खूब लड़ी मर्दानी…
साल 1858 में जून का 17वां दिन था जब खूब लड़ी मदार्नी, अपनी मातृभूमि के लिए जान देने से भी पीछे नहीं हटी।(Jhansi ki Rani)
‘‘मैं अपनी झांसी नहीं दूंगी’’ अदम्य साहस के साथ बोला गया यह वाक्य अब तक हमारे कानों में गूंज रहा है। सोने की चिड़िया कहे जाने वाले...
कहानी: शिव ने अपने सपनों को लगाए पंख
शिव के माता-पिता उसके स्कूल के शिक्षक के गये एवं उनसे बात करते हैं कि शिव पहले बहुत पढ़ाई करता था लेकिन अब उसका ध्यान ना तो पढ़ाई में और ना ही किसी अन्य कार्यों में लगता है।
Short Story: लघु कथा : वरदान
विचित्र है जीवन के रंग, कब वरदान अभिशाप बन जाए और अभिशाप वरदान, नहीं कहा जा सकता। कुछ महीने पहले एक परिचित की मृत्यु हुई, रात दिन शराब के नशे में धुत रहते थे, अच्छी भली नौकरी थी मगर काम पर नहीं जाते थे, जाते थे तो करने की हालत में ही नहीं होते थे, नश...
Life Success: कविता : जीवन की सफलता…
है जिन्दगी रेगिस्तान की माफिक,
मृगतृष्णा-सी सारे वादें हैं।
सच्चे रिश्ते हैं क्षण-भंगुर,
सबकुछ यहां छलावा है।।...
मुखौटे के पीछे आदम,
सच तो जैसे इक सपना है।
अजनबी-से चेहरे सारे,
कौन यहां पर अपना है?...
कठपुतली के मानिंद हैं सब,
किसकी चलती मर...
Away From the Root : कहानी: जड़ से दूर
एक गहरी आत्मीयता के साथ वे सबको अपने हाथ से चने के पौधे उखाड़-उखाड़कर देते रहे थे, लेकिन आज यह अचानक कैसा परिवर्तन आ गया।
लघुकथा: आभार
हर की पैड़ी पर निरंतर बढ़ती भीड़ को देखते हुए भवगीत का ध्यान चौड़े पाट की ओर गंगा-स्नान करते भक्त पर गया तो वह भी उधर ही जा पहुंचा और घाट पर लगे एंगल को पकड़कर ज्यों ही गोता लगाने को हुआ ही कि उसके पाँव उखड़ गए। बस, फिर क्या था, बरबस ही जीवन-मृत्यु के बीच ...
समकालीन दोहे
चलती चक्की देखकर, नहीं जागती पीर।
दर्द जुलाहे का कहे, कोई नहीं कबीर।।
महाकुंभ की गोद में, बच्चों सा उल्लास।
सारी जनता लिख रही लहरों पर इतिहास।।
गंगा के तट पर जगा, ऐसा जीवन-राग।
तन तो काशी हो गया, मन हो गया प्रयोग।।
अखबारों की आँख में, अफव...
अभिनय का उपहार
उन्नीसवीं शताब्दी की घटना है। भारत पर अंग्रेजों का अधिपत्य था। बंगाल नील साहब के अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर रहा था। कलकत्ता के कुछ नवयुवकों ने इन अत्याचारों पर प्रकाश डालने के लिए एक नाटक का आयोजन किया। अन्य अतिथियों के अतिरिक्त प्रकाण्ड विद्वान ...
परहित सेवा
फारस देश का बादशाह नौशेरवां न्यायप्रियता के लिए विख्यात था। एक दिन वह अपने मंत्रियों के साथ भ्रमण पर निकला। उसने दखा कि एक बगीचे में एक बुजुर्ग माली अखरोट का पौधा लगा रहा है।
बादशाह माली के समीप गया और पूछा, ‘‘तुम यहां नौकर हो या यह तुम्हारा ही बगीच...
सिर नीचा क्यों?
एक सज्जन बड़े ही दानी थे। उनका हाथ सदा ही ऊँचा रहता था, परंतु वे किसी को नजर उठाकर नहीं देखते थे। एक दिन किसी ने उनसे पूछा, ‘‘आप सबको इतना दान देते हैं, फिर भी आँखें नीची क्यों रखते हैं? चेहरा न देखने से आप किसी को पहचान नहीं पाते, इसलिए कुछ लोग आपसे ...