Away From the Root : कहानी: जड़ से दूर
एक गहरी आत्मीयता के साथ वे सबको अपने हाथ से चने के पौधे उखाड़-उखाड़कर देते रहे थे, लेकिन आज यह अचानक कैसा परिवर्तन आ गया।
लघुकथा: आभार
हर की पैड़ी पर निरंतर बढ़ती भीड़ को देखते हुए भवगीत का ध्यान चौड़े पाट की ओर गंगा-स्नान करते भक्त पर गया तो वह भी उधर ही जा पहुंचा और घाट पर लगे एंगल को पकड़कर ज्यों ही गोता लगाने को हुआ ही कि उसके पाँव उखड़ गए। बस, फिर क्या था, बरबस ही जीवन-मृत्यु के बीच ...
समकालीन दोहे
चलती चक्की देखकर, नहीं जागती पीर।
दर्द जुलाहे का कहे, कोई नहीं कबीर।।
महाकुंभ की गोद में, बच्चों सा उल्लास।
सारी जनता लिख रही लहरों पर इतिहास।।
गंगा के तट पर जगा, ऐसा जीवन-राग।
तन तो काशी हो गया, मन हो गया प्रयोग।।
अखबारों की आँख में, अफव...
अभिनय का उपहार
उन्नीसवीं शताब्दी की घटना है। भारत पर अंग्रेजों का अधिपत्य था। बंगाल नील साहब के अत्याचारों से त्राहि-त्राहि कर रहा था। कलकत्ता के कुछ नवयुवकों ने इन अत्याचारों पर प्रकाश डालने के लिए एक नाटक का आयोजन किया। अन्य अतिथियों के अतिरिक्त प्रकाण्ड विद्वान ...
कबीर दास जी के दोहे
निंदक नियरे राखिए, आँगन कुटी छवाय,
बिन पानी, साबुन बिना, निर्मल करे सुभाय।
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय,
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
पोथी पढ़ि पढ़ि जग मुआ, पंडित भया न कोय,
ढाई आखर प्रेम का, पढ़े सो पंडित होय।
माला फेरत जु...
गजल : ग़रीबों को फ़क़त, उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
गरीबों को फ़क़त, उपदेश की घुट्टी पिलाते हो
बड़े आराम से तुम, चैन की बंसी बजाते हो
है मुश्किल दौर, सूखी रोटियाँ भी दूर हैं हमसे
मज़े से तुम कभी काजू, कभी किशमिश चबाते हो
नज़र आती नहीं, मुफ़लिस की आँखों में तो ख़ुशहाली
कहाँ तुम रात-दिन, झूठे उन्हें स...
प्रधानमंत्री का प्रकृति प्रेम, मोर मांगे मोर
नई दिल्ली। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी प्राकृति से बहुत लगाव रखते हैं इसका अहसास वह पहले भी कई मौकों पर करा चुके हैं और इसी कड़ी में उनकी नयी बानगी दिल को भाव विभोर करती है। मोदी ने रविवार को अपने इंस्टाग्राम एकाउंट पर एक मिनट 47 सेकेंड का एक वीडियो पोस...
गजल : जो व्यवस्था भ्रष्ट हो, फ़ौरन बदलनी चाहिए
जो व्यवस्था भ्रष्ट हो, फ़ौरन बदलनी चाहिए
लोकशाही की नई, सूरत निकलनी चाहिए
मुफ़लिसों के हाल पर, आंसू बहाना व्यर्थ है
क्रोध की ज्वाला से अब, सत्ता बदलनी चाहिए
इंकलाबी दौर को, तेज़ाब दो जज़्बात का
आग यह बदलाव की, हर वक्त जलनी चाहिए
रोटियाँ ईमान ...
गजल : थरथरी-सी है आसमानों में
थरथरी-सी है आसमानों में,
ज़ोर कुछ तो है नातवानों में।
कितना खामोश है जहाँ, लेकिन,
इक सदा आ रही है कानों में।
हम उसी ज़िंदगी के दर पर हैं,
मौत है जिसके पासबानों में।
जिनकी तामीर इश्क़ करता है,
कौन रहता है उन मकानों में।
हमसे क्यों तू है ...
लघुकथा : असर
पति-पत्नी दोनों ही समाज सेवा के कार्य करते हैं। शहर में अच्छी धाक है दोनों की। रोज सभा में जाते हैं। नारी चेतना, नारी शक्ति दहेज विरोधी धुआँधार भाषण देते हैं।
इकलौता बेटा ऐसे ही माहौल में बड़ा होने लगा। अब वे दोनों बेटे के विवाह के सपने देखने लगे। मन...