हरियाणा और पंजाब में सियासत हुई तेज
चंडीगढ़ (सच कहूँ न्यूज)। लोकसभा में पास हुए कृषि बिलों पर संसद से लेकर सड़क पर प्रदर्शन जारी है। हरियाणा, पंजाब, राजस्थान, उत्तर प्रदेश के किसान इस बिल का विरोध कर रहे हैं। हरियाणा के कृषि बिल पर सरकार के अंदर ही असहमतियां सामने आ चुकी हैं। खाद्य प्रसंस्?करण मंत्री हरसिमरत कौर बादल के इस्तीफा के बाद हरियाणा की सियायसत में हलचल बढ़ गई है। हरियाणा के उपमुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला ने मुख्यमंत्री खट्टर से मुलाकात की है। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उपमुख्यमंत्री ने मुख्यमंत्री से कहा, ‘किसानों की शंका दूर की जाए। इस बीच कांग्रेस के वरिष्ठ नेता एवं पूर्व केंद्रीय मंत्री पी चिदंबरम ने लोकसभा में किसान संबंधी दो विधेयकों अनुमोदित करने को लेकर पंजाब और हरियाणा के किसानों के विरोध प्रदर्शन पर शुक्रवार को कहा कि यह जनता और सरकार के बीच की दूरी को प्रदर्शित करता और यह दशार्ता है कि राज्यों से परामर्श नहीं किया गया है। उधर पूर्व मुंख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के गढ़ में मोर्चा लगाए बैठे किसानों के प्रदर्शन पर बड़ी घटना घट गई। आज बादल गांव में प्रदर्शनकारियों में बैठे भारतीय किसान यूनियन ऐकता के एक किसान ने जहरीले पदार्थ का सेवन कर लिया। इस दौरान किसान की गंभीर हालत को देखते हुए पीड़ित किसान को बठिंडा रेफर कर दिया। मीडिया रिपोर्ट के अनुसार किसान की हालत गंभीर बनी हुई है। सरकार और विपक्ष इस अपन अपने-अपने तर्क दे रहे हैं। वहीं बिल पर सरकार और विपक्ष, दोनों तरफ से तर्क दिए जा रहे हैं। आइए जानते हैं कि इन बिलों में आखिर ऐसा क्या है? जो कि संसद से लेकर सड़क पर इतना विरोध हो रहा है।
तीन विधेयक जिस पर है विवाद
1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) विधेयक 2020
2. मूल्य आश्वासन पर किसान (बंदोबस्ती और सुरक्षा) समझौता
3. कृषि सेवा विधेयक 2020
किसानों की शंकाएं
1. किसानों को डर है कि नए कानून के बाद एमएसपी पर खरीद नहीं होगी। बिल में इस बारे में कुछ नहीं कहा गया है कि मंडी के बाहर जो खरीद होगी वह एमएसपी से नीचे के भाव पर नहीं होगी।
2. सरकार एमएसपी का जुबानी आश्वासन दे रही है जबकि एमएसपी पर खरीदने की गारंटी विधेयक में नहीं दे रही।
3.विपक्ष कहना है कि कंपनियां धीरे-धीरे मंडियों पर हावी हो जाएंगी और फिर मंडी सिस्टम खत्म हो जाएगा। इससे किसान कंपनियों के सीधे पंजे में आ जाएंगे और उनका शोषण होगा।
4.किसानों को डर है कि बिल से मल्टीनेशनल का कब्जा हो जाएगा। जैसे जियो ने अपना कॉम्पिटिशन खत्म किया और फिर रेट बढ़ा दिए, ऐसे ही किसानों को लगता है कि एक बार अनाज खरीद बाजार पर मल्टीनैशनल का कब्जा होने के बाद वे उनका शोषण करेंगे।
5.आढ़तियों और मंडी के कारोबारियों को डर है कि जब मंडी के बाहर बिना शुल्क का कारोबार होगा तो कोई मंडी आना नहीं चाहेगा।
सरकार ने कहा, किसानों को डरने की जरूरत नहीं
1.सरकार और प्रधानमंत्री ने भी सपष्ट रूप से कहा कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। एमएसपी को हटाया नहीं जाएगा।
2.राज्यों के अधिनियम के अंतर्गत संचालित मंडियां भी राज्य सरकारों के अनुसार चलती रहेगी।
3.राज्य के लिए एग्रीकल्चरल प्रोड्यूस मार्केट कमिटी (एपीएमसी) ऐक्ट है, यह विधेयक उसे बिल्कुल भी छेड़ता नहीं है।
4.इस विधेयक से किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। वह मंडियों और बिचौलियों के जाल से निकल अपनी उपज को खेत पर ही कंपनियों, व्यापारियों आदि को बेच सकेगा।
5. इस बिल से किसानों को कोई टैक्स नहीं दिया जाएगा। इस वक्त मंडि में साढ़े आठ फीसद तक मंडी शुल्क वसूला जाता है।
6.किसानों को उपज की बिक्री के बाद कोर्टकचहरी के चक्कर नहीं लगाना पड़ेंगे। उपज खरीदने वाले को 3 दिन के अंदर पेमंट करना होगा।
7. किसानों के पास फसल बेचने के लिए वैकल्पिक चैनल उपलब्ध होगा।
क्या है एमएसपी
किसानों को सबसे बड़ा संदेह है कि इस बिल से एमएसपी खत्म हो जाएगा, आईए आपको बताते हैं कि एमएसपी क्या है। न्यूनतम समर्थन मूल्य यानी ‘एमएसपी’ किसी फसल का वह दाम होता है जो सरकार बुवाई के वक्त तय करती है। इससे किसानों को फसल की कीमत में अचानक गिरावट के प्रति सुरक्षा मिलती है। अगर बाजार में फसल के दाम कम होते हैं तो सरकारी एजेंसियां एमएसपी पर किसानों से फसल खरीद लेती हैं।
तीनों विधेयकों पर सरकार के खिलाफ कौन है और साथ कौन?
कांग्रेस के नेतृत्व में करीब छह विपक्षी पार्टियों ने इन विधेयकों का संसद में विरोध किया है। एनडीए के घटक दल शिरोमणि अकाली दल ने भी बिल के विरोध में वोटिंग की। कांग्रेस का साथ देने वालों में तृणमूल कांग्रेस, बसपा, एनसीपी और माकपा शामिल है। हालांकि, महाराष्ट्र में कांग्रेस और एनसीपी के साथ सरकार चला रही शिवसेना इस बिल पर सरकार के साथ खड़ी दिखाई दी। बीजेडी, टीआरएस और वायएसआर कांग्रेस पार्टी ने भी एसेंशियल कमोडिटी (अमेंडमेंट) ऑर्डिनेंस पर सरकार का साथ दिया।
कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसान कुछ ही साल में बर्बाद हो जाएगा। अगर सरकार किसान फल बेचने के लिए और ऑप्शन देना चाहती है तो मंडियों को टैक्स फ्री करे। अगर किसान मंडियों के बाहर अपना प्रोडक्ट बेचेगा तो अगले एक-दो साल में मंडिया बंद हो जाएंगी। अगर किसान मंडियों से बाहर अपनी फसल बेचेगा तो उसे टैक्स नहीं देना होगा। हमारी मांग है कि मंडियों को टैक्स फ्री कर दिया जाए।
नरेश टिकैत, भारतीय किसान यूनियन
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