Farmer killed in clash: पंजाब और हरियाणा के किसानों ने एक बार फिर अपनी मांगों को लेकर संघर्ष तीव्र कर दिया है। इसी बीच संगरूर जिले में एक किसान की मौत की भी दुखद खबर है। किसानों को चंडीगढ़ जाने से रोकने के लिए पुलिस ने किसान नेताओं की गिरफ्तारी के साथ-साथ किसानों को चंडीगढ़ जाने से रोकने के लिए दिल्ली की तरह नाकाबंदी की गई है। किसानों और सरकार दोनों को मामले की गंभीरता को देखते हुए कोई रास्ता निकालना चाहिए। टकराव किसी भी मुद्दे का समाधान नहीं है। सरकारें बातचीत की बजाए किसानों को रोकने पर जोर दे रही है।
बेहतर होगा कि सरकार बातचीत का माहौल बनाए और इस टकराव भरे माहौल को खत्म करे। किसान संगठन भी विरोध-प्रदर्शन करें लेकिन टकराव से बचें। शांतिपूर्ण विरोध से मांगों को मनवाया जा सकता है। देश में कई शांतिपूर्ण आंदोलन ऐसे हुए, जब सरकारों को झुकना पड़ा। यह भी ध्यान दिया जाए कि धरने से आम जनता को कोई नुकसान न हो। स्कूल जाने वाले बच्चों और गंभीर रूप से बीमार मरीजों को कोई दिक्कत नहीं होनी चाहिए। यूं भी यह सवाल गंभीर है कि आजादी के 76 साल बाद भी किसान आंदोलन करने को क्यों मजबूर हैं। Farmer killed in clash
कृषि नीतियों में कहां खामियां हैं, इन नीतियों की दोबारा जांच की आवश्यकता है। सब्सिडी, कृषि बीमा सहित कई अन्य योजनाओं के बावजूद कृषि में मूलभुत परिवर्तन क्यों नहीं आ सका। कृषि जिंसों के दाम कभी एकदम गिर जाते हैं तो कभी आसमान पर पहुंच जाते हैं। किसान, उपभोक्ता और व्यापारी के हितों की रक्षा जैसे मुद्दों पर चर्चा करने की जरूरत है। यह किसान आंदोलन तब हो रहा है जब प्याज के आयात पर 40 फीसदी शुल्क लगा दी गई।
उपभोक्ताओं को सस्ता प्याज उपलब्ध कराने के लिए यह कदम सही हो सकता है, लेकिन किसानों के हितों को भी देखना होगा। किसान फसलों के वर्तमान रेटों से संतुष्ट नहीं। निर्यात शुल्क बढ़ने से निर्यात रुक जाता है और किसान को लाभ नहीं मिल पाता। सरकार को संतुलित नीतियां बनाने पर बल देना होगा ताकि कृषि लाभदायक धंधा बना रहे और किसान पर बोझ न पड़े। Editorial
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