इस बार मानसून सामान्य की अपेक्षा ज्यादा सक्रिय रहा, जिस कारण पंजाब, हरियाणा सहित कई राज्यों में फसलों का भारी नुक्सान हुआ है। पंजाब के मानसा, फाजिल्का, फिरोजपुर जिला में काफी नुक्सान हुआ है। कपास और धान की फसलें तैयार हो चुकी थीं लेकिन बेमौसमी बरसात के कारण कपास के फूल गिरने से उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। कई स्थानों पर तो हालात यह हैं कि फसल नष्ट करने के सिवाय कोई विकल्प ही नहीं बचा। इससे पूर्व धान की सीधी बिजाई ज्यादा सफल नहीं होने के कारण किसानों को वित्तीय बोझ का सामना करना पड़ा है। कपास में खड़ा पानी निकालना भी एक बड़ी समस्या है विशेष रूप से सेम वाले क्षेत्रों में नुक्सान ज्यादा हुआ है। जरूरी है कि सरकार नुक्सान की गिरदावरी कर किसानों को मुआवजा दे। राजस्व विभाग के अधिकारी बिना पक्षपात और दबाव के नुक्सान की सही रिपोर्ट कृषि विभाग को भेजें।
विगत वर्षों में ऐसा कई बार होता रहा है कि पीड़ित किसानों को बनता मुआवजा नहीं मिला और रसूख वाले बड़े किसान घर बैठे बिठाए ही पूरा मुआवजा ले गए। छोटे किसान सरकारी दफ्तरों में चक्कर काटते रह जाते हैं। हरियाणा में भी कई स्थानों पर मुआवजे की रिपोर्टों पर सवाल उठते रहे हैं। कई अधिकारियों पर खेतों में बिना जाए ही दफ्तरों में बैठकर नुक्सान की रिपोर्ट तैयार करने के आरोप लग रहे हैं। इन परिस्थितियों में लोगों के प्रतिनिधियों को जनता के प्रति अपनी जिम्मेदारी समझने की आवश्यकता है। पूरा मामला अधिकारियों पर छोड़ने से पीड़ितों को न्याय नहीं मिलेगा। दरअसल कृषि मानसून का जुआ बन गई है। ज्यादा बारिश तो भी नुक्सान, बारिश कम हुई तो भी नुक्सान, कृषि का धंधा घाटे वाला बन गया है। फसल बीमा योजना का लाभ आज भी सभी किसानों तक नहीं पहुंच सका। दरअसल किसान फसलों के भाव से संतुष्ट नहीं, ऊपर से मौसम की मार किसानों के लिए बड़ी आफत बन जाती है। कृषि को घाटे से निकालने के लिए आवश्यक है कि मुआवजा देने की प्रक्रिया को अधिक से अधिक पारदर्शी बनाया जाए और इस संबंधी अधिकारियों की जवाबदेही तय की जाए। वास्तव में प्राकृतिक आपदा भी स्थायी रूप से कृषि से जुड़ गई है। कोई ऐसा सीजन नहीं होता जब नुक्सान न हुआ हो इसीलिए मुआवजे देने की प्रक्रिया को दरुस्त किया जाना चाहिए ताकि किसान बर्बाद न हो और आगामी फसल की बिजाई के लिए पूरे उत्साह से तैयार हो सके।
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