पंजाब के नगर निकाय चुनाव में कांग्रेस की एकतरफा जीत हुई है। कांग्रेस ने जनता की जीत करार देते हुए विधान सभा चुनावों की तैयारी का बिगुल भी बजा दिया है। भले ही यह चुनाव विधान सभा चुनावों से अलग होते हैं लेकिन इन चुनावों को विधान सभा चुनाव का सेमीफाइनल भी कहा जाता है। यह सवाल भी महत्वपूर्ण है कि क्या कांग्रेस को किसान आंदोलन का लाभ मिला है। वास्तव में भाजपा का नुक्सान इस बार तय था क्योंकि भाजपा नेताओं का कई जगहों पर विरोध हुआ, जिस कारण भाजपा नेता खुलकर अपना प्रचार व गतिविधियां नहीं चला सके। राजपुरा व कई अन्य स्थानों पर भाजपा के उम्मीदवारों के कार्यालय तक बंद करवा दिए।
भाजपा को किसान आंदोलन का खमियाजा भुगतना पड़ा है, दूसरी तरफ अकाली दल का भाजपा से गठबंधन तोड़ने का भी कांग्रेस को फायदा हुआ। इस बार के चुनावों में दोनों दल विरोध के कारण जनता के निशाने पर रहे। जहां तक किसान आंदोलन के समर्थन का फायदा मिलने या न मिलने का सम्बन्ध है वह आम आदमी पार्टी के संदर्भ में समझा जा सकता है। आम आदमी पार्टी ने भी किसान आंदोलन का समर्थन किया था लेकिन पार्टी अपने गढ़ में हार गई। शिरोमणी अकाली दल भी खुलकर किसानों के समर्थन में आया लेकिन दोनों पार्टियों की हार हुई। ग्रामीण क्षेत्र में भी शिरोमणी अकाली दल का प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा। दरअसल किसानों ने भाजपा का विरोध तो किया लेकिन किसी भी पार्टी को समर्थन भी नहीं किया।
किसानों ने रैलियों में भी राजनीतिक दलों से दूरी बनाकर रखी। यूं भी शहरी चुनाव में स्थानीय मुद्दों और उम्मीदवारों के गैर-राजनीतिक संबंधों के कारण भी वोटर तक पहुंच होती है। कुछ वोटर खुलकर वोट देते हैं। इन चुनावों ने यह स्पष्ट कर दिया है कि किसानों का आंदोलन एक अलग पहचान वाला है जिसने किसी पार्टी को स्पष्ट रूप से समर्थन नहीं दिया। किसानों ने सभी राजनीतिक दलों से बराबर दूरी बनाकर रखी भले ही इन चुनावों के प्रत्येक पार्टी अलग-अलग अर्थ निकाल रही हैं लेकिन यह शिरोमणी अकाली दल और आम आदमी पार्टी के लिए मंथन का समय है जो बराबर चुनाव प्रचार के बावजूद पिछड़ गर्इं, क्योंकि यह पार्टियां वहां भी हार गई जहां शहरों में न तो सत्तापक्ष और नामांकन रद्द करवाने के आरोप लगे, न ही हिंसा हुई।
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