पूज्य गुरू की ‘जट्टू इंजीनियर’ मूृवी देखकर आया केसर की खेती करने का विचार (Saffron Cultivation)
सच कहूँ/अनिल गोरीवाला। हरियाणा के अन्तिम छोर में बसे जिला सरसा के गांव मलिकपुरा के किसान रणदीप सिंह ने प्रयोग के रूप में केसर की खेती की शुरूआत का मन बनाया और खेत में कुछ अलग से पैदावार लेने की ठानी। किसान रणदीप सिंह ने ऐसी जगह पर केसर की पैदावार ली है, जहां से नरमा व गेहूं की पैदावार भी अच्छे से नहीं ली जा रही है। एक दिन परिवार के सभी सदस्य घर में बैठे जट्टू इंजीनियर मूवी देख रहे थे। जिसमें पूज्य गुरू संत डॉ. गुरमीत राम रहीम सिंह जी इन्सां ने बताया कि हरियाणा में भी केसर की उन्नत पैदावार ली जा सकती है। केसर की पैदावार कर किसान अपनी आर्थिक स्थिति को सुधार सकता है।
रणदीप सिंह ने बताया कि इसके एक कैनाल में 2 किलो 600 ग्राम कि पैदावार हुई है
वहीं पास में मूवी देख रही रणदीप सिंह की माता सुखमन्दर कौर ने कहा कि बेटा जब पिता जी केसर की खेती के लिए कह रहे है तो तुम्हें एक बार केसर की खेती करके देखनी चाहिए। इसके बाद रणदीप सिंह ने माता के कहे के बाद यू-टयूब पर केसर की खेती की जानकारी लेनी प्रारम्भ कर दी। (Saffron Cultivation) इसी बीच रणदीप सिंह ने एक कैनाल में केसर बोने के लिए इसके बीज आॅनलाइन मंगवाया। यू-टयूब के माध्यम से केसर के बीज की रोपाई, निराई, गुडाई, खाद आदि की जानकारी हासिल कर रणदीप सिंह ने एक कैनाल जमीन को तैयार कर 10 अक्तूबर से पहले केसर के बीजों की रोप्ाांई की जानी थी।
- रणदीप सिंह ने बताया कि इसके एक कैनाल में 2 किलो 600 ग्राम कि पैदावार हुई है।
- 1 किलोग्राम केसर का बाजार का भाव 40000 रूपए से लेकर 100000 रूपए तक का है।
- एक एकड़ में 1 किलोग्राम बीज डाला जाता है।
- इसमें किसी भी प्रकार की कोई पैस्टीसाईड दवाओं का प्रयोग नहीं किया जाता है।
- केवल आॅर्गेनिक खाद का ही इस्तेमाल किया जाता है।
जमीन की तैयारी
रणदीप सिंह ने सबसे पहले एक कैनाल जमीन को समतल कर उसमें गोबर की खाद को अच्छी तरह से मिलाया। जमीन को तैयार करने के बाद रणदीप सिंह ने एक कैनाल में पूर्व से पश्चिम दिशा की तरफ दो फुट चौड़ंी मेढ़ बनाई व मेढ़ के उत्तर दिशा की तरफ बीज की रोपाई हाथों से की गई।
- रोपाई के उपरान्त मेढ़ों में सिंचाई की गई।
- मेढ़ पर रोपित किए गए एक बीज से दूसरे बीज की दूरी का अंतराल 9 ईंच रखा गया।
- छह दिन के बाद केसर के बीज अंकुरित होने प्रारम्भ हो गए।
- बीज अंकुरण के समय खरपतवार भी उगना शुरू हो जाता है।
अॉर्गेनिक खाद की विधि
बीज रोपित के समय ही 5 किलोग्राम घरेलू लस्सी, 100 ग्राम लोहा,100 ग्राम कांस्य को प्लास्टिक के बर्तन में मिलाकर ढक्कर रख दिया जाता है। जैसे ही केसर के पौधों पर करीब 110 दिन के बाद पौधे पर रोग का अंदेशा होने पर 1 कैनाल में लस्सी की स्प्रे एक लीटर लस्सी स्प्रे को ढोलक में डालकर केसर के पौधों पर किया जाता है। वहीं इसी दौरान पौधों पर फंगस रोग व तैलीय की बीमारी लगनी शुरू हो जाती है इससे निपटने के लिए आक 2 किलोग्राम, धतूरा 2 किलोग्राम, 1 किलोग्राम नीम की पतियों को 10 लीटर पानी में अच्छी तरह से उबाल लिया गया।
- तब तक पानी को उबालना है जब पानी 5 लीटर पानी शेष रह जाए।
- इसके बाद केसर के पौधों पर इसकी स्प्रे की जाती है।
फूलों का लगना
- 22 मार्च के करीब केसर के पौधों पर फूल अंकुरित होने शुरू हो जाते हंै तो इसका रंग पीला होता है।
- चार दिन के अंतराल के बाद फूल का रंग केसरिया हो जाता है।
- इसके बाद फूलों की पंखुडिय़ों को तोड़कर चार-पांच दिन छाया में सुखाया जाता है।
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