भूमिका: मार्च माह जिसे आप फाल्गुन-चैत्र भी कहते हैं, होली का त्यौहार लेकर आता है तथा मौसम में रंगभर देता है।
फव्वारा सिंचाई – सिंचाई की विधि बलई मिट्टी, ऊंची-नीची जमीन तथा कम पानी वाले क्षेत्रों में बहुत लाभदायक है। गेहूं, कपास, मूंगफली, सब्जियां व फूलों की खेती में उपयुक्त हैं। पानी वर्षा की तरह गिरता है, पैदावार भी ज्यादा होती है व रोग कम लगते हैं।टपक सिंचाई अथवा ड्रिप इरीगेशन- सिंचाई की यह विधि ठोमट मिट्टी, उथली मिट्टी, ऊंची-नीची जमीन तथा पहाड़ी क्षेत्रों में काफी लाभदायक है। अंगूर, नींबू, गन्ना, पपीता, केला, अनार, अमरूद अन्य फल व सब्जियों के लिए उपयुक्त है। पानी बूंद-बूंद करके गिरता है व पौधे की जड़ों तक पहुचता है। इससे रिसाव व वाष्पण ना के बराबर होता है। पानी के साथ खादें भी दी जा सकती हैं। इस विधि से 60-70 प्रतिशत श्रम की बचत तथा पैदावार में काफी बढ़ोतरी होती है।
गेहूं- गेहूं की फसल फूल निकलने से लेकर दाने बनने की अवस्था में है। इस समय सिंचाई अवश्य करें नहीं तो पैदावार में भारी गिरावट आ सकती है। हल्की सिंचाई 20 दिन के अन्तर पर करें। इससे गर्म हवाओं का दाने बनने पर बुरा असर कम होगा तथा तेज हवाओं से फसल गिरेगी भी नहीं।
मार्च में इन बीमारियों पर रखे नजर- खुली क्यारी में गेहूं की बालियां काले पाउडर में बदल जाती हैं। करनाल बंट में पौधे के दाने काले रंग का पाउडर बन जाते हैं। रोगी पोधों को सावधानीपूर्वक निकाल कर दूर जगह में जला दें। दोनों बीमारियों की रोगरोधी किस्में लगाएं तथा वैविस्टोन 2 ग्राम और 2 ग्राम थीरम प्रति कि.ग्रा. बीज के हिसाब से बीजोपचार करें। काला सिट्टा बीमारी में दानों का सिरा गहरा भूरा या काला हो जाता है। इसकी रोगथाम फूल आने से लेकर फसल पकने तक 700 ग्राम जीनेव (डाज्थेन जेड 78) या मैनकोजेव (डाज्थेन एम. 47 ) को 250 लीटर पानी में घोलकर 10-15 दिन के अन्तर पर छिड़काव करें।
ममनी व टुण्डु सूत्र कृमि रोग हैं इनमें पौधों के तनों का आधार फूल जाता हैं। रोगग्रस्त बालियां छोटी तथा मोटी हो जाती हैं। स्वस्थ्य दानों की जगह काले रंग की ममनियां बन जाती है, जिनमें हजारों की संख्या में सुत्र कृमि होते हैं। पत्तों व वालियों पर पीले रंग का चिपचिपा लेसदार पदार्थ दिखई देता हैं। वालियां प्राय: मुडी हुई तथा बांझ होती है। रोकथाम सिर्फ बीजाई से पहले ही हो सकती हैं। बोने से पहले ममनी-रहित साफ बीज को पानी में अच्छी तरह धोकर बीजें। चेपा व तेला कीट भी गेहूं की पत्तियों व वालियों से रस चूसते हैं। 12 प्रतिशत वालियों या ऊपर के पत्तों पर 10-12 चेपे का समूह नजर आयें तो 700 मि.ली. एण्डोसल्फान 37 ईसी या 400 मि.ली. मैलाथियान 70 ईसी को 270 लीटर पानी में घोलप्रकर फसला पर छिड़के।
बसंतकालीन गन्ना– बसंतकालीन गन्ना मार्च अंत तक बोया जा सकता हैं। गन्ने में शुरू में बढ़ोत्तरी धीमी होती है इसका लाभ उठाते हुए 2 लाईनों के बीच 1 लाईन अल्प अवधि वाली वैशाखी मूंग, उर्द, लोबिया, मिंडी इत्यादि की मिश्रित फसल लगा सकते हैं। जिनके लिए अतिरिक्त खाद डालनी पड़ेगी। इससे अतिरिक्त फसल तो मिलती ही है तथा गन्ने में खरपतवार नियंत्रण भी रहता हैं। इन फसलों का उगाने की विधि पहले बता चुके हैं । गन्ने में दीमक, कनसुआ व जड़वेधक से बचाव के लिए 2.7 लीटर क्लोरपाइरिफास 20 ईसी या 1.7 लीटर एण्डोसल्फान 35 ईसी का 800 लीटर पानी में घोलकर छिड़काव करें। शरदकालीन व मोठी फसल में 1/3 नत्रजन की दूसरी किश्त (1बोरा यूरिया) मार्च अन्त तक डाल सकते हैं। यूरिया डालने से पहले खरपतवार निकाल लें तथा हल्की सिंचाई 10 दिन के अन्तर पर करते रहें।
जौ व आलसी- जौ व आलसी मार्च माह में पक जाती है तथा पकते ही काट लें नहीं तो फसल झड़ जाती हैं तथा गिर भी जाती हैं। अधिक पैदावार के लिए दानों को बिखरने से रोकें।
ग्रीष्मकालीन मूंग- इस फसल को मार्च में लगाया जा सकता है परन्तु सिंचाई की व्यवस्था होनी चाहिए। इसके लिए पूसा वैसाखी किस्म सर्वोत्तम है। जोकि 67 दिनों में तथा बरसात आने से पहले पक जाती है और 2.7-3 किंवटल पैदावार देती हैं। बाकी किस्मों में पी एस 7, पंत मूग 1, मालवीय जागृति, आशा भी लगा सकते हैं। मार्च के बाद बोने से फसल जल्दी बरसात आने की स्थिति में खराब हो सकती हैं। जायद मूंग जितनी जल्दी लगे पैदावार उतनी ही जल्दी मिलती हैं। 10 कि.ग्रा. स्वस्थध्य बीज को 40 ग्राम थोरम से उपचारित करने के बाद 1 पैकिट (200 ग्राम) राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करें। खेत तैयार करते समय 1/3 बोरा यूरिया तथा 2 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट डालें। लाईनों में 10 ईंच दूरी रखकर बीज बोयें फिर हल्का पलेवा लगा दें। 20-22 दिन बाद पहली सिंचाई करें फिर 10-17 दिन बाद हल्की सिंचाई जरूरत के हिसाब से करें। जब 77 प्रतिशत फालियां पीली पड़ने लगें तो फसल कटने के लिए तैयार मानी जाती हैं। इसे दरांती से ध्यानपूर्वक काट कर ढेर लगा दें तथा पूरा सूखने पर गहाई करें। फसल कटने में देरी से दाने विखर जाते हैं तथा कम पैदावार हाथ लगती हैं।
अरहर- सिंचित अवस्था में अरहर की टी-21, यूपीएएस 120 किस्में मार्च में लगाई जा सकती हैं। इसके लिए अच्छे जल निकाल वाली दोमट से हल्की दोमट मिट्टी में दोहरी जुताई करके खरपतवार निकाल लें तथा 1/3 बोरा यूरिया व 2 बोरे सिंगल सुपर फासफेट डालकर सुहागा लगा दें। अरहर का 7-6 कि.ग्रा.स्वस्थ्य बीज लेकर राइजोवियम जैव खाद से उपचारित करके 16 ईंच दूर लाईनों में बोयें। अरहर की 2 लाईनों के बीच यदि बैसाखी मूंग लगाना है तो दूरी 20 ईंच कर लें। बीजाई के 27 और 47 दिन बाद खरपतवारों की रोकथाम हेतु निराई-गुड़ाई करें। आवश्यतानुसार हल्की सिंचाई कर सकते हैं।
चना, मसूर व दाना मटर- इन फसलों में 77 प्रतिशत फलियां व पत्ते पीले हो जाएं तथा पौधे सूखने लगे तो इन फसलों को दरांती से सावधानीपूर्वक काटें तथा ढेर में रखें। पूरा सूखने पर गहाई करें इससे दाने बिखरते नहीं व पैदावार अधिक हाथ लगती हैं।
फल- बागों में अधिकतर पेड़ लगाने, काट-छांट व खाद-पानी देने का कार्य पूरा हो चुका है यदि नहीं तो शीघ्र कर लीजिए। मार्च में बागों में पानी जरूर दें। बेर के बीज भी मार्च में नर्सरी में बोये जा सकते हैं। आम के बागों में मिलिबग, तना छेदक व आम का तेला (हापर) के नियंत्रण के लिए मिथाइल पैराथियान प्रयोग करें। आम में ब्लैक टिप रोग ईट के भट्ठों की जहरीली गैस के कारण होता हैं। रोगथाम के लिए वोडों मिश्रण (4:4:50) या 0.3 प्रतिशत कोपर आक्सीक्लोराइड -70 का स्प्रे करें। आम तथा लीचियों के बागों में सिंचाई समय-समय पर करते रहें इससे फल पैदावार अच्छी होगी। तरबूज व खरबूज भी मार्च में लगा सकते हैं।
सब्जियां- मार्च के पहले हफ्ते तक घिया, कछू करेला, तोरी लगा सकते हैं। पिछले माह लगी फसलों में आधा बोरा यूरिया डालें तथा हर हपते एक अच्छी सिंचाई करते रहें इससे समय पर फूल तथा काफी मात्रा में फल आएगें। यदि पाधों पर पाउडरी मिल्डयु (पत्तों पर सफेद पाउडर) नजर आए तो 200 ग्राम वैविस्टिन को 200 लीटर पानी में घोलकर स्प्रे करें। डाउनी मिल्डयु ( पत्तों की निचली सतह पर बैंगनी-भूरे रंग के धब्बे ) के लिए 400 ग्राम डाइथेन एम 47 को 200 लीटर पानी में घोलकर छिड़कें। स्प्रे 17 दिन बाद फिर दोहराएं। इस मौसम में कीड़े कम ही लगते हैं फिर भी कोई नजर आयें तो 200 ग्राम एण्डोसल्फान 37 ईसी 100 लीटर पानी में घोलकर फसल पर स्प्रे करें। उपरोक्त स्प्रे खरबूज व तरबूज फलों की बेलों पर भी किया जा सकता हैं।
फूल- बंसत ऋतु आने पर चारों तरफ फूलों की बहार छाई हुई हैं। फूलों के राजा गुलाब तो पूरी मस्ती पर हैं। गलेडियोलस भी निखार पर है। फूलों की सुंदरता का आंनद लें तथा पैसा भी कमाएं गर्मी वालें फूलों की बीजाई भी इस माह पूरी कर लें। इनमें प्रमुख हैं- बालसम, फ्रैंच गैंदा, पेटूनिया, पोरचुलाका, साल्विया, सुरजमुखी, जिनियां, वरवीना इत्यादि। बीजाई के बार नियमित रूप से नर्सरी की सिंचाई करते रहे तथा निराई-गोड़ाई करके खरपतवार निकाल दें। फूलदार पेड़ व झाड़िया तथा हैज लगाना पूरा कर लें। मई-जून में लगने वाले घास के लान की जमीन तैयारी भी मार्च से शुरू कर दें।
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