एक ऐसा संत जिसने अपनी करोड़ों औलाद का जीवन संवारा
(Father’s Day Special)
सच कहूँ/विजय शर्मा करनाल। ‘‘तुम न होते तो एक भी कदम मैं चल पाता नहीं, तुम से ही मिली है मुझे आज एक नई जिन्दगी, सच मैं कहता हूँ इस जहान में तुमसा कोई नहीं, एक पल के लिए तुम्हारे बिन मुझको जीना नहीं, हो मेरी जान तुम ‘पापा’, मेरे भगवान तुम ‘पापा’।’’ ये पंक्तियां मैं अकेला नहीं कह रहा बल्कि मेरे साथ 6 करोड़ से ज्यादा बच्चे उस ‘संत पिता’ के लिए कह रहे हैं। जिन्होंने अपने जीवन का हर पल, हर स्वांस अपनी करोड़ों औलाद का जीवन संवारने में समर्पित कर दी। इन ‘संत पिता’ ने कूड़े के ढेर में पड़ी बेटियों को ही नहीं अपनाया बल्कि मजबूरन देह व्यापार की दल-दल में फंसी वेश्याओं को भी ‘शुभदेवी’ का दर्जा देकर कन्यादान किया।
इतना ही नहीं, करोड़ों लोगों का नशा व बुराइयां छुड़वाई और मानवता, इंसानियत व नेकी-भलाई के मार्ग पर चलना सिखाया। फादर्स-डे पर हम आज बात कर रहे हैं वर्ल्ड के बैस्ट ‘पिता’ की। जिन्हें लोग अनगिनत नामों से जानते हैं। कोई उन्हें ‘गुरु’ कहता है, कोई ‘पिता जी’, कोई कहता है ‘पापा कोच’ तो कोई कहता है इंसानियत का मसीहा। जी हां, हम बात कर रहे हैं डेरा सच्चा सौदा के पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां की। जिन्होंने एक नहीं, दो नहीं बल्कि पूरे विश्व में 135 मानवता भलाई कार्य चलाकर समाज को एक नई दिशा दी। तो आईये जानते हैं कि क्यों हैं ये वर्ल्ड के ‘बैस्ट फादर’।
‘शुभ देवी’ का दर्जा देकर बेटी बनाया, सेल्यूट ‘पापा’
लायक तो नहीं थे नफरत के, तूने कोहिनूर हीरे से भी ज्यादा चमका दिया, इतना प्यार दिया इस नाली के कचरे को ‘शुभ देवी’ का दर्जा देकर बेटी बना लिया। पूज्य पिता जी ने मुझे जो नई जिन्दगी दी और समाज में सम्मान दिलाया ऐसा कोई इंसान नहीं बल्कि ‘खुदा’ ही कर सकता है। नरक से बदत्तर दलदल से निकालकर पूज्य पिता जी ने वो घर-बार परिवार दिया, जिसके शायद मैं लायक भी नहीं थी। मैं आज फादर्स-डे पर अपने ‘संत पिता’ को बारम्बार सेल्यूट करती हूँ और ये गर्व से कहती हूँ मैं उस बाप की बेटी हूँ, जो दोनों जहान में अपने बच्चों की संभाल करता है।
-शुभ देवी, रूमी इन्सा ं(काल्पनिक नाम) हरियाणा।
सत्संग में समझ आया ज़िंदगी का सही अर्थ
मेरे हाथ में नहीं था मेरा जन्म, तू मेरा दोष तो बता, ये समाज मुझे हिजड़ा, किन्नर, छक्का कहकर चिढ़ाता रहा। बस ये ही कहानी थी मेरी। दूसरों की दुआ में उठने वाले ये हाथ कभी अपनी तकदीर नहीं बना पाए। फिर सोचा शायद ख़ुदा को भी ये ही मंजूर होगा। लेकिन मैं गलत थी। एक संत है जिसने एक पिता के समान मुझ जैसे लाखों किन्नरों की सुध ली और हमें एक सम्मानजनक नाम दिया ‘सुखदुआ समाज’। पूज्य पिता जी का सत्संग सुना तो जीने की सही राह और जिन्दगी का सही अर्थ समझ आया। वो एक पिता के रूप में भगवान का रूप हैं। जो सारी सृष्टि की भलाई के लिए दुआएं करते हैं।
-सुखदुआ, सोनिया महंत, इंद्री करनाल।
पापा कोच ने शाही बेटियों को बनाया मिसाल
भू्रण हत्या व लिंग भेद पर रोक लगाने के उद्देश्य से पूज्य गुरु जी ने ऐसी लड़कियां जिनको गर्भ में मार देना था, उनको अपनाया व माँ-बाप की जगह खुद का नाम दिया और उन्हें शाही बेटियों का दर्जा दिया। अब ये बेटियां उच्च शिक्षा ग्रहण कर समाज सेवा और मानवता भलाई कार्यों में अह्म भूमिका निभा रही हैं। पूज्य गुरु जी के मार्गदर्शन में ये शाही बेटियां शिक्षा के साथ-साथ नेशनल और इंटरनेशनल लेवल तक खेलों में पदक जीतकर अपनी धाक जमा चुकी हैं। फादर्स-डे पर इन शाही बेटियों ने भी अपने ‘पापा कोच’ को शुभकामनाएं दी हैं।
आप ये न सोचो कि हमें कुछ पता नहीं, एक तरफ तो आप हमें ‘पिता जी’ कहते हो, और बाप को पता ही नहीं कि उसके बच्चों को क्या परेशानी है। वो मां-बाप ही क्या, जिसे अपनी औलाद का पता न हो, हमें अपने करोड़Þों बच्चों के बारे में सब कुछ पता होता है। एक गुरु, पीर-फकीर के लिए उसकी औलाद हमेशा छोटे बच्चे की तरह होती है। वो अपनी औलाद की इस जहान में भी संभाल करते हैं और उस जहान में भी। और आपको टेंशन तो होनी ही नहीं चाहिए, किसी का बाप बड़ा होता है तो वो उसके सिर पर राज करता है, राज। और जिसका दोनों जहान का अल्लाह, वाहेगुरु, गॉड, भगवान हो जाए, उसको टैंशन किस बात की और क्यों?
-पूज्य गुरु संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां।
दुनिया भर से बधाई देने के लिए भेजे गए ग्रीटिंग कार्ड
फादर्स-डे पर पिछले कई दिनों से दुनिया भर से पूज्य पिता जी को ग्रीटिंग कार्ड भेजने का सिलसिला जारी है। साध-संगत द्वारा रोहतक के सुनारिया भेजे जा रहे ग्रीटिंग कार्ड स्वयं अपने हाथों से तैयार कर उन्हें अपनी भावनाओं से सजाया गया है। पंजाब के लुधिायाना से एक छोटी बच्ची अनामी इन्सां ने अपने ग्रीटिंग कार्ड में लिखा कि ‘‘डॉ. एमएसजी के प्यार ने हमें जीना सीखा दिया, प्यार दिया अपने बच्चों को इतना, की रब्ब भूला दिया’’। ऐसे ही अनेकों ग्रीटिंग डेरा श्रद्धालुओं द्वारा सुनारिया भेजे जा रहे हैं और हैरान करने वाली बात तो ये थी कि डाकघरों के बाहर ग्रीटिंग कार्ड भेजने वालों की इतनी लंबी कतारें देखने को मिल रही हैं, जिससे घंटों के बाद दूसरे का नंबर आता। शायद ये ही प्यार है, श्रद्धा है, अटूट विश्वास है करोड़ों बच्चों का अपने ‘संत पिता’ पर।
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