पंजाब में रेल सेवाएं बहाल हो गई हैं और 30 किसान संगठनों ने रेल ट्रैक भी खाली कर दिए हैं। एक संगठन किसान मजदूर संघर्ष समिति रेल रोकने के लिए अपनी जिद्द पर अड़ी हुई है। रेल रोकना किसी समस्या का हल नहीं, इससे जनता नाहक परेशान होती है। दूसरे राज्यों को जाने वाले लोगों व विद्यार्थियों के कार्य बाधित होते हैं। किसानों के आंदोलन से कई राज्यों के लोग प्रभावित हुए, विशेष रूप से उद्योग व व्यापार को भारी नुक्सान झेलना पड़ा है। पंजाब सरकार के लिए ठप्प रेल सेवाएं चालू करना चुनौती बना रहा जबकि केंद्र सरकार का सस्ते में काम चल गया, उन्हें किसानों को मनाने की जरूरत ही नहीं पड़ी। किसानों व केंद्र के बीच फंसी पंजाब सरकार की खूब माथापच्ची हुई। फिर भी यह अच्छा है कि पंजाब सरकार ने अपनी जिम्मेदारी निभाई और किसानों का रेल आंदोलन समाप्त करवाया जहां तक एक (संगठन) के जारी आंदोलन का सम्बन्ध है उन्हें वक्त का तकाजा समझकर आंदोलन की रीति-नीति बदलनी चाहिए।
टकराव की बजाय बातचीत से ही किसी समस्या का समाधान संभव है। रेल रोको आंदोलन के द्वारा किसान केंद्र पर दबाव बनाने में सफल रहे हैं और आखिर केंद्र सरकार ने किसानों को फिर से वार्ता करने के लिए न्यौता भेजा है। किसानों की मांग के अनुसार केंद्रीय मंत्री पहले भी बातचीत में शामिल हो चुके हैं और बातचीत का एक दौर पूरा हो चुका है। दूसरे दौर की बातचीत के लिए केंद्र ने तीन दिसंबर की मीटिंग बुलाई है, हालांकि बातचीत का दौर शुरू हो गया है और यह बातचीत ही रेल आंदोलन का उद्देश्य था। किसानों का यह आंदोलन केंद्र सरकार तक अपनी आवाज पहुंचाने के लिए था लेकिन इसका नुक्सान आम लोगों के साथ-साथ किसानों को भी हो रहा था।
पंजाब में खाद की सप्लाई रुकने से किसान यूरिया खाद खरीदने के लिए हरियाणा के चक्कर लगाने लगे हैं। पंजाब के कई किसानों को हरियाणा पुलिस ने गिरफ्तार किया है। इन परिस्थितियों में किसानों को अपनी ही परेशानी का ध्यान रखना होगा। संघर्ष लोगों का समर्थन जुटाकर ही लड़ा जा सकता है और हर संघर्ष का आधार कोई न कोई विचारधारा होती है। यदि किसी आंदोलन से आमजन को परेशान होने लगे तब संघर्ष को आमजन का समर्थन नहीं मिलता। बेहतर हो यदि अब किसान संगठन हड़ताल का रास्ता त्यागकर बातचीत से समस्या का समाधान निकालें।
अन्य अपडेट हासिल करने के लिए हमें Facebook और Twitter पर फॉलो करें।