सरसा (सकब)। पूज्य हजूर पिता संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां फरमाते हैं कि भगवान ने सब शरीरों में से मनुष्य को बिल्कुल अलग बनाया है। इसके अंदर जितना दिमाग, सोचने समझने की शक्ति है किसी और प्राणी में नहीं। आत्मा को मनुष्य जन्म भगवान को पाने के लिए, आत्मा को आवागमन, जन्म-मरण से आजाद करवाने के लिए मिला। मनुष्य शरीर में अगर जीवात्मा प्रभु-परमात्मा का नाम ले, ओम, हरि, अल्लाह, वाहेगुरु की भक्ति-इबादत करे तो बहुत से भयानक कर्म कट जाते हैं। इन्सान सफलता की सीढ़ियां चढ़ता चला जाता है।
सफलता इन्सान के कदम चूमती है, लेकिन यह तभी संभव है अगर इन्सान सत्संग में आकर अमल करे। आप जी फरमाते हैं कि इन्सान को चुगली, निंदा, टांग खिंचाई, किसी का बुरा सोचने, करने में समय बर्बाद नहीं करना चाहिए। काम वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया में पड़कर मनुष्य जन्म को तबाह नहीं करना चाहिए बल्कि इन बुराइयों से अपने-आपको बचाना चाहिए। जैसे आप गाड़ी चला रहे हैं व आगे एक तरफ दलदल हो एवं दूसरी तरफ खड्डे हों तो आप बड़ा आराम से,ध्यान से गाड़ी चलाते हैं कि गाड़ी न तो गड्डे में जाए और न ही दलदल में फंसे।
अगर ध्यान से चलाएंगे तो आप सही-सलामत निकल जाएंगे। अगर लापरवाही से, इधर-उधर की बातें करते जाएंगे तो गाड़ी या तो गड्डे में गिर जाएगी या दलदल में धंस जाएगी। तो उसी तरह मन और माया काल ने बनाए हैं और जिन्दगी रूपी गाड़ी पर अगर मन सवार हैं तो इन्सान इनमें गिर जाएगा। काम वासना, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार, मन-माया रूपी दलदल में आपकी आत्मा फंस जाएगी। अगर आप ध्यान से यानि सुमिरन, भक्ति-इबादत करेंगे, गुरु, पीर-फकीर जैसी ट्रेनिंग देता है वैसे ड्राइवर बनकर अगर आप जीवन जीएंगे
तो आप न तो दलदल में फंसेंगे और न ही कभी खड्डों में गाड़ी अटकेगी। क्योंकि पीर-फकीर इन रास्तों के माहिर होते हैं।पूज्य गुरु जी फरमाते हैं कि फकीरों के वचनों पर चलना बड़ा मुश्किल भी है क्योंकि मन बड़े रोड़े अटकाता है। ऐसे-ऐसे लोग जो भक्ति में लगते हैं, बड़े भक्त लगते थे, लेकिन जब मन दांव चलाता है तो भक्ति धरी-धराई रह जाती है। क्योंकि निंदा-चुगली, व्यर्थ, फिजूल की बातें इन्सान को कहीं का नहीं छोड़ती। ऐसा जो करते हैं वो कभी भी रूहानियत में मालिक, सतगुरु की दया-मेहर के काबिल नहीं बन पाते। तो मन से लड़ो और सेवा-सुमिरन करो।