दिल्ली में केन्द्र व कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों का आंदोलन तीसरे महीने में दाखिल हो गया है। ग्यारह मीटिगें करने के बावजदू कोई सार्थक परिणाम सामने नहीं आ सका है, लेकिन फिर भी समाधान की उम्मीद नहीं छोड़ी जा सकती।किसानों व सरकार दोनों पक्षों को मसले का हल निकालने के लिए माहौल बनाना चाहिए व जब तक आंदोलन चलता है तब तक सभी पक्षों को उन ताकतों प्रति सतर्क रहना होगा, जो सद्भावना व अमन-शांति के लिए खतरा बन सकती हैं।
कुछ फिल्मी कलाकार इस मामले में बहुत ही लापरवाही भरे शब्दों को गैर जिम्मेवारी के साथ प्रयोग कर रहे हैं, जिससे नफरत व तनाव पैदा हो रहा है। कोई किसानों को आतंकवादी बता रहा है व कोई सरकार के खिलाफ नफरत भरे शब्द प्रयोग कर रहा है। निचले स्तर के राजनेता भी ऐसी गलती कर रहे हैं। यह दौर बहुत ही नाजुक है व बेतुकी ब्यानबाजी करने वालों के प्र्रति भी सतर्क रहना होगा। गणतंत्र दिवस की घटनाओं के बाद स्थिति में फिलहाल कुछ सुधार हुआ है।
किसान संगठनों ने लाल किले की घटना की निंदा कर दोषियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने की मांग की है, जिससे किसानों ने यह स्पष्ट करने की कोशिश की है कि किसी भी तरह की हुड़दंगबाजी के साथ उनका कोई लेना-देना नहीं है। फिर भी कुछ कलाकारों की ओर से आंदोलन को विवादित बनाने की कोशिश की जा रही है। ट्विटर पर पोस्टों की जंग छिड़ी हुई है। एक-दूसरे को करारा जवाब दिया जा रहा है, लेकिन राजनेता चुपचाप बैठे तमाशा देख रहे हैं। सरकार व किसान आंदोलन का अपना-अपना पक्ष है व इस मसले को दोनों ने मिलकर ही हल करना है, लेकिन अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर केवल अपने आप को ट्विटर पर चर्चित बने रहने वाले भी सही नहीं है। अभिव्यक्ति की आजादी है लेकिन यह बेलगाम नहीं हो सकती।
समाज में नफरत पैदा करने वालों के खिलाफ न्यायपालिका को भी संज्ञान लेकर कार्यवाही करनी चाहिए। ट्विटर पर अपना धंधा चमकाने वालों को देश के मुद्दों का दुरूपयोग करने की स्वीकृति नहीं दी जानी चाहिए। सरकार शांति बनाए रखने के लिए मोबाईल इंटरनेट पर पाबंदी लगाती है तब ऐसे कलाकारों के सोशल मीडिया अकाऊंट बंद करने पर भी विचार करने की आवश्यकता है, जो नफरत फैलाकर अपनी टीआरपी बढ़ाने का खेल खेलते हैं। क्योंकि देश के अमन-शांति व भाईचारे से बढ़कर कुछ नहीं।
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