मंगलवार को देशभर में ईद का त्यौहार हर्षोल्लास से मनाया गया। एक-दो घटनाओं को छोड़कर सब जगहों पर माहौल शांतिपूर्वक रहा। दिल्ली के सांप्रदायिक टकराव वाले क्षेत्र जहांगीरपुरी में भी हिंदू-मुस्लिमों ने मिलकर ईद मनाई। शांति, सद्भाव और भाईचारे से ईद मनाने का सिलसिला दशकों से निरंतर जारी है, लेकिन जोधपुर के दस थाना क्षेत्रों में लगा कर्फ्यू बता रहा है कि कुछ सिरफिरे लोगों की खुराफात ने राजस्थान के इतने बड़े इलाके के लोगों को ईद, अक्षय तृतीया और परशुराम जयंती की खुशियों से वंचित कर दिया। उत्तर प्रदेश जहां धार्मिक स्थानों से स्पीकर हटाने की मुहिम जारी थी वहां भी कोई विवाद नहीं हुआ। राजस्थान की वारदात बताती है कि राज्य प्रशासन पर्याप्त चौकस नहीं था। वह भी तब, जब राज्य सरकार इस तथ्य से बखूबी वाकिफ होगी कि अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों के मद्देनजर धार्मिक धु्रवीकरण में ऐसी वारदातें खाद-पानी का काम करेंगी।
राजस्थान सरकार धार्मिक मामलों के प्रबंधन में उत्तर प्रदेश से सीख सकती है। महाराष्टÑ में सत्तापक्ष पार्टी शिवसेना और महाराष्टÑ नवनिर्माण सेना के बीच तलख बयानबाजी जरूर हुई, जो राजनीतिक तौर पर सीमित रही। यह स्पष्ट है कि एक उत्सवी माहौल को खौफ और तनाव की स्थिति में तब्दील कर देने की सीख तो कोई धर्म दे ही नहीं सकता। धर्म के नाम पर तनाव पैदा करने वाले केवल चंद लोग ही हैं। वह स्वार्थी लोग बिना मुद्दे से मुद्दा पैदा कर अपने हित साधना चाहते हैं। ऐसे संकुचित सोच वाले नेताओं का उद्देश्य केवल लोगों का ध्यान अपनी तरफ आकर्षित कर सुर्खियां बटोरना होता है। यह बात भी स्पष्ट है कि राजनीति में अब धर्म के नाम पर भड़काकर वोट बैंक हासिल करना एक भ्रम रह गया है। केंद्र से लेकर राज्यों तक कोई भी पार्टी यह दावा नहीं कर सकती कि वह धर्मों के नाम पर राजनीति कर आगे बढ़ी है। उत्तर प्रदेश सरकार ने लाउडस्पीकरों के इस्तेमाल को लेकर सुप्रीम कोर्ट के आदेश को जिस तरह से लागू कराया है, वह तो नजीर है।
एक लाख से भी अधिक अनधिकृत लाउडस्पीकर व ध्वनि-विस्तारक यंत्र मंदिरों और मस्जिदों से इनके प्रबंधनों ने स्वत: उतारकर एक मिसाल पेश की है। लोकतंत्र की कामयाबी भी इसी में है कि लोक राज करे, और तंत्र सिर्फ सहायक की भूमिका में हो। गौर कीजिए, जिस वक्त देश के कुछ प्रांतों में सांप्रदायिक उन्माद पैदा करने की कोशिश की जा रही है, ठीक उसी दौर में धार्मिक भाईचारे की हर्षित करने वाली खबरें भी सुर्खियां बन रही हैं। अभी ज्यादा दिन नहीं बीते होंगे, जब बिहार में एक मुस्लिम परिवार द्वारा राम मंदिर के लिए करोड़ों की जमीन दान करने के समाचार ने सबका ध्यान खींचा था, और अभी चंद रोज पहले उत्तराखंड के काशीपुर में दो हिंदू बहनों ने चार बीघा जमीन ईदगाह को दान कर दी है। इसी ताने-बाने को सहेजने की दरकार है। भारत की छवि को दुनिया भर में धूमिल करने वाली घटनाओं को लेकर सरकारों के साथ-साथ समाज को भी सावधान रहना होगा।
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