बरकतें होने लगी और अब आपकी मेहर से हमारे पास सबकुछ है।’’ फिर पूजनीय परम पिता जी साध-संगत को बताने लगे, ‘‘इसकी अब अस्सी साल उम्र है अभी भी इसमें पूरा दमखम है। जिस प्रकार इस उम्र में यह उछल-उछलकर नाचता है, यह मालिक की कृपा ही तो है।’’ इसके बाद शाम को श्रीगंगानगर में सत्संग था। वहां पर श्री मेहर चंद के घर में पूजनीय परम पिता जी का उतारा था।
सत्संग में पूजनीय परम पिता जी स्टेज पर विराजमान हो गए। ज्ञानी दलीप सिंह ने हारमोनियम पर एक नाचने वाली धुन लगा दी। हाथी राम खूब नाचा। नाचते-नाचते उसका चेहरा लाल हो गया। फिर जैसे ही धुन बंद हुई, हाथी राम अपने दोनों हाथों से स्टेज का सहारा लेकर खड़ा रहा। पूजनीय परम पिता जी ने सेवादारों को उसे सहारा देकर बैठाने का इशारा किया। शब्द की धुन के साथ जब वह नाचने के लिए उठने की कोशिश करता तो उसे फिर से बैठा दिया जाता। हाथी राम पूजनीय परम पिता जी को एकटक देख रहा था। उसने अपनी टांगें सीधी कर ली और आंखें पूजनीय परम पिता जी को देखते-देखते एक जगह पर टिक गई। उसकी आत्मा अपना शरीर छोड़कर पूजनीय परम पिता जी की गोद में बैठकर सचखंड के लिए उड़ान भर चुकी थी। उसे देखकर पूजनीय परम पिता जी ने सेवादारों को फरमाया, ‘‘उसे किसी डॉक्टर के पास ले जाओ।’’ डॉक्टरों ने उसे मृत घोषित कर दिया। इस दौरान सत्संग चलता रहा। साध-संगत को आभास तक नहीं हुआ कि हाथी राम ने चोला छोड़ दिया है। इस प्रकार मुर्शिद अपने भक्तों को बिना कोई कष्ट दिए ही इस भवसागर से पार कर देते हैं।
श्री जगतार सिंह, रामगढ़ (पंंजाब)
पूजनीय परम पिता जी ने की इच्छा पूरी
एक बार जनवरी, 1960 में मैं आश्रम में चिनाई की सेवा कर रहा था। तभी एक सेवादार ने मुझे बताया कि सांई शाह मस्ताना जी महाराज अपने कर-कमलों से सेवादारों को प्रसाद बांट रहे हैं। इतना सुनते ही मैं भी प्रसाद लेने के लिए तेरावास की तरफ दौड़ा। इतने में शाह मस्ताना जी प्रसाद वाला बर्तन पास खड़े सेवादार को पकड़ाकर फरमाने लगे, ‘‘वरी, बाकी सभी सेवादारों को प्रसाद तुम बांट दो।’’ इतना कहकर सांई जी ऊपर तेरावास में चले गए। प्रसाद बांट रहे सेवादार ने मुझे भी प्रसाद दे दिया परंतु मेरे मन ने एक सवाल खड़ा कर दिया कि यदि सांई जी स्वयं अपने पावन कर-कमलों से मुझे प्रसाद देते तो मेरा नसीब बनता।
इसके बाद पूज्य शाह मस्ताना जी महाराज ने 18 अप्रैल, 1960 को अपना चोला पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज के रूप में बदल लिया। मैं जब भी सेवा पर आता तो मुझे पिछला ख्याल अवश्य आता कि मुर्शिद ने अपने कर कमलों से प्रसाद नहीं दिया। फिर एक दिन मेरे दिल की तमन्ना पूरी हो गई। सन् 1965 में मैं सेवा करके वापिस घर जाने की तैयारी कर रहा था। तभी मुझे पूजनीय परम पिता जी ने तेरावास में बुलाया। पूजनीय परम पिता जी ने मेरी सेवा से खुश होकर मुझे एक अंगूठी, एक रूमाल और बूंदी का प्रसाद अपने हाथों से देते हुए फरमाया,‘‘बेटा, हमनें तेरा ख्याल पूरा किया, अब तो खुश है न।’’ मैं खुशी से फूला नहीं समा रहा था। इस प्रकार मेरा विश्वास परम पिता जी ने और दृढ़ कर दिया।
मिस्त्री मुख्त्यार सिंह, लुधियाना (पंंजाब)
-: रूहानी सवाल-जवाब :-
पूजनीय परम पिता शाह सतनाम जी महाराज ने पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सन् 1960 से 1991 तक बहुत से सत्संग फरमाए और इस बीच सत्संगियों ने समय समय पर पूजनीय परम पिता जी से अनेक प्रश्न पूछे। जो कुछ प्रश्न विभिन्न स्त्रोतों से हमें प्राप्त हुए, उन्हें आपकी सेवा में प्रस्तुत कर रहे हैं :
प्रश्न : कोई सत्संंगी अगर बुरा कर्म करने लग जाता है तो क्या उसे नाम का लाभ मिलता है? मालिक की रहमत उस पर रहती है या नहीं?
उत्तर : बुरे काम का हमेशा बुरा ही नतीजा होता है। बुरे कर्म करने वाला इन्सान मालिक की दया मेहर से खाली रहता है और ऐसे जीव को सूक्ष्म मंडलों पर भारी सजा भुगतनी पड़ती है।
प्रश्न : यदि कोई आत्मा मोक्ष मुक्ति मिल जाने के बाद मालिक से पुनर्जन्म की विनती करे तो क्या उसकी इच्छापूर्ति हेतू फिर से उसे मनुष्य शरीर मिल सकता है?
उत्तर : मोक्ष-मुक्ति का अर्थ है हर तरह की दुनियावी इच्छाओं से छुटकारा। इच्छा है तो शारीरिक बंधन है। जब कोई अति भाग्यशाली रूह परम पिता परमात्मा में समाकर मोक्ष हासिल कर लेती है तो उसे पुनर्जन्म की इच्छा नहीं रहती। केवल ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरू, राम के दर्श-दीदार की चाह ही उसे हर समय रहती है।
प्रश्न : अगर कोई जीव एक दो बार माफी ले चुका हो उसके बावजूद फिर भी वचनों की उल्लंघना कर लेता है तो क्या वह फिर से दया-मेहर रहमत के काबिल बन सकता है?
उत्तर : एक बार की गलती, जो अनजाने में हुई है सतगुरू-मालिक दयालु है, अपनी दया-मेहर से माफी देकर खुशी प्रदान कर देता है। लेकिन इन्सान जान-बूझकर बार-बार गलती करता चला जाए, तो यह इन्सानियत नहीं शैतानियत है। वह दया-मेहर के काबिल नहीं रहता लेकिन सतगुरू चाहे तो बडेÞ-बड़े पापियों को भी बख्श सकता है।
प्रश्न : पिछले इक्ट्ठे संचित कर्म मनुष्य जूनि में ही क्यों भोगने पड़ते हैं?
उत्तर : रूह संचित कर्मों का भुगतान तो प्रत्येक जूनि में करती है लेकिन उसे ज्ञान मनुष्य जन्म में ही प्राप्त होता है। इसलिए उसे ऐसा प्रतीत होता है।
प्रश्न : कौनसा धर्म सबसे अच्छा है?
उत्तर : रूहानियत के आधार पर इन्सानियत ही सबसे बड़ा धर्म है। सभी धर्मों के उच्चादर्शों का एक ही सार है। सारे धर्म इन्सान को इन्सान तथा इन्सान को भगवान के साथ जोड़ने की प्रेरणा देते हैं। आप चाहे किसी भी धर्म में रहें परंतु दूसरे धर्मों का भी सत्कार करें।
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