दर्जी की सीख
एक दिन स्कूल में छुट्टी की घोषणा होने के कारण, एक दर्जी का बेटा, अपने पापा की दुकान पर चला गया। वहाँ जाकर वह बड़े ध्यान से अपने पापा को काम करते हुए देखने लगा। उसने देखा कि उसके पापा कैंची से कपड़े को काटते हैं और कैंची को पैर के पास टांग से दबा कर रख ...
प्रेरक प्रसंग: ईमानदारी का फल
बहुत पहले की बात है एक राजा सुबह सुबह सैर करने के लिये महल से अकेला ही निकला। रास्ते में उसने देखा, एक किसान पसीने में तर-ब-तर अपने खेत में काम कर रहा है। राजा ने उसके पास जाकर पूछा, 'भाई आप इतनी मेहनत करते हो, दिन में कितना कमा लेते हो ?' किसान ने उ...
India is my country: भारत देश मेरा…
मेरी भारत माता मानवता की महान भूमि है
पहली बार सभ्यता को अपनी उपस्थिति मिली
अलग-अलग देशों में अभिवादन की अनोखी परंपरा
सच कहूँ डेस्क। अपने प्रियजनों या दोस्तों से मुलाकात होने पर, अजनबियों से मिलने पर, किसी व्यापारिक या व्यावसायिक समारोहों के दौरान लोग अक्सर एक दूसरे से हाथ मिलाकर (हैंडशेकिंग) अभिवादन करते हैं। यह स्वाभाविक रूप से पश्चिमी देशों की प्रथा रही है, और वि...
माँ ही है इस संसार में साक्षात परमात्मा
लड़का एक जूते की दुकान पर आता है, गांव का रहने वाला लग रहा था बोलने के लेहजे से लेकिन बोली में ठहराव था उसके। दुकानदार की पहली नजर उसके पैर पर जाती है। उसके पैरों में लेदर के शूज थे, सही से पॉलिश किए हुए।दुकानदार —क्या सेवा करूं? लड़का — मेरी मां के लि...
लघु कंथा : पिता का प्रेम
रमा जी के घर निर्माण कार्य चल रहा था। भोजन करने के वक्त श्यामू सबसे अलग-थलग बैठा था। क्या बात है श्यामू, आज तूं खाना लेकर नहीं आया? रमा जी ने पूछा। नहीं मालकिन, मेरी घरवाली बीमार चल रही है, इसीलिए मेरी बेटी ही कुछ दिनों से घर का काम देख रही है। रात म...
कविता : राष्ट्र जीवंत
राष्ट्र जीवंत रहे दिल में अरमान है
सब सुरक्षित रहें दिल में अरमान है
देश ही के लिए हों सब अच्छे कर्म
यह हर एक देशवासी की पहचान है।
तुम ग़रीबी मिटाओगे यह वादा करो
मुफ़लिसी को हराओगे वादा करो
एकता तुम दिखाओगे यह वादा करो
हर बुराई तुम मिटाओगे यह ...
कविता : किसान का बेटा हूँ…
किसान का बेटा हूँ ,
खेतों में किस्मत बोता हूँ।
खून पसीने से सींचता हूँ,
कुदरत की मार भी सहता हूँ ।
किसान का बेटा हूँ...
खेतों में अपनी किस्मत खोते देखा हूँ।
कभी सुखाड़ में तो कभी बाढ़ में,
पिता के आँखों मे आँसू देखा हूँ।
किसान का बेटा हूँ...
अ...
वो जलाकर बस्ती…
वो जलाकर बस्ती आशियानें की बात करते हैं,
मिटाकर हाथों की लकीरें मुक्कदर की बात करते हैं।
नादान थे हम चालाकियाँ समझ ही ना पाए,
अपना बनाकर हमें वो गैरों की बात करते हैं।
छुपाते रहें उम्र भर जिनकी गलतियों को हम,
वो महफ़िल में मेरी कमियों की बात...
हुआ उजाला
अंधकार की काली चादर,
धरती पर से सरकी।
हुआ उजाला जग में कोई,
बात नहीं है डर की।
चींची चींचीं चिड़िया बोली,
डाली पर कीकर की।
कामकाज बस शुरू हो गया,
सबने खटर-पटर की।
लाया है अख़बार ख़बर सब,
बाहर की, भीतर की।
घंटी बजी, दूध मिलने में,
दे...