बीज का खर्च भी नहीं हुआ पूरा
ओढां (सच कहूँ/राजू)। कभी नहरों में पानी नहीं तो कभी समय पर खाद नहीं। कभी प्राकृतिक आपदा तो कभी फसलों के उचित दाम नहीं। किसानों को हमेशा ही इन परेशानियों से जूझना पड़ता है। ऐसा ही कुछ देखने को मिला गांव साहुवाला-प्रथम में किसान मलकीत सिंह के खेत में। जहां किसान को ऐन मौके पर फसल ने ऐसा धोखा दिया कि आहत किसान ने अपनी 2 एकड़ नरमें की फसल उखाड़ डाली।
मलकीत सिंह ने दु:खी मन से बताया कि उसे इस बार अच्छी फसल की उम्मीद थी, लेकिन अंतिम पड़ाव में फसल ने उसे धोखा दे दिया। किसान ने बताया कि करीब 20 दिन पूर्व उसे अपनी नरमें की फसल में कुछ रोग होने का अंदेशा हुआ। जिसके बाद उसने कृषि अधिकारियों व बीज कंपनियों से सिफारिश पर महंगी दवाओं का छिड़काव किया, लेकिन फसल में कोई सुधार नहीं हुआ। किसान ने बताया कि उसने जब नरमें के टिंडे को तोड़कर देखा तो वो अंदर से गला हुआ पाया गया। ये स्थिति पूरे खेत में देखने को मिली। जिसके बाद किसान ने फसल को बचाने के लिए एक के बाद एक महंगे रसायनों का छिड़काव किया, लेकिन फिर भी कोई सुधार नहीं हुआ। किसान मलकीत ने बताया कि बड़ा खर्च करने के बावजूद भी जब कोई लाभ नहीं मिला तो मजबूरन उसने अपनी 2 एकड़ नरमें की फसल उखाड़ डाली।
गुलाबी सुंडी का हमला
किसान मलकीत सिंह के भाई जगदेव सिंह के खेत में भी यही स्थिति देखी जा रही है। देखने में नरमें के पौधों का न केवल पूरा कद है, अपितु टिंडे भी ठीक लग रहे हैं, लेकिन जब टिंडे को तोड़कर अंदर से देखा जाता है तो वह गुलाबी रंग में अंदर से गला हुआ निकलता है। किसानों का कहना है कि ये गुलाबी सुंडी का प्रकोप है तथा कुछ बीज भी सही नहीं है। किसान मलकीत सिंह ने बताया कि उसने 10 एकड़ में नरमें की बिजाई की थी। मलकीत सिंह के भाई जगदेव सिंह के खेत में भी यही स्थिति देखी जा रही है।
सोचा था अबकी बार लेनदेन ठीक हो जाएगा
किसान मलकीत सिंह ने बताया कि उसने इस बार अच्छी फसल देखकर लेनदेन ठीक से होने की उम्मीद लगाई थी। उसने नरमा चुगाई के लिए प्रवासी मजदूर भी बुलाए थे, लेकिन नरमें की हालत देखकर मजदूरों में अपनी मजदूरी को लेकर मायूसी दिखी। किसान के मुताबिक एक एकड़ फसल पर करीब 25 हजार रूपये का खर्च आया था, लेकिन खराब फसल के चलते आमदन तो दूर लागत खर्च भी पूरा नहीं हो पाएगा। किसान ने सरकार से मुआवजे की मांग की है।
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