समकालीन दोहे
चलती चक्की देखकर, नहीं जागती पीर।
दर्द जुलाहे का कहे, कोई नहीं कबीर।।
महाकुंभ की गोद में, बच्चों सा उल्लास।
सारी जनता लिख रही लहरों पर इतिहास।।
गंगा के तट पर जगा, ऐसा जीवन-राग।
तन तो काशी हो गया, मन हो गया प्रयोग।।
अखबारों की आँख में, अफव...
अभिनय का उपहार
उन्नीसवीं शताब्दी की घटना है। भारत पर अंग्रेजों का अधिपत्य था। बंगाल नील साहब के अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर रहा था। कलकत्ता के कुछ नवयुवकों ने इन अत्याचारों पर प्रकाश डालने के लिए एक नाटक का आयोजन किया। अन्य अतिथियों के अतिरिक्त प्रकाण्ड विद्वान ...
परहित सेवा
फारस देश का बादशाह नौशेरवां न्यायप्रियता के लिए विख्यात था। एक दिन वह अपने मंत्रियों के साथ भ्रमण पर निकला। उसने दखा कि एक बगीचे में एक बुजुर्ग माली अखरोट का पौधा लगा रहा है।
बादशाह माली के समीप गया और पूछा, ‘‘तुम यहां नौकर हो या यह तुम्हारा ही बगीच...
सिर नीचा क्यों?
एक सज्जन बड़े ही दानी थे। उनका हाथ सदा ही ऊँचा रहता था, परंतु वे किसी को नजर उठाकर नहीं देखते थे। एक दिन किसी ने उनसे पूछा, ‘‘आप सबको इतना दान देते हैं, फिर भी आँखें नीची क्यों रखते हैं? चेहरा न देखने से आप किसी को पहचान नहीं पाते, इसलिए कुछ लोग आपसे ...
कबीर दास जी के दोहे
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
माला फेरत जु...
गजल : ग़रीबों को फ़क़त, उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
गरीबों को फ़क़त, उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
बड़े आराम से तुम, चैन की बंसी बजाते हो
है मुश्किल दौर, सूखी रोटियाँ भी दूर हैं हमसे
मज़े से तुम कभी काजू, कभी किशमिश चबाते हो
नज़र आती नहीं, मुफ़लिस की आँखों में तो ख़ुशहाली
कहाँ तुम रात-दिन, झूठे उन्हें स...
शिशुगीत
अब चुहिया ने सुंदर-सुंदर
सूट सिलाया लाल,
ठुमक-ठुमक कर चलती है वो
ऊँची सैंडिल डाल।
गिरी फिसल के बीच सड़क पर
बड़ा बुरा था हाल,
समझ गयी थी बहुत बुरा है
इस फैशन का जाल
सुनीता काम्बोज, यमुनानगर
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प्रधानमंत्री का प्रकृति प्रेम, मोर मांगे मोर
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राकृति से बहुत लगाव रखते हैं इसका अहसास वह पहले भी कई मौकों पर करा चुके हैं और इसी कड़ी में उनकी नयी बानगी दिल को भाव विभोर करती है। मोदी ने रविवार को अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर एक मिनट 47 सेकेंड का एक वीडियो पोस...
गजल : जो व्यवस्था भ्रष्ट हो, फ़ौरन बदलनी चाहिए
जो व्यवस्था भ्रष्ट हो, फ़ौरन बदलनी चाहिए
लोकशाही की नई, सूरत निकलनी चाहिए
मुफ़लिसों के हाल पर, आंसू बहाना व्यर्थ है
क्रोध की ज्वाला से अब, सत्ता बदलनी चाहिए
इंकलाबी दौर को, तेज़ाब दो जज़्बात का
आग यह बदलाव की, हर वक्त जलनी चाहिए
रोटियाँ ईमान ...
गजल : थरथरी-सी है आसमानों में
थरथरी-सी है आसमानों में,
ज़ोर कुछ तो है नातवानों में।
कितना खामोश है जहाँ, लेकिन,
इक सदा आ रही है कानों में।
हम उसी ज़िंदगी के दर पर हैं,
मौत है जिसके पासबानों में।
जिनकी तामीर इश्क़ करता है,
कौन रहता है उन मकानों में।
हमसे क्यों तू है ...