राजनीतिक डायरी : दो दामादों की कहानी

Firoz Gandhi, Rabard Vadra

यह दो दामादों फिरोज गांधी और राबर्ड वाड्रा की कहानी है। फिरोज गांधी अपने ससुर भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के प्रबल प्रतिद्वंदी थे तो दूसरे वाड्रा अपने साले नेहरू के परपोते-परपोती और फिरोज के पोते-पोती कांगे्रस अध्यक्ष राहुल गांधी और उनकी बहन प्रियंका वाड्रा की कमजोरी साबित हो रहे हैं। जहां गांधी ने स्वतंत्र भारत की पहली कांग्रेस सरकार में भ्रष्टाचार का पदार्फाश किया था तो वहीं दूसरी ओर वाड्रा कथित रिश्वत कांडों के केन्द्र बन गए हैं। फिरोज ने नेहरू की पुत्री और पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से 1942 में विवाह किया था और उन्हें अपने ससुर की सरकार में बेईमानी का पदार्फाश करने के लिए याद किया जाता है।

फिरोज 1952 में संसद के लिए चुने गए थे और 1957 में उन्होने मुंद्रा मामले का पदार्फाश किया था जिसके अंतर्गत एलआईसी में एक उद्योगपति की कंपनी ने धोखाधड़ी से 1.24 करोड़ रूपए का निवेश किया था जिसके चलते तत्कालीन वित्त मंत्री टीटी कृष्णामाचारी को त्यागपत्र देना पड़ा था और नेहरू को परेशानी झेलनी पड़ी थी। उसके बाद न्यायमूर्ति एमसी छागला आयोग ने मुंद्रा को 22 वर्ष कैद की सजा सुनाई थी। 1956 में रामकृष्ण डालमिया की बीमा कंपनी द्वारा धोखाधड़ी के मामले में डालमिया को जेल पहुंचाने में भी फिरोज की बड़ी भूमिका रही। फिरोज के विपरीत राबर्ड वाड्रा मुरादाबाद का एक साधारण लड़का था जिनका कास्ट्यूम की ज्वैलरी निर्यात का छोटा सा व्यवसाय था और वे तब तक सुर्खियों में नहीं आए थे जब 1997 में उन्होंने पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी और सोनिया की पुत्री तथा राहुल की बहन प्रियंका से शादी की और उसके बाद उनके साथ विवाद जुड़ने लग गए। इंड़िया अंगेस्ट करप्शन के संस्थापक अरविंद केजरीवाल ने 2012 में उनके कई काले कारनामों का पदार्फाश किया।

उन्होंने देश और कांग्रेस के प्रथम जंवाई राजा पर भारत की सबसे बड़ी रियल्टी फर्म डीएलएफ से पैसा प्राप्त करने का आरोप लगाया और वाड्रा से पूछा कि जब 2007 में उनकी संपत्ति 50 लाख थी तो 2012 तक यह 300 करोड़ रूपए कैसे पहुंची। वाड्रा और हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री हड्डा गुड़गांव में डीएलएफ के भूमि सौदे में आरोपी हैं। उनके विरुद्ध एक प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज की गयी जिसमें दावा किया गया कि स्काईलाइट हास्पिटैलिटी ने गुड़गांव के सेक्टर 83 में साढेÞ तीन सौ एकड़ का प्लाट खरीदा और लाइसेंस प्राप्त करने के बाद उसे व्यावसायिक प्लाट बनाया और भारी मुनाफा कमाया। वाड्रा की मदद करने के बदले में हुड्डा पर आरोप है कि उन्होंने कानून का उल्लंघन कर डीएलएफ को साढे तीन सौ एकड़ भूमि आवंटित की। मामला तब और उलझा जब प्रवर्तन निदेशालय ने वाड्रा पर मनी लांडिंज्ग का आरोप लगाया और कहा कि उनके कथित रूप से लंदन में दो बड़े बंगले और छ: फ्लैट हैं जिन्हें 2005-10 के बीच संप्रग सरकार के दौरान रक्षा और पेट्रोलियम सौदों में रिश्वत के पैसे से खरीदा गया है।

भाजपा भी कांग्रेस के जंवाई राजा को भ्रष्ट घोषित करने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रही है। वाड्रा के विरुद्ध राजस्थान के बीकानेर में 275 बीघा जमीन खरीदने के मामले में भी जांच चल रही है। यह जमीन उन्होंने अपनी कंपनी स्काईलाइट हास्पिटेलिटी के माध्यम से नियमों का उल्लंघन कर खरीदी। प्रवर्तन निदेशालय ने इस मामले में भी मामला दर्ज किया है जब 2015 में राजस्थान पुलिस ने भूमि आवंटन में धोखाधड़ी का आरोप पत्र दायर किया था। अब प्रियंका गांधी कांगे्रस की महासचिव के रूप में राजनीति में प्रवेश कर रही हैं तो वाड्रा के सौदों को हवा दी जा रही है। हालांकि उनके विरुद्ध जांच चल रही है और निश्चित रूप से वाड्रा के सर पर कानून की तलवार लटक रही है। आशानुरूप एक पतिव्रता नारी की तरह प्रियंका गांधी ने कहा कि वह अपने परिवार के साथ है क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय ने पिछले सप्ताह वाड्रा से 15 घंटे तक पूछताछ की और यह पूछताछ उनके हथियारों के सौदागार से संबंध और मनी लांडरिंग के मामलों में की गयी।

यदि प्रियंका और कांग्रेस समझती है कि वे राजनीतिक दृष्टि से इसका लाभ उठा सकती हैं तो वे गलतफहमी में हैं क्योंकि प्रवर्तन निदेशालय द्वारा पूछताछ के बाद कोई हो-हल्ला नहीं मचा हालांकि इस मामले में कांग्रेस और प्रियंका बचाव की मुद्रा में नहीं हैं बल्कि वे भाजपा पर राजनीतिक विद्वेष का आरोप लगा रहे हैं हालांकि अब कांग्रेस ने अब अपना पहले का रूख बदल दिया है कि वाड्रा एक प्राइवेट नागरिक हैं। कांग्रेस बड़ी दुविधा में है कि यदि वह वाड्रा को भाजपा के राजनीतिक बदले के रूप में प्रस्तुत करती है तो उसका यह जुआ विफल हो सकता है क्योंकि जनता की निगाहों में वह गांधी-कांग्रेस परिवार से नहंी है। फिरोज के विपरीत उनका सरनेम अलग है। इसके साथ ही भाजपा यदि उन्हें कांग्रेस के भ्रष्टाचार के प्रतीक के रूप में प्रस्तुत कर पाती है तो इससे कांग्रेस को उत्तर प्रदेश में और नुकसान होगा और राजनीतिक दृष्टि से यह राज्य बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि वहां से लोक सभा की 80 सीटें है और ऐसे नाजुक समय में वाड्रा के कारनामे कांग्रेस की नैया डुबा सकते हैं।

वर्तमान में भाजपा और कांग्रेस दोनों अपने विकल्प तलाश रहे हैं। भाजपा का मानना है कि प्रियंका की नियुक्ति से वाड्रा के भ्रष्टाचार घोटाले केन्द्र बिन्दु बन गए हैं जिससे पार्टी को लाभ हो सकता है किंतु कुछ लोगों का मानना है कि यदि इस मामले में सावधानी से कदम नहीं उठाया गया तो यह उल्टा पड़ सकता है और कुछ का मानना है कि इस मामले में आमेर्ता कोड लागू किया जाना चाहिए और प्रवर्तन एजेंसियों को कार्यवाही करने दी जानी चाहिए। कुछ लोग यह नहीं समझ पा रहे हैं कि मोदी सरकार वाड्रा के विरुद्ध पहले कार्यवाही क्यों नहीं कर पायी। जबकि कांग्रेस इस बात की प्रतीक्षा कर रही है कि यह मुद्दा क्या करवट लेता है। वरिष्ठ कांगेसी नेता इस बात से चिंतित हैं कि क्या वाड्रा को पृष्ठभूमि में रहना चाहिए या सार्वजनिक बयान देना शुरू कर देना चाहिए। वाड्रा अतीत में भी चुनाव लड़ने की अपनी राजनीतिक मंशा जाहिर कर चुके हैं और अब यह कुछ समय की बात है कि भारत के सर्वाधिक विवदास्पद रीयल्टर राजनीति में पर्दापण कर देंगे। किंतु सत्ता के खेल में उन्हें कई कठिनाइयों का सामना करना पड़ेगा।

आगामी चुनावों के लिए युद्ध रेखाएं खिंच गयी हैं और देखना यह है कि वाड्रा घोटाला किस तरह कांग्रेस और प्रियंका के चुनावी मंसूबों पर प्रभाव डालता है यदि प्रियंका रायबरेली या नमो के विरुद्ध चुनाव लड़ने का निर्णय करती है तो। कुछ लोग मानते हैं कि वाड्रा के मुद्दे पर नाहक शोर किया जा रहा है और किसी नए घोटाले के सामने आने के बाद इसे भुला दिया जाएगा क्योंकि भारत में जनता की स्मरण शक्ति बहुत कमजोर है। जबकि कुछ लोगों का मानना है कि कांग्रेस ने अपने लिए मुसीबत खड़ी कर दी है और अब इसके नेता प्रतिस्पर्धा करने के बजाय वाड्रा को बचाने में लगेंगे इसलिए वाड्रा को अपना बचाव स्वयं करने दिया जाना चाहिए। यदि ऐसा होता है तो जो भी परिणाम आएगा उससे पार्टी को परेशानी नहंी होगी। विचारणीय मुद्दा केवल यह नहीं है कि वाड्रा ने कोई गलत काम किया है अपितु इससे तीन महत्वपूर्ण मुद्दे सामने आए हैं। पहला, यदि वाड्रा प्रावइेट नागरिक हैं तो फिर कांग्रेस उनका बचाव क्यों कर रही है। दूसरा, क्या इसका कारण यह है कि इससे गांधी परिवार के रहस्यों का भानुमति का पिटारा खुल सकता है। तीसरा, क्या इससे हमारे सम्माननीय नेताओं के

बीच पालन किए जा रहे प्रतिद्वंदियों के परिवारों के कारनामों को न उछालने के अलिखित नियम का पदार्फाश हो जाएगा। भाजपा भी अपने नेताओं के भ्रष्टाचार के मामलों तथा दूसरे दलों से भाजपा में आए नेताओं के कारनामों पर चुप है। हाल ही में पश्चिम बंगाल में शारदा घोटाले के आरोपी भाजपा में शामिल हुए हैं और संघ ने उन्हें क्लीन चिट दी है। क्या हमारे राजनेता पारस्परिक विनाश के डर से जियो और जीने दो की नीति अपना रहे हैं? आगे क्या होगा? क्या वाड्रा मामला कांगे्रस के लिए राजनीतिक गेम चेंजर होगा? क्या यह ऐसा जुआ होगा जिस पर भाजपा पछताएगी? कुछ लोगों को विश्वास है कि यह मामला पुन: इस बात पर बल देता है कि उच्च पदों में भ्रष्टाचार व्याप्त है। आशा की जाती है कि भारत के राजनेताओं को सत्यनिष्ठा एक विरोधाभासी शब्द नहीं लगेगा।

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