सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि परमपिता परमात्मा कण-कण, जर्रे-जर्रे में मौजूद है, उसके बिना कोई जगह नहीं। इसका मतलब कि हम सबके अंदर भी वो रहता है। जब वो हमारे अंदर है, तो उसे बाहर ढूंढने की जरूरत नहीं, उसे अंदर से पाया जा सकता है।
पूज्य गुरु जी ने फरमाया कि मालिक को पाने के लिए आत्मा-परमात्मा के बीच काम-वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया की दीवारें खड़ी हैं और उनको हटाना जरूरी है। जिस प्रकार शीशे पर आप चिकने हाथ लगा दें, मिट्टी की परत जम जाए, ऊपर से धुंध हो, तो आपको कुछ भी नजर नहीं आएगा। अगर आप उसे कायदे से, तरीके से साफ करते हैं, तो वो शीशा बिल्कुल साफ हो जाता है और आपका अक्श उभरकर आ जाता है।
उसी तरह अल्लाह, वाहेगुरु, राम और आत्मा के बीच में विषयों-विकारों के, बुरी सोच के जो पर्दे हैं, उनको हटाने के लिए भक्ति-इबादत करें। ज्यों-ज्यों आप भक्ति-इबादत करते जाएंगे, त्यों-त्यों दिलो-दिमाग का शीशा साफ होता जाएगा और परमपिता परमात्मा का अक्श उभरेगा, मालिक के दर्शन होंगे। फिर उसके दर्शनों से आपके सारे गम, दु:ख, दर्द, चिंताएं खत्म हो जाएंगी और आपकी जिंदगी में बहारें छा जाएंगी।
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