रमा जी के घर निर्माण कार्य चल रहा था। भोजन करने के वक्त श्यामू सबसे अलग-थलग बैठा था। क्या बात है श्यामू, आज तूं खाना लेकर नहीं आया? रमा जी ने पूछा। नहीं मालकिन, मेरी घरवाली बीमार चल रही है, इसीलिए मेरी बेटी ही कुछ दिनों से घर का काम देख रही है। रात में वह देर से सोई थी इसलिए सुबह उसे जगाना उचित नहीं लगा। एक दिन की ही तो बात है। आज बिना भोजन के ही दिन काट लूंगा, श्यामू ने उत्तर दिया।
रमा देवी ने उसे बैठने का इशारा किया और घर से कुछ खाने को लेकर आई और बोली, यह खा ले, गर्मी बहुत है। बिना खाये काम करेगा तो बीमार पड़ जायेगा। श्यामू ने खाना शुरू ही किया था कि रमा देवी को कुछ याद आया। अच्छा सुन, तूं मिठाई लेगा, कल छोटी के पापा लेकर आये थे, छोटी को वह मिठाई बहुत पसंद है।
श्यामू ने हांमी भरी। रमा जी झट से अंदर जाकर बची हुई सारी मिठाइयां लेकर आई और प्लेट में रख दी। मिठाई को देख उसके आंखों में चमक आ गई। उसने मिठाई को प्लेट के थोड़ा बगल सरका कर जल्दी से खाना खत्म किया और काम में लग गया। शाम में जब श्याम घर जाने के लिए अपनी अंगोछे को गले मे डाल निकल रहा था। तभी मालकिन की बेटी ने पूछा, यह अंगोछे में क्या रखा है, श्यामू चाचा? गुड़िया, यह मिठाई मेरी बेटी को भी बहुत पसंद है, सोचा उसके लिए लेता चलूँ। बहुत खुश हो जाएगी वो। कहते-कहते वह थोड़ा भावुक हो गया। किस तरह एक पिता खुद से पहले अपने बच्चों के लिए सोचता है, अपनी बेटी के प्रति श्यामू का प्यार देख रमा जी भी भाव-विह्वल हो उठी।
-लेखिका: मोनिका राज
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